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Wednesday 19 October 2011

अब कहॉं मि‍लेंगें वो साथी

यहॉं आना ठीक वैसा ही लगता है जैसे ऑफि‍स और मीटिंग से नि‍कलकर खेल के उस मैदान पर चले आना जहॉं बचपन में अपने दोस्‍तों के साथ खूब खेला करते थे। ऐसा महसूस होता है जैसे मैं अपने काम में ज्‍यादा ही व्‍यस्‍त हो गया और साथ खेलने वाले लोग अब न जाने क्‍या कर रहे होंगे, कहॉं होंगे।
खुशी होती है उन लोगों को अब तक सक्रि‍य देखकर जो 2-3 साल पहले भी इतने ही सक्रि‍य थे। जो लोग इस रि‍श्‍ते को नि‍भा पाए हैं मैं आश्‍वस्‍त होकर कह सकता हूँ कि‍ नेट के नेटवर्क के बाहर भी उनके रि‍श्‍ते भी इतने ही गहरे होंगे।

कुछ दि‍न पहले मोबाइल गुम होने के बाद मुझे एंड्रायड फीचर वाला मोबाइल फोन (एल जी- ऑप्‍टीमस ब्‍लैक-पी 970) खरीदने का मौका मि‍ला। उसमें मैंने वाइ-फाई से सेट हिंदी का टूल लोड कि‍या जि‍ससे मैं हिंदी ब्‍लाग पढ़ पा रहा हूँ।

शायद ये मुझे फि‍र से ब्‍लॉग की तरफ खींच पाए।

ब्‍लॉगवाणी के चले जाने के बाद ब्‍लॉग पढना-लि‍खना बंद सा हो गया था। अब इसकी जगह कौन सा एग्रीगेटर ज्‍यादा चलन में हैं, उसका लिंक दे तो अच्‍छा रहे।

क्‍या कोई बंधू बता सकता है कि‍ मेरे एड़ायड फोन में हिंदी को पढ पाने का बेहतर तरीका/टूल कौन सा हो सकता है।

जल्‍दी ही मि‍लूँगा

जि‍तेन