माल रोड से हमें गाड़ी समय पर मिल गई और हम शिमला स्टेशन करीब 15:40 तक पहुँच गए। इशान इस खाली-से स्टेशन पर बेखौफ इधर-उधर भाग रहा था। अब हमारे सफर में एक नई कड़ी जुड़ने वाली थी- रेल मोटर।
इशान की खुशी का ठिकाना नहीं था, उसके लिए यह ट्रेन के इंजन में बैठने जैसा अनुभव था, वह भाग कर उसमें जा बैठा।
आप इसे पटरी पर दौड़नेवाली बस या मोटर-कार मान सकते हैं, जिसमें मात्र 16 सीटें ही होती हैं। आगे-पीछे, अगल-बगल और ऊपर की तरफ रेल-मोटर की खिड़कियॉं पारदर्शी होती हैं जिससे आसमान के अलावा आप पटरी के दोनों तरफ पेड़-पौधे, पहाड़ और सुरंगों को आसानी से देख सकते हैं।
रेल-मोटर के आगे-पीछे पटरियों का नजर आना एक अच्छा अनुभव था। इस अनुभव में खटकनेवाली अगर कोई बात थी तो यही कि यह डी.टी.सी. बस की तरह शोर मचाती हुई और हिलती हुई भाग रही थी।
इसके बावजूद इशान और सोनिया अपनी सीट पर कुछ देर बाद सोते हुए पाए गए। एक बात तो बताना भूल ही गया कि इस रेल मोटर के ड्राइवर एक सरदार जी थे।
रेल-मोटर में निक और हाइडी श्रीम्प्टन तथा उनके दोनो बच्चे एमीजन और और एलियट से मिलना भी एक अच्छा इत्तफाक रहा। इस तरह करीब दो-ढाई घंटे बाद हम बड़ोग पहुँच गए, जो 33 नंबर टनल के ठीक साथ बना हुआ है।
33 नंबर टनल इस पूरे सफर का सबसे खास पड़ाव है, और सही मायने में मेरी मंजिल तो यही थी। शिमला जाते हुए मैंने कई बार यहॉं रूकने का मन बनाया था, लेकिन मौका आज मिला, और वह भी सपरिवार।
जब मैंने बड़ोग रूकने का कार्यक्रम बनाया तब मुझे पक्का नहीं था कि एक छोटे बच्चे के साथ वहॉं रूकने और खाने-पीने की क्या व्यवस्था होगी। ट्रेन के ऑन-लाइन रिजर्वेशन कराने के दौरान ये पता करने के लिए मैंने बड़ोग स्टेशन का फोन नंबर( 01792238814) इंटरनेट से बहुत मुश्िकल से ढूँढ निकाला। स्टेशन मास्टर अपेक्षाकृत सभ्य भाषा में बोला, जिसके हम आदी नहीं हैं। तब उसने बताया था कि यहॉं किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं आएगी।
रेल-मोटर से उतरने के बाद ऐसा लगा जैसे अचानक ही अंधेरा घिर आया हो क्योंकि यह घने वृक्षों और पहाड़ के ठीक साथ ही था।अब मुझे इस स्टेशन पर रहने-खाने की चिंता सता रही थी।
क्रमश:
अन्ना हजारे की बात सरकार ने मान ली है और भ्रष्टाचार के खिलाफ जन लोकपाल का ड़ाफ्ट 30 जून तक तैयार हो जाएगा, और उसके बाद मानसून सत्र में इस बील को पेश किया जाएगा। इस आंदोलन ने गॉंधी के प्रति आस्था और आम जनता के आत्मविश्वास को पुनर्जीवित कर दिया है।
लेकिन.......क्या यह कह देने मात्र से हमारा कर्तव्य पूरा हो जाता है कि हम इस आंदोलन के साथ है- इस सवाल का संबंध सिर्फ इस आंदोलन से नहीं है, बल्कि यहॉं खुद के भीतर झॉंकने की जरूरत है कि हम कहॉं-कहॉं दूसरों का काम करने के लिए रिश्वत लेते हैं और अपना काम कराने के लिए रिश्वत देते हैं।
सतत क्रमश:
Saturday 9 April 2011
Thursday 7 April 2011
शिमला के बहाने ट्रेन का सफर भाग-2
शिमला स्टेशन बहुत खूबसूरत स्टेशन है, जहॉं बैठकर आप बोर नहीं हो सकते। वैसे भी मेरी यही इच्छा रहती थी कि मैं शिमला आऊँ तो स्टेशन से ही वापस लौट जाऊँ।
इसके पीछे कारण है- शिमला की बढ़ती आबादी,घटते पेड़ और बढ़ते मकान,व्यवसायीकरण, ट्रैफिक और अत्यधिक शोर।
हम यहॉं 12 बजे तक पहुँच गए थे, और शाम को वापस 4 बजे यहीं आकर हमें बड़ोग के लिए रेल मोटर पकड़ना था। सबसे पहले हमने स्टेशन पर ही रेस्टॉरेंट में खाना खाया। अब 4 घंटे में हमें माल रोड से घुमकर वापस आना था, इसलिए हमने लिफ्ट तक जाने के लिए टैक्सी ली।
15-20 मिनट में हम माल रोड पर आ चुके थे। ऊपर जाने तक के रास्ते में कपड़ों की मार्केट लगी हुई थी। मुझे वहॉं कुछ जैकेट काफी पसंद आए, पर समय की कमी की वजह से मैंने सोचा कि दिल्ली से खरीद लूँगा।(वापस लौटने पर दिल्ली में मैंने वैसे जैकेट ढ़ँढने की कोशिश की पर वे पसंद नहीं आई )।
उसी मार्केट में चलते हुए इशान खिलौने की जिद करने लगा। मैंने उसे 50 रूपये का एक छोटा-सा टेलिस्कोप दिलवाकर पीछा छुटवाया। हमें यहॉं पर दो घंटे बिताने थे, पर ये समय जाते देर न लगी।
लाल रंग के उस टेलिस्कोप को इशान कैमरा ही समझ रहा था। जैसे मैं उसका फोटो ले रहा था, वह भी मुँह से 'खिच-खिच' की आवाज निकाल लेकर मेरा फोटो ले रहा था।
उसके बाद मैंने आसपास के मनोरम दृश्यों का फोटो लिया-
और अपने हमसफर का भी-
फिर इशान को आइसक्रीम दिलाया और स्टेशन के लिए चल पड़े।
नीचे की तस्वीर में ऊपर की तरफ जाखू पर्वत पर हनुमान जी की सबसे ऊँची मूर्ति नजर आ रही है, जिसका अनावरण इसी साल हुआ था और उस अवसर पर अभिषेक बच्चन भी मौजूद थे।
माल रोड से पश्चिम की तरफ,जिधर बी.एस.एन.एल का ऑफिस और विधानसभा है, उधर हर एकाध-घंटे पर टवेरा टाइप की सरकारी गाड़ी चलती है। हम उसका इंतजार करने लगे।
3 बज गए पर तबतक कोई गाड़ी नहीं आई। वहॉं खड़े ट्रैफिक पुलिस से हम 3-4 बार गाड़ी का समय पूछ चुके थे, पर उसने इंतजार करने को कहा। हमें लगा यदि समय पर हम स्टेशन न पहुँचे तो रात हमें शिमला में बितानी पड़ेगी और रेल मोटर के मजेदार सफर से भी हम वंचित रह सकते थे।
क्रमश:
इसके पीछे कारण है- शिमला की बढ़ती आबादी,घटते पेड़ और बढ़ते मकान,व्यवसायीकरण, ट्रैफिक और अत्यधिक शोर।
हम यहॉं 12 बजे तक पहुँच गए थे, और शाम को वापस 4 बजे यहीं आकर हमें बड़ोग के लिए रेल मोटर पकड़ना था। सबसे पहले हमने स्टेशन पर ही रेस्टॉरेंट में खाना खाया। अब 4 घंटे में हमें माल रोड से घुमकर वापस आना था, इसलिए हमने लिफ्ट तक जाने के लिए टैक्सी ली।
15-20 मिनट में हम माल रोड पर आ चुके थे। ऊपर जाने तक के रास्ते में कपड़ों की मार्केट लगी हुई थी। मुझे वहॉं कुछ जैकेट काफी पसंद आए, पर समय की कमी की वजह से मैंने सोचा कि दिल्ली से खरीद लूँगा।(वापस लौटने पर दिल्ली में मैंने वैसे जैकेट ढ़ँढने की कोशिश की पर वे पसंद नहीं आई )।
उसी मार्केट में चलते हुए इशान खिलौने की जिद करने लगा। मैंने उसे 50 रूपये का एक छोटा-सा टेलिस्कोप दिलवाकर पीछा छुटवाया। हमें यहॉं पर दो घंटे बिताने थे, पर ये समय जाते देर न लगी।
लाल रंग के उस टेलिस्कोप को इशान कैमरा ही समझ रहा था। जैसे मैं उसका फोटो ले रहा था, वह भी मुँह से 'खिच-खिच' की आवाज निकाल लेकर मेरा फोटो ले रहा था।
उसके बाद मैंने आसपास के मनोरम दृश्यों का फोटो लिया-
और अपने हमसफर का भी-
फिर इशान को आइसक्रीम दिलाया और स्टेशन के लिए चल पड़े।
नीचे की तस्वीर में ऊपर की तरफ जाखू पर्वत पर हनुमान जी की सबसे ऊँची मूर्ति नजर आ रही है, जिसका अनावरण इसी साल हुआ था और उस अवसर पर अभिषेक बच्चन भी मौजूद थे।
माल रोड से पश्चिम की तरफ,जिधर बी.एस.एन.एल का ऑफिस और विधानसभा है, उधर हर एकाध-घंटे पर टवेरा टाइप की सरकारी गाड़ी चलती है। हम उसका इंतजार करने लगे।
3 बज गए पर तबतक कोई गाड़ी नहीं आई। वहॉं खड़े ट्रैफिक पुलिस से हम 3-4 बार गाड़ी का समय पूछ चुके थे, पर उसने इंतजार करने को कहा। हमें लगा यदि समय पर हम स्टेशन न पहुँचे तो रात हमें शिमला में बितानी पड़ेगी और रेल मोटर के मजेदार सफर से भी हम वंचित रह सकते थे।
क्रमश:
शिमला के बहाने ट्रेन का सफर भाग-1
6 दिसम्बर 2010 की रात हमदोनों अपने बेटे इशान के साथ पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुँचे। वैसे टिकट सब्जी मंडी से थी, लेकिन ट्रेन लेट थी और सब्जी मंडी का रेलवे स्टेशन काफी सुनसान रहता है, इसलिए वहॉं इंतजार करना हमें उचित नहीं लगा।
इस सफर का पूरा सिड्यूल इस प्रकार था-
6 दिसंबर - दिल्ली से कालका - 20:45 से 4:40 हावड़ा दिल्ली कालका मेल(2311)फर्स्ट एसी 900/-प्रति व्यक्ति
7 दिसंबर - कालका से शिमला - 5:30 से 10-15 शिवालिक डिलक्स एक्सप्रेस(241) 280/- प्रति व्यक्ति
7 दिसंबर - शिमला से बड़ोग - 16:40 से 17:15 रेल मोटर प्रति व्यक्ति
8 दिसंबर - बड़ोग से कालका - 13:30 से 16:40 हिमालयन क्वीन(256) 167/- प्रति व्यक्ति
8 दिसंबर - कालका से दिल्ली - 17:45 से 21:50 कालका शताब्दी(2012) फर्स्ट सीसी 990/- प्रति व्यक्ति
रात का सफर आरामदायक रहा,फर्स्ट एसी होने के बावजूद और लेट नाइट ट्रेन होने की वजह से चाय-पानी की सुविधा यहॉं नहीं मिली। खैर, सुबह 6 बजे के करीब हम कालका जी पहुँच गए, सही समय से करीब 2 घंटे लेट। इशान की नींद अभी पूरी नहीं हुई थी।
वास्तव में इशान ट्रेन को लेकर काफी क्रेजी रहता है, इसलिए यह पूरा सफर मैंने मुख्यत: ट्रेन पर फोकस किया था, किसी टूरिस्ट आकर्षक के लिए नहीं। इसलिए टॉय ट्रेन, रेल कार, चेयर कार आदि को ध्यान में रखकर मैंने टिकट कटाया था।
दूसरी बात ये थी कि सोनिया को कार से उलटी की शिकायत रहती है, इसलिए उसके साथ सफर करने के लिए मेरे पास ट्रेन एक आसान विकल्प था।
ट्रेन कोहरे की वजह से हावड़ा से दिल्ली लेट पहुँची थी, इसलिए कालका भी लेट पहूँची, लेकिन कालका से चलनेवाली शिवालिक ट्रेन इससे कनेक्टेड है, इसलिए वह भी इस ट्रेन के कालका पहुँचने का इंतजार करती है।
धीरे-धीरे भोर हो चला था। बीच में इशान की नींद खुली, पर बोतल से दूध पीने के बाद वह फिर सो गया। इशान को मैंने अपने गोद में सुलाया हुआ था, और सीट काफी छोटी होने की वजह से काफी दिक्कत हो रही थी। कभी दुबारा आना हो तो बच्चे के लिए भी सीट बुक कराना समझदारी रहेगी।
पहाड़ों के बीच ट्रेन चली जा रही थी। कालका से शिमला के बीच 105 सुरंग है। मैं इंतजार कर रहा था कि कब टनल नंबर 33 आए और हम वहॉं उतर कर नाश्ता वगैरह ले सके।
क्रमश:
इस सफर का पूरा सिड्यूल इस प्रकार था-
6 दिसंबर - दिल्ली से कालका - 20:45 से 4:40 हावड़ा दिल्ली कालका मेल(2311)फर्स्ट एसी 900/-प्रति व्यक्ति
7 दिसंबर - कालका से शिमला - 5:30 से 10-15 शिवालिक डिलक्स एक्सप्रेस(241) 280/- प्रति व्यक्ति
7 दिसंबर - शिमला से बड़ोग - 16:40 से 17:15 रेल मोटर प्रति व्यक्ति
8 दिसंबर - बड़ोग से कालका - 13:30 से 16:40 हिमालयन क्वीन(256) 167/- प्रति व्यक्ति
8 दिसंबर - कालका से दिल्ली - 17:45 से 21:50 कालका शताब्दी(2012) फर्स्ट सीसी 990/- प्रति व्यक्ति
रात का सफर आरामदायक रहा,फर्स्ट एसी होने के बावजूद और लेट नाइट ट्रेन होने की वजह से चाय-पानी की सुविधा यहॉं नहीं मिली। खैर, सुबह 6 बजे के करीब हम कालका जी पहुँच गए, सही समय से करीब 2 घंटे लेट। इशान की नींद अभी पूरी नहीं हुई थी।
वास्तव में इशान ट्रेन को लेकर काफी क्रेजी रहता है, इसलिए यह पूरा सफर मैंने मुख्यत: ट्रेन पर फोकस किया था, किसी टूरिस्ट आकर्षक के लिए नहीं। इसलिए टॉय ट्रेन, रेल कार, चेयर कार आदि को ध्यान में रखकर मैंने टिकट कटाया था।
दूसरी बात ये थी कि सोनिया को कार से उलटी की शिकायत रहती है, इसलिए उसके साथ सफर करने के लिए मेरे पास ट्रेन एक आसान विकल्प था।
ट्रेन कोहरे की वजह से हावड़ा से दिल्ली लेट पहुँची थी, इसलिए कालका भी लेट पहूँची, लेकिन कालका से चलनेवाली शिवालिक ट्रेन इससे कनेक्टेड है, इसलिए वह भी इस ट्रेन के कालका पहुँचने का इंतजार करती है।
धीरे-धीरे भोर हो चला था। बीच में इशान की नींद खुली, पर बोतल से दूध पीने के बाद वह फिर सो गया। इशान को मैंने अपने गोद में सुलाया हुआ था, और सीट काफी छोटी होने की वजह से काफी दिक्कत हो रही थी। कभी दुबारा आना हो तो बच्चे के लिए भी सीट बुक कराना समझदारी रहेगी।
पहाड़ों के बीच ट्रेन चली जा रही थी। कालका से शिमला के बीच 105 सुरंग है। मैं इंतजार कर रहा था कि कब टनल नंबर 33 आए और हम वहॉं उतर कर नाश्ता वगैरह ले सके।
क्रमश:
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