'थोड़ा और.......'
कैमरे का फ्लैश अब तक शांत था।
'भाई साब् बस थोड़ा-सा और। अपना सिर भाभी जी की तरफ झुकाइए, भाभी जी आप भी।'
अब भी फ्लैश नहीं चमका।
'अब मुस्कुराइए, एक इंच और, हॉ.......'
पर अब भी फ्लैश नहीं चमका।
मैं खीज गया, कहा-
'ये फोटो किसी ऑफिस में देना है भाई, तुम तो फोटो इतना रोमांटिक बना रहे हो जैसे बेडरूम में लगाना हो!'
कैमरामैन के दॉंत चमके , पर फ्लैश अब भी नहीं चमका। मेरे सामने स्टैंड पर दो-तीन लैंप जगमगा रहे थे, वह उसका फोकस ठीक करने लगा। श्रीमती ने छेड़ा- कमर पर हाथ रखा हुआ है, फोटो में ये भी आएगा क्या?
मैंने बनावटी गुस्से में कहा-
-'कैमरा आगे है, पीछे नहीं!!'
क्या होता है न कि शादी के कुछ सालों या कुछ महिनों तक ऐसा खुमार छाया रहता है जैसे सारे फोटो इस पोजीशन में लिए जाएँ जिससे लगे कि हम एक-दूसरे के लिए ही बने हैं और हमारी हर अदा और हर पोज में जबरदस्त प्यार छलक रहा हो! पर अब, जब हमारा तीन साल का बेटा अपनी नानी के साथ घर में हम दोनों के आने का इंतजार कर रहा हो, तो ऐसा लगता है कि चिपककर खड़े रहने की अच्छी जबरदस्ती है यार!
अचानक फ्लैश चमका। फोटो खिंच चुकी थी। आज श्रीमती को गर्लफ्रेंड होने का सा आभास हो रहा था पर मैं अपने ब्यॉय-फ्रेंडीय छवि को जाहिर नहीं करना चाहता था। मैं चाहता था कि लोग मुझे इसका पति ही समझे, कुछ और नहीं।
समाज भी कितने ड्रामे करवाता है पता नहीं!!
कैमरामैन ने मायूसी से मुझे टोका-
'जी आपकी ऑंखे बंद हो गई है, फोटो दुबारा लेना पड़ेगा।'
लो, फिर से वही घटनाक्रम दुहराया जाएगा- चिपको जी, फिर झुको जी, फिर मुस्कुराओ जी!
अंदर से तो मैं भी इसका आनंद ले रहा था मगर पत्नी को खुशी दिखा दी तो समझो मार्केट में दो-तीन घंटे और घूमना पड़ सकता है!
शादी के बाद ये पहला मौका था तब हम इस तरह फोटो खिंचवाने आए थे। फोटो तैयार होकर 15 मिनट में मिल गई। मेरे हाथ में जब ये कलर्ड फोटो आया तो अचानक ही मेरे जेहन में एक ब्लैक एण्ड वाइट तस्वीर कौंध गई! उस तस्वीर में मेरे मम्मी-पापा यूँ ही सटकर खड़े हैं और यूँ ही वे (एक-दूसरे की तरफ? ) झुके हैं और हॉं.. मंद-मंद मुस्कुरा भी रहें है!

1975-80 के आसपास ली गई ये तस्वीर न जाने किस स्टूडियो से ली गई होगी, कभी पूछूँगा। ये भी पूछूँगा कि वे किस तरह तैयार होकर स्टूडियो तक गए होंगे। इतिहास इस तरह सजीव हो जाता है मानो कल-परसो की ही बात हो! सभी लोगों के पास यादों की ऐसी सौगाद तस्वीरों में जरूर मौजूद होती है। आप लोगों के पास भी ऐसी कोई तस्वीर जरूर मिल जाएगी। अगर आपको अपना एलबम निकाले करीब साल भर हो गया है तो छुट्टी के दिन सब मिलकर एलबम निकालकर जरूर देखें।
ब्लैक एण्ड वाइट फोटो में इस तरह कलर भरकर आप भी खुश हो जाऍगें, मेरा वादा है ये!
(ये तस्वीर मेरे छोटे भाई विजय के पास एलबम में थी, जो दूसरे शहर में रहता है। मैंने उससे कहा कि ये तस्वीर स्कैन करवा के भिजवा दो। वैसे तो वह मेरा कोई काम दो-चार दिन लेकर आराम से करता है मगर इस काम के लिए वह उसी शाम बाजार गया। उसे अमिताभ की 'बागवॉं' फिल्म बहुत पसंद जो है !!)