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Sunday 27 November 2011

लबादा !

तहसील नूरपूर (कांगड़ा, हि‍माचल प्रदेश) के जसूर इलाके में जो रेलवे स्‍टेशन पड़ता है, उसका नाम नूरपूर रोड है। वहॉं के स्‍टेशन मास्‍टर ने सलाह दी कि‍ दि‍ल्‍ली जाने के लि‍ए अगर कन्‍फर्म टि‍कट नहीं है तो पठानकोट की बजाय चक्‍की बैंक स्‍टेशन जाओ।

चक्‍की बैंक से दि‍ल्‍ली के लि‍ए कई गाड़ि‍या गुजरती है। चक्‍की बैंक के एक ट्रेवल-एजेंट ने सलाह दी कि अगर जम्‍मू मेल से जाना है तो पठानकोट जाओ क्‍योंकि‍ वहॉं यह गाड़ी लगभग आधे घंटे रूकती है, जहॉं टी.टी. को सेट करने के लि‍ए काफी समय मि‍ल जाएगा।
पठानकोट में जम्‍मू मेल पौने सात बजे आती है, इसलि‍ए मैंने सबसे पहले स्‍टेशन के पास खालसा हिंदू ढाबे में खाना खाया। उसके बाद दि‍ल्‍ली के लि‍ए 115/- की जेनरल टि‍कट ली और जम्‍मू मेल के एसी डब्‍बों के पास काले-कोटवाले की तलाश करने लगा।
मेरे पास नवंबर की ठंड से बचने और स्‍लीपर में सोने के लि‍ए पर्याप्‍त कपड़े नहीं थे, इसलि‍ए मैं चाहता था कि‍ कम-से-कम 3एसी में जगह मि‍ल जाए, मगर 2एसी और 3एसी के लि‍ए आर.ए.सी. वाले पहले से ही टी.टी को घेरकर खड़े थे। मैं समझ गया अब स्‍लीपर में शरण लेनी पड़ेगी। स्लीपरवाले टी.टी. ने 350/- लेकर पक्‍की रसीद दी मगर कोई सीट नम्‍बर नही। उसने कहा कि‍ गाड़ी चलने के एकाध घंटे बाद मि‍लना।
जम्‍मू मेल दि‍ल्‍ली के लि‍ए चल पड़ी। मैं स्‍लीपर बॉगी के दरवाजे के पास खड़ा था। वहीं एक कबाड़ीवाला गंदा और बदबूदार लबादा ओढे अपने कट्टे के ऊपर बैठा था। मै टी.टी. का इंतजार करने लगा ताकि‍ सीट का पता चले। थोड़ी देर बाद टी.टी. आया और मुझे कि‍नारे ले जाकर बोला
- सर, बड़ी मुश्‍कि‍ल से आर.ए.सी. वाले की सीट नि‍कालकर आपको दे रहा हूँ, आप वहॉं जाकर लेट सकते हैं।
आप इतना रि‍क्‍वेस्‍ट कर रहे थे इसलि‍ए मैंने आपका ध्‍यान रखा।
मैंने टी.टी. को धन्‍यवाद देते हुए धीरे से पूछा
- कि‍तने?
- जो आप चाहें।
मैंने 200/- नि‍काल कर दि‍ए।


200/- जेब में डालते हुए टी.टी. ने कहा कि‍ ये सीट आर.ए.सी को जाना था और एक सवारी मुझे 400/- भी देने के लि‍ए तैयार थी, पर चलि‍ए आप 100/- और दे दीजि‍ए।
इस बीच पास खड़ा कबाड़ीवाला दयनीय-सा चेहरा बनाए टी.टी. की ओर हाथ फैलाए खड़ा था। मैं टी.टी. से बात करने के दौरान सोच रहा था कि‍ ये कबाड़ीवाला टी.टी. से यहॉं भीख कैसे मांग रहा है! वहॉं बल्‍ब की रौशनी काफी मद्धि‍म थी। गौर से देखने पर पता चला कि‍ वह कबाड़ीवाला मुड़े-चुड़े 10-20 रूपये टी.टी. को पकड़ाने की कोशि‍श कर रहा था। टी.टी. की हैसि‍यत पर यह कि‍सी तमाचे से कम नहीं था। उसने कबाड़ीवाले पर थप्‍पड़ जड़ने शुरू कर दि‍ए। वह बेचारा लड़खड़ाता, गि‍रता-पड़ता अपना कट्टा लेकर दूसरी तरफ चला गया।
अपनी सीट पर लेटे हुए मैं बॉगी के भीतर 3डी साउण्‍ड का अहसास कर रहा था- चलती ट्रेन की ताबड़-तोड़ आवाज,, कहीं लड़कि‍यों का शोर-गुल, कहीं नवजात बच्‍चे का रोना, कहीं कि‍सी बूढ़े की खॉंसी तो कि‍सी का खर्राटा, कि‍सी की पॉलीथीन और उसमें मूँगफली के चटखने की आवाजें। भाषाऍं भी अलग-अलग। मगर कुल मि‍लाकर यह एक शोर ही था, जि‍समे मुझे सोने की कोशि‍श करनी थी ताकि‍ कल दि‍ल्‍ली पहुँचकर डाटा अपलोड करने के लि‍ए सर में थकान हावी न रहे।

तभी ध्‍यान आया कि‍ मैंने ब्रश नहीं की है। मैंने जल्‍दी से जूते पहने और ब्रश लेकर बाहर वाश बेसि‍न की तरफ आ गया।
ब्रश करना अभी शुरू ही कि‍या था कि‍ मेरी नजर दरवाजे के पास बैठे शख्‍स पर गई। वह वही कबाड़ीवाला था जो हाड़ कपॉंती ठंड की इस रात में लबादे में लि‍पटा कोने में बैठा हुआ था। उसकी दयनीय-सी सूरत पर मेरे लि‍ए क्‍या भाव था- मैं ये नहीं समझ पाया मगर उसकी मुट्ठी में 10-20 रूपये अभी भी मुड़ी-चुड़ी हालत में फॅसे नजर आ रहे थे......

जि‍तेन्‍द्र

Saturday 19 November 2011

हवा-हवाई

नवम्‍बर का महि‍ना था। दि‍ल्‍ली में मस्‍त बयार चल रही थी।
ऐसे ही एक खुशनुमा सुबह, जब राजस्थान से चलने वाली बस दि‍ल्‍ली के धौलाकुँआ क्षेत्र से सरसराती हुई तेजी से गुजर रही थी।
स्‍लीपिंग कोचवाले इस बस में ऊपर की तरफ 4-5 साल के दो बच्‍चे आपस में बातें कर रहे थे।


-अले चुन्‍नू!
-हॉं मुन्‍नू!
-वहॉं देख क्‍या लि‍खा है!
-क्‍या लि‍खा है?
-इंडि‍या गेट!
-अले हॉं, दि‍ल्‍ली आ गया! आ गया! आ गया!




-अरे मुन्‍नू, इतना मत लटक, गि‍र जाएगा!
-तू अपनी चिंता कर, तूने ऊपर नहीं पढ़ा क्‍या?
-नहीं तो!
- ठीक से पढ, ऊपर लि‍खा है एम्‍स!
- तो!
- तो क्‍या, गि‍रे तो बस को एम्‍स ले चलेंगे, नहीं तो इंडि‍या गेट !!




जि‍तेन्‍द्र भगत

Thursday 3 November 2011

रि‍मोट कंट्रोल

(1)

-बेटा
-.............
-तुम पॉंच साल के होने वाले हो
-पॉंच यानी फाइव इयर, मेरा बर्ड-डे कब आ रहा है पापा। बताओ ना!
- बस आने ही वाला है। पर ये बताओ तुम मम्‍मा, नानू,नानी मॉं और दूसरे लोगों से बात करते हुए 'अबे' बोलने लगे हो।
बड़े लोगों को 'अबे' नहीं बोलते
, ठीक है!
-तो छोटे बच्‍चे को तो बोल सकते हैं!
-हॉं... नहीं कि‍सी को नहीं बोलना चाहि‍ए।
अच्‍छी बात नहीं है।
-मोहि‍त और आदि‍ को तो बोल सकता हूँ, वो तो मेरे साथ ही पढ़ता है।
- मैंने कहा ना- 'अबे' कि‍सी को नहीं बोलना,ठीक है
- ठीक है 'अबे' नहीं बोलूँगा।
- याद रखना
, तुम्‍हे दुबारा कहना ना पड़े।
- 'अबे' बोला ना, नहीं बोलूँगा!!

(2)
- बेटा!
- हॉं पापा!
- तुम बदमाश होते जा रहे हो। तुमने मोहि‍त को मारा।
-
नहीं पापा, पहले उसने ही मारा था। मैंने उसे कहा कि‍ मुझसे दूर बैठो मगर वह मेरे पास आकर मेरी कॉपी............
- चुप रहो, मुझे तुम्‍हारी टीचर ने सब बता दि‍या है, तुमने उसकी कॉपी फाड़ी और उसे मारा भी
अब माफी के लि‍ए गि‍ड़गि‍ड़ाओ वर्ना इस बार न बर्ड डे मनेगा ना गि‍फ्ट मि‍लेगा!
- ठीक है- गि‍ड़-गि‍ड़- गि‍ड़-गि‍ड़- गि‍ड़-गि‍ड़-................

(3)
- पापा, ये रि‍मोट वाली कार दि‍ला दो ना!
- नहीं, अभी चार दि‍न पहले ही तो मौसा ने गि‍फ्ट कि‍या था।
- पर वो तो खराब हो गई!
- उससे पहले संजय चाचू और मामू भी ने भी तो रि‍मोट वाली कार दि‍लवाई थी बेटा!
- पर आपने तो नहीं दि‍लवाई ना, प्‍लीज पापा, दि‍ला दो ना- दि‍ला दो ना!
मैं फि‍र दुबारा नहीं मॉंगूँगा, प्‍लीज-प्‍लीज!

- ठीक है, पर ध्‍यान रखना, दुबारा नहीं मॉंगना,और कार टूटनी नहीं चाहि‍ए। ये लो!
-ठीक है
!
- अरे मोहि‍त, तू कहॉं जा रहा है ? पापा ये मोहि‍त है, मेरे स्‍कूल में पढता है।
पापा मैं इसके साथ खेलने जा रहा हूँ, बाय
!
- अरे कार तो लेता जा.....रि‍मोट वाली.......!!??
- आप इसे घर ले जाओ, ठीक से रख देना मैं आकर इससे खेलूँगा!

मैं मार्केट से घर जाते हुए सोचता रहा कि‍ बचपन में मेरे पि‍ता जी का मुझपर कि‍तना कंट्रोल रहा होगा........