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Friday 24 April 2009

चलो बुलावा आया है......

धर्म के बहाने यात्रा या यात्रा के बहाने धर्म का नि‍बाह हो जाना अच्छा लगता है। अगर धार्मिक स्थल पर भीड़ अपेक्षा के बि‍ल्कुल वि‍परीत हो, तो इसका भी अपना आनंद है। मैं बात कर रहा हूँ, वैष्णों देवी (जम्मू) की यात्रा की। कल शाम ही लौटा हूँ, शरीर पूरी तरह थकान से उबरा नहीं है। वि‍स्तृत वि‍वरण एक-दो दि‍न में पोस्ट करुँगा, फि‍लहाल आप सबको जय माता दी !!

Friday 3 April 2009

राह से गुजरते हुए.......

अजनबी हो जाने का खौफ
बदनाम हो जाने से ज्यादा खौफनाक है।
अकेले हो जाने का खौफ
भीड़ में खो जाने से ज्यादा खौफनाक है।

कि‍सी रास्ते् का न होना
राह भटक जाने से ज्यादा खौफनाक है।
तनाव में जीना
असमय मर जाने से ज्या‍दा खौफनाक है।

इनसे कहीं ज्यादा खौफनाक है-
आसपास होते हुए भी न होने के अहसास से भर जाना.........

-जि‍तेन्द्र भगत

( चाहा तो था कि‍‍ ब्लॉग पर नि‍रंतरता बनाए रखूँ, पर शायद वक्त कि‍सी चौराहे पर खड़ा था, जहॉं से गुजरनेवाली हर सड़क मुझे चारो तरफ से खींच रही थी, वक्त‍ के साथ मैं भी बँट-सा गया था...... आज इतने अरसे बाद वक्त ने कुछ यादें बटोरने, कुछ यादें ताजा करने की मोहलत दी है, अभी तो यही उम्मीद है कि‍ वक्त की झोली से कुछ पल चुराकर इस गली में आता-जाता रहूँगा। )