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Saturday, 13 September 2008

ब्‍लॉगिंग में गि‍रोहबंदी : एक अप्रि‍य सच!!

कुछ दि‍न पहले ब्‍लॉगरों को एक-दूसरे की पोस्‍ट पर टि‍प्‍पणी करने के लि‍ए समीर जी और शास्‍त्री जी द्वारा एक सार्वजनि‍क आग्रह कि‍या गया था, तब मुझे लगा था कि‍ हि‍न्दी के प्रचार-प्रसार के लि‍ए कुछ लोग तहे-दि‍ल से प्रयास कर रहे हैं, और इसके लि‍ए लोगों को ब्‍लॉग के माध्‍यम से हि‍न्‍दी लि‍खने-पढ़ने के लि‍ए प्रेरि‍त कि‍या जा रहा है। यह शुभ संकेत था। लेकि‍न ज्ञानदत्‍त जी अपने लेख- ‘टीपेरतंत्र के चारण’ में जि‍स राजशाही की कामना करते देखे गए, वह ब्‍लॉग-जगत की संरचना और मनोवि‍ज्ञान पर गहरे आघात से कम नहीं था!

ज्ञानदत्‍त पाण्‍डेय जी के लेख में कल इस ओर चि‍न्‍ता जाहि‍र की गई थी कि‍ ब्‍लॉग के लोकतंत्र में टि‍प्‍पणी करने वाले ज्‍यादातर लोग चापलूस हैं और चारण बनकर प्रशस्‍ति‍ गायन के लि‍ए दो-चार घि‍सी-पीटी टीपी गई टि‍प्‍पणि‍यों के सहारे अपनी जीवि‍का चला रहे हैं। मेरे ख्‍याल से ब्‍लॉग-जगत के लि‍ए यह एक खतरनाक वि‍चार था।

ब्‍लॉग-जगत में अभी तक तो अच्‍छे लेखन को तवज्‍जो दी जाती है, लेखक की हैसि‍यत को नहीं, और यह हमारी इस दुनि‍या से बि‍ल्‍कुल अलग है, जहॉं छपने के लि‍ए आपकी सि‍फारि‍श, खानदान, सि‍यासी रि‍श्‍ते और पार्टी लाइन की पहुँच देखी जाती है।
मैं ये नहीं जानता कि‍ मैं कैसा लि‍खता हूँ, और मेरी तरह दूसरे ब्‍लॉगर भी ये नहीं जानते, पर सबसे ज्यादा सकून इस बात का है कि‍ हमें यहॉं अपने दि‍ल की बात, अपनी सोच, अपनी रचना दुनि‍या में प्रकाशि‍त करने के लि‍ए भ्रष्‍ट-तंत्र से होकर नहीं गुजरना पड़ता।

जब मैंने 1999 में अपना एक पहला उपन्‍यास लि‍खा था,(जि‍से आखि‍री उपन्‍यास कहने के लि‍ए बाध्‍य हूँ) तब उसे दरवाजे के बाहर यह कहकर फेंक दि‍या गया था कि‍ बड़े-बड़े और नामी लेखक अभी लाइन में हैं और आपका नाम तो कहीं सुना भी नहीं! जाइए, पहले छोटी-मोटी पत्रि‍काओं में नाम कमाइए, फि‍र बड़े प्रकाशकों का दरवाजा खटखटाइए। उन्‍हीं दि‍नों एक सेमि‍नार में एक घटि‍या उपन्‍यास का बाइज्‍जत लोकार्पण हुआ था, क्‍योंकि‍ उस उपन्‍यास के लेखक की सि‍यासी पहुँच थी।

प्रति‍ष्‍ठि‍त पत्रि‍काओं में अब जो कुछ लि‍खा जा रहा है, जरा पूज्‍यभाव त्‍यागकर उसे पढ़ें और उसके स्‍तर का अंदाजा लगाऍं। मेहनत और सच्चे दि‍ल से लि‍खी गई रचनाओं में ईमानदारी दूर से ही झलकती है। पर अधि‍कांश लेखों की वायवीय बातें, सतही बातें, दार्शनि‍क मुद्रा बनाकर धमकाती, डराती बातें और भी न जाने क्‍या-क्‍या चीज़ें आपमें आकर्षण-वि‍कर्षण पैदा कर जाती हैं! इसलि‍ए वहॉं की लफ्फाजी और गि‍रोहबंदी से घबराकर कई लोगों की तरह मैं भी ब्लॉग-लेखन के तालाब में कूद गया। अभी तो छोटी-बड़ी सभी मछलि‍यों में यहॉं भाईचारा है, पर यह भी सत्‍य है कि‍ छोटी मछलि‍यॉं बड़ी मछलि‍यों का चारा है।

ब्‍लॉग-जगत में अभी मामूली गि‍रोहबंदी है, कट्टरता के स्‍थान पर स्‍वस्‍थ हास-परि‍हास है, आनंद और दि‍ल्‍लगी की छुअन है। पर जि‍स दि‍न गि‍रोह-बंदी और बाबागि‍री यहॉं चरम पर होगी, ब्‍लॉग भी उन्‍हीं आरोपों से ग्रस्‍त होगा, जि‍सके लि‍ए तथाकथि‍त साहि‍त्‍य जगत और मीडि‍या पत्रकारि‍ता बदनाम है।

आइए, हि‍न्‍दी दि‍वस के अवसर पर अपनी मनोभावना को हि‍न्‍दी में लि‍खकर उस भ्रष्‍टतंत्र को ठेंगा दि‍खाऍं, जहॉं प्रकाशन-तंत्र की उपेक्षा और उदासीनता से कई लेखकों को जन्‍म से पहले भ्रूण में ही मार दि‍या गया था, लेकि‍न ब्‍लॉग-जगत में उनका पुर्नजन्‍म हुआ, इस भरोसे के साथ कि‍ यहॉं तुम खुद ही लेखक हो, खुद ही प्रकाशक हो और खुद ही प्रमोटर। ज्ञानदत्‍त जी, हमारा ये भरोसा टूटने मत दीजि‍एगा!



(अगर कुछ लोगों को नए ब्‍लॉगर की हैसि‍यत से मेरी यह हि‍माकत ‘छोटी मुँह बड़ी बात’ लगती हो तो समझ जाइए कि‍ लोकतंत्र और राजतंत्र के बीच का फासला घट रहा है!)
(सभी चि‍त्रों के लि‍ए गूगल का आभार।)

55 comments:

Gyan Dutt Pandey said...

अरे बिरादर! कहां ले गये हमारी पोस्ट को। एक व्यक्ति की अपने आप पर सोच उसी स्पिरिट में ली जानी चाहिये।

और हां, हम तो अकेले चले थे ब्लॉग जगत में और अब भी अकेले हैं। नो घेट्टो, नो गिरोह। तभी शायद यह लिख लेते हैं। अन्यथा किसी गुट को प्रोमोट कर रहे होते! :)

विवेक सिंह said...

आपके विचारों से पूर्णरूपेण सहमत हूँ . किन्तु एक तथ्य की ओर ध्यानाकर्षित करना चाहूँगा . पिछले सप्ताह ज्ञानदत्त जी ने एक पोस्ट भेजी थी जिसका शीर्षक था "आप अपनी ट्यूब फुल कैसे रखते हैं, जी ?" . मेरे विचार से वह पूर्व चेतावनी थी कि उनके पास कहीं न कहीं स्तरीय सामग्री का अभाव हो रहा है . वैसे ज्ञानदत्त जी की तारीफ करना चाहूँगा कि कल वाली पोस्ट पर उन्होंने कम से कम मेरी टिप्पणी को तो सबके सामने आने दिया . हालाँकि मैंने अपने जानते तो काफी कडे शब्दों में उनका विरोध किया था . पर हाँ ऐसे लेखों पर जो प्रतिक्रियाएँ आती हैं उनका उत्तर तो लेखक को देना ही चाहिए. चाहे दूसरे दिन ही सही .

Anonymous said...

घेट्टो कहते थे उस जगह को जहां सबसे निचले तबके को समाज से दूर फेंका जाता रहा है

जैसे यहूदिओं के साथ हिटलर ने किया
जैसे काले इन्सानों के साथ गोरों ने किया

घेट्टो कोई गिरोह, कोई गुट नहीं. वो तो शक्तिशालियों द्वारा बनाया गया कूड़ेदान है जिसमें वो कमजोरों को डालते थे

और फिर उन्होंने घेट्टो को बनाया गिरोह, अपराध का पर्याय, कमजोरों को घृणित भी बनाने के लिये

घेट्टो न कहें, यहां जो भी है

Anonymous said...

yahaan koi hindi ko aagey nahin laa rahaa , koi hindi ko badhaava nahin dae raaha
sab kewal chahtey haen ki unkae chittaeh par jaaya jayae
chahey sameer ji ho yaa saarthi vaaley shashtri ji sabke blog kaa address unkae lament kae neechaey jadaa hota haen
apna pracaar karey haen sab
ek tipaani banaa lii sab jagah paste kardiya
aur group bikul baney huae haen
aghoshit bhi aur ghoshit bhi
abhi naye nayae ho hindi bloging mae jaldi hee sabko unkae asli rango mae pehchanae lagogae
aur ek baat bataye hindi prachaar parassar mae sabse aagey hotey haen saarthi lekin english adsense sae paesa kameny mae koi aapti nahin haen
GUT HAEN TAGDAEY GUT HAEN AUR AAP KO PANPANEY NAA DAENEY KI SAAJISH MAE AUR APNEY KO HINDI BLOGING KAA VIDHAATA KEHNEY MAE JUTEY HAEN
tippani ki chinta kae bina likhey aur wahi tippani karey jahaa jarurii ho

Anonymous said...

बस करो anonymous सबकी पोल आज ही खोल दोगे क्या?

डा. अमर कुमार said...

.


यह जो जितेन्दर है.. यह कोई भगत नहीं है, यह तो साफ़ होगया ।भगत लोग तो अपने निस्पृहता का आवरण ओढ़ मौका ए वारदात से पलायन कर एक सेफ़ डिस्टेंस से टुकुर टुकुर देखते रहते हैं ।
सो, उनकी भगतई को मैं ख़ारिज़ कर रहा हूँ ।

बस यही कहना चाहूँगा कि भ्रष्टतंत्र का ठेंगा इतना विकराल विशाल हो चुकी है, कि हमारा बौना सा ठेंगा दिखाने की भगतई बदले में केवल हताशा और कुंठा ही देने वाली है..

सो, पहले इनके ठेंगे को बौना करने के लिये, हमें अपनी अपनी एक नि८जी आचार संहिता दिखानी पड़ेगी... इति शुभम भ्रूयात !

ताऊ रामपुरिया said...

अरे भई जीतेन्द्र जी आज थमनै घणा बढिया मसाला छाप राख्या सै इस पोस्ट म्ह ! तो भई आज आवैगा टिपणी करण का असली मजा ताऊ को ! आपने जो प्रकाशन संबंधी बातें बताई वो आपकी सौ प्रतिशत सही हैं ! हालांकि मुझे
इन सब से होकर नही गुजरना पडा ! क्योंकि मैंने ब्लागिंग से पहले कुछ लिखा ही नही ! :)
आप वहा तभी छप सकते हैं जब आप एक ब्रांड बन चुके हो या आपकी शख्शियत हो !


फ़िर आते हैं ब्लागिंग पर ! आपकी इस बात से मैं सहमत नही हूँ की "अभी तो छोटी-बड़ी सभी मछलि‍यों में यहॉं भाईचारा है, पर यह भी सत्‍य है कि‍ छोटी मछलि‍यॉं बड़ी मछलि‍यों का चारा है।"


इसमे भाईचारा है की नही इस पर कोई कमेन्ट नही करूंगा क्योंकि ये तो एक परिवार में कभी हो ही नही सकता ! चार आदमियों के परिवार में भी गुट बाजी रहती है तो यहाँ तो काफी सारे होंगे ! आप मुझको ही देखलो मैं और ताई दो ही जनों का परिवार है और हम में भी गुट बाजी है , वो लट्ठ लिए मेरे पीछे ही रहती है ! तो स्वाभाविक है थोड़ी बहुत गुटबाजी तो होगी ही ! और अगर आप ये सोचे की आपको या मेरे को सारे ब्लॉगर ही अपना ले तो भाई भूल जावो ! जैसे हम सबको नही पढ़ते वैसे हमको भी सब नही पढ़ते ! अब इसे गुटबाजी मान लीजिये या जो भी ! पर चारा वाली बात सही नही है


क्योंकि आपने ख़ुद कहा है की यहाँ लेखन प्रकाशन सबकी स्वतन्त्रता है ! हम अपने आपको छोटी मछली क्यूँ माने ? और अन्य किसी को बड़ी मछली का दर्जा क्यों दे ?

आपकी बात मैं समझ गया हूँ पर चूंकी मैं ताऊ बुद्धि है इसलिए समझा नही पा रहा हूँ ! देखिये आप और मैं यहाँ अभी चार दिन पहले अवतिरण हुए हैं ! और जो लोग यहाँ वर्षो से हैं उनकी पहचान उनके लेखन को आप नही दे तो भी समय
ने बनादी है ! और एक दिन अगर हम टिके रहे तो हमारी भी बन जायेगी ! अब जैसे पिछले दिनों ही गुरु समीर जी ने संन्यास की घोषणा करदी ! और आप देखिये उनके दरवाजे पर लाइन लग गई ! इतनी मान मनुहार हुई की तीसरे ही दिन टन्कीया से उतर कर मैदान संभाल लिया ! और जो लोग मन ही मन राजी हो रहे थे की चलो अच्छा हुवा , जगह खाली हुई अब टिपण्णी का मैदान खाली हुवा ! और यही घोषणा आप या मैं करके देख ले - मान मन्नोवल तो छोडिये , ये भी पता यहाँ नही लगेगा की आप और मैं यहाँ किस गली से आए थे और किस गली में चले गए ! तो दोस्त अपना भी एक गुट बनाओ और थोड़े पुराने होने का इंतजार करो ! क्योंकि पुराने चावल खाने में और सुगंध में शानदार होते हैं और अगर मालुम नही हो तो घर में पूछकर देख लेना ! :)


अब टिपण्णी पर - भाई हमने तो सिद्धांत बना लिया है आप चाहो तो आप भी अनुसरण कर लीजिये ! ये ताऊ की भैन्स और लट्ठ वाला सिद्धांत है ! ऐसे ही समझ लो जैसे पाइथोगोरस की प्रमेय ! :) हमको कोई १ टिपणी देता है हम बदले में ३ टिपणी देते हैं ! अगर सामने से निरंतरता चालु रही तो अनुपात बढ़ता रहेगा ! हम किसी भी हमारे लिए नए ब्लागरिए
(तथाकथित) छोटे या बड़े के ब्लॉग पर ३ टिपणी करते हैं और इस बीच हमारी पोस्ट पर कमेन्ट नही आया तो फ़िर उसका नाम हमारी याद दाश्त से निकाल देते हैं फ़िर वो चाहे कितना ही बड़ा स्वनाम धन्य क्यूँ ना हो ! फ़िर हमारे यहाँ उसका खाता तभी खुलता है जब वो हमारी ३ पोस्ट पर हमारी मन मर्जी के कमेन्ट करे ! :) और ऐसे कई है भी ! हमसे बहुत
प्रार्थना कर लिए हम उनका खाता ही नही खोलते ! :) अरे यार ये भैंस & लट्ठ बैंक है , कोई बिना पेन कार्ड के खाता खुल जायेगा क्या ? :) कृपया नया खाता khulawaane के इच्छुक या खाता रिन्युअल करवाने वाले ध्यान दे ! :)
अब हमारी पोस्ट पर आपने पहली टिपणी की थी और ताऊ के लट्ठ की महिमा स्वीकार ली थी तो हम भी कितनी मील भर लम्बी टिपणी कर रहे हैं ना ? इसे कहते हैं भैन्स और लट्ठ का सिद्धांत ! एक बार लालूजी की जय बोलिए !

भाई हमारी पोस्ट की उम्र २४ घंटे होती है और कई बड़ी २ दोस्त हस्तियाँ , स्वनाम धन्य और पता नही कौन कौन अभी तक हमारी पोस्ट पर टिपणी करने नही आया ! और हमारे पेट में मरोड़ ऊठने लग गया है अगली पोस्ट का ! अब क्या करे ? किसी तरह दो घंटे और उनका इंतजार करते है ! नही तो उनका भी १ नंबर कट हो जायेगा ! कई कई का ये आखिरी चांस है !
दो गैर हाजिरी पहले ही लग चुकी है ! और इनसे तो ताऊ की भैंस और लट्ठ ही हिसाब कर लेगा ! :)

और भाई मेरी एक बात और सुन ले टिपणी संख्या को बढ़ाने की , किसी को बताना मत ! :) हर टिपणी पर टिपणी में ही जबाव दिया करो ! नही समझे ? अरे भाई मान लो आपको २० टिपणी मिली और २० ही टिपणी पर आपने टिपणी रूपी जवाब दिया तो टिपणी संख्या ४० हो जायेगी ! :) क्यूँ कैसा आइडिया है ? भाई मेरी बात मान ! ताऊ के साथ गुट बनाले फ़िर तेरी बुद्धि और ताऊ का लट्ठ ! समझले अपने दोनों के अलावा यहाँ किसी को अपण टिकने ही ना देंगे ! : ) अगर मंजूर हो तो टिपणी में ही जबाव देना जिससे ताऊ का एक फारमूले का प्रेक्टिकल हो जायेगा ! :)

और अंत में सही बात ये है की आज मेरी ब्लॉग लिस्ट पर आपकी पोस्ट के अलावा मेरे को टिपणी करने के लिए कोई पोस्ट दिखी नही और ताऊ आज पोस्ट क्यूँ नही लिख रहा ये बता चुका हूँ ! सो भाई मैंने सोचा की आपका ही माथा खालू ? :) और मेरा रविवार का समय पास कर लूँ ! मुझे झेलने के लिए धन्यवाद ! और अगर कुछ ग़लत लगे तो अपनी टिपणी पबलिश मत करना ! और अगर सीधे पबलिश हो जाए तो डिलीट करने की आपको छुट है ही ?

बस मैं तो एक अपील सबसे करना चाहता हूँ की " हे ब्लागारियो , तुम मुझे टिपणी दो ! मैं बदले में तुमको भैन्स (दूध पीकर मोटे ताजे होने के लिए ) और लट्ठ ( अन्याय से लड़ने के लिए ) दूंगा !

मोहन वशिष्‍ठ said...

भाई जितेन्‍द्र जी आप बिल्‍कुल ठीक कह रहे हो लेकिन मन छोटा ना करो हिंदी तो हमारी मातृभाषा थी है और रहेगी हम और तुम क्‍या कर लेंगे और रही बात टिप्‍पणी करने की तो ब्‍लॉग-जगत में अभी तक तो अच्‍छे लेखन को तवज्‍जो दी जाती है, लेखक की हैसि‍यत को नहीं, और यह हमारी इस दुनि‍या से बि‍ल्‍कुल अलग है, जहॉं छपने के लि‍ए आपकी सि‍फारि‍श, खानदान, सि‍यासी रि‍श्‍ते और पार्टी लाइन की पहुँच देखी जाती है।

bhuvnesh sharma said...

बिरादर आप बेकार ही चिंता कर रहे हैं....ऐसा कुछ भी होने वाला नहीं है.

मैं आपके ब्‍लॉग को पढ़ रहा हूं कुछ समय से तो केवल इसीलिए कि मुझे आपका ब्‍लॉग अच्‍छा लगता है....ज्ञानजी की तो लगभग शुरू से लेकर अब तक ज्‍यादातर पोस्‍टें पढ़ी हैं....जबकि आप दोनों से ही कभी इण्‍टरेक्‍शन नहीं हुआ.

बहुत से नामी-गिरामी ब्‍लॉगर भी हैं यहां, पत्रकार भी हैं यहां....पर उनका ब्‍लॉग फिर भी नहीं पढ़ता, यहां केवल गुणवत्‍ता की कदर है और पाठक के पास विकल्‍प है कि वह किस ब्‍लॉग पर जाए किस पर ना जाए.
बहुत समय से देख रहा हूं कि यहां कुछ लोग मठाधीशी के चक्‍कर में घुस आए हैं....वे अखबारों, पत्रिकाओं में भले ही अपने ब्‍लॉग पते छपवा लें पर वास्‍तव में ब्‍लॉग जगत में ही उनकी कोई औकात नहीं है.

गगन शर्मा, कुछ अलग सा said...

किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार,
किसी की मुस्कुराहटों का कर सत्कार,
सबके वास्ते रख दिल में प्यार,
ब्लागिंग इसी का नाम है।

Anonymous said...

ब्‍लॉग-जगत में अभी तक तो अच्‍छे लेखन को तवज्‍जो दी जाती है, लेखक की हैसि‍यत को नहीं. फ़िर आप किसलिए डर रहे हैं ?
anonymous जी ने भी कमाल कर दिया पोल खोल के.
उनसे एक सवाल था कि यदि आप के सामने हिन्दी के उत्थान की बात आए तो नए चिट्ठों को टिप्पणियों के द्वारा प्रोत्साहित करना कैसे ग़लत है. नए चिट्ठे बनेंगे, टिप्पणियों से प्रोत्साहन मिलेगा तभी तो यह ब्लॉग आगे बढ़ेंगे, नहीं तो ये नवांकुर, नन्हीं कोंपलें, नष्ट हो जायेंगी. आप ख़ुद प्रमाण स्वरूप चिट्ठाजगत से पता कर सकते हैं कि कितने चिट्ठे बने हैं, कितने सक्रिय हैं और कितने मर चुके हैं. दुःख की बात है चिट्ठों के मरने की संख्या का प्रतिशत बढ़ता ही जा रहा है. हाथ जोड़ कर निवेदन है कि हिन्दी को मरने मत दें , उनमें पनप रही भाषा को जिलाए रखें जबतक कि वो सशक्त नहीं हो जाती.
अभी चिट्ठा-जगत शैशवावस्था में है, अभी इसे प्रेरित करें. उंगलियाँ पकड़ कर चलना सिखा दीजिये फ़िर तो ये कुछ समय बाद दौड़ने लगेंगे. फ़िर आप यदि टिप्पणियों से रिटायरमेंट ले लेंगे तो भी कुछ न बिगडेगा.

एक टिपण्णी और एक विज्ञापन क्लिक संवार सकती है कई जिंदगियां.
' ब्लॉग्स पण्डित '

Udan Tashtari said...

उपर उड़न तश्तरी के नाम से जो टिप्पणी की गई है वो मेरी नहीं है. जिस किसी ने यह प्रयास किया है, उसे बहुत साधुवाद कि उन्हें स्वयं के नाम की जगह मेरे ब्लॉग का नाम ज्यादा पसंद आया. आभार.

रंजन राजन said...

......ज्ञानदत्‍त पाण्‍डेय जी के लेख में कल इस ओर चि‍न्‍ता जाहि‍र की गई थी कि‍ ब्‍लॉग के लोकतंत्र में टि‍प्‍पणी करने वाले ज्‍यादातर लोग चापलूस हैं और चारण बनकर प्रशस्‍ति‍ गायन के लि‍ए दो-चार घि‍सी-पीटी टीपी गई टि‍प्‍पणि‍यों के सहारे अपनी जीवि‍का चला रहे हैं। मेरे ख्‍याल से ब्‍लॉग-जगत के लि‍ए यह एक खतरनाक वि‍चार था।.....
बिरादर आपके विचार से सिर्फ सहमत हुआ जा सकता है। किसी और स्थिति की गुंजाइश नहीं है।
मैं तो आपको जानता तक नहीं। मैं भी आपके ब्‍लॉग को पढ़ रहा हूं कुछ समय से तो केवल इसीलिए कि मुझे आपका ब्‍लॉग अच्‍छा लगता है

Anonymous said...

नए चिट्ठों को टिप्पणियों के द्वारा प्रोत्साहित करना कैसे ग़लत है
yae kab kehaa haen maene anaam hun iska matlab yae nahin ki blogger nahin hun
maene kehaa ki ek hi tippani ko cut paste kareny sae kyaa laabh hota haen
aur jab aap ka blog aapke profile parhaen to uska link kaemnt mae daene sae kewal apn prachaar hota haen protsaahan nahin
to sach kaho
aao hamko padho is liyae ham tipaaiyatey haen

प्रवीण त्रिवेदी said...

पिछले 5-6 महीने से समझ रहा था / लेकिन लगता है अभी और समझते ही रहना होगा/

समय लगे तो पधारियेगा
http://primarykamaster.blogspot.com/
http://fatehpurcity.blogspot.com/

मसिजीवी said...

जितेंद्र,

हमारी धारणा शून्‍य में निर्मित नहीं होती, उसका एक संदर्भ होता है। चूंकि आप ब्‍लॉगजगत का संदर्भ वास्‍तविक प्रकाशन जगत से ले रहे हैं, अत: उस सापेक्षता में ही ब्‍लॉगजगत के गुण अवगुण दिख रहे हैं। हमारा तो आग्रह रहेगा है कि ब्लॉग के दुनिया के संप्रत्‍य इसी दुनिया से मौलिक तौर पर उभरने दें। गुट शायद हों...पर वे आभासी ही हैं।

ठग्‍गू की शबदावली उधार लें तो कोई ऐसा सगा नहीं जिसे (इसने) ठगा नहीं।


बिंदास लिखो

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

मैने भी जब ब्लॉग लिखना शुरु किया था तो महीने भर के भीतर ही ऐसे विचार मन में उठे थे। इस कविता के माध्यम से अपनी बात कहनी चाही थी।

मुझे तो ये लगता है कि इस माध्यम में गुटबाजी और महन्थी से बहुत फर्क नहीं पड़ने वाला है। जो स्थापित और सम्मानित ब्लॉगर हैं उन्हे अब भी रोज उतनी ही मेहनत करनी पड़ती है। बल्कि हम-आपसे ज्यादा ही। क्योंकि, उनसे सबकी अपेक्षाएं बढ़ी हुई हैं। वे चार दिन गायब हो जाते हैं तो सफाई देनी पड़ती है। शायद खुद ही बेचैन हो जाते हों।

यहाँ तो रोज कुआँ खोदना है, और रोज पानी पीना है। बस अधिक से अधिक पढ़ने और अच्छा से अच्छा लिखने पर ध्यान देना है। अपनी सुविधा के अनुसार छपना और छापना है।

बस, जमाए रहिए जी।

महेन्द्र मिश्र said...

jara sidhdharth tripathi ji ke vicharo par jara gour faramaye . mai unse poornrup se sahamat hun.

दिनेशराय द्विवेदी said...

कोई आप पर टीपता है या नहीं इस से कितना फरक पड़ता है। आप तो समझ लीजिए कुएँ की जगत पर खडें पानी भर रहे हैं। रस्सी जितनी बार अंदर बाहर होगी जगत के पत्थर पर निशान करेगी।

रंजन (Ranjan) said...

ब्लोग पढ़ते हुए शायद डेढ साल हो गये.. लिखा तो कम है पर पढ़ना नियमित है..
जो बात आपने कही वो काफी़ हद तय सही लगता है..

जितना लिख सकों लिखों..
जितना पढ़ सकतें है पढ़ो..

बाकी तो चलता रहेगा..

श्रद्धा जैन said...

Jitendra ji aapki baat padhi

tippni ki baat bahut normal si baat hai agar ise human basic nature le le to ise digest karne main pareshani nahi hogi

sabhi ko apni cheez sabse zayada achhi lagti hai aur hum jo likhte hain chahte hain ki wo sab tak pahunche

aapne dekha hoga orkut par personal sabko link bhi diye jaate hain
to fir kisi ek ka naam lena to bekar hi hai
ye to almost sabhi kar rahe hain

aur rahi baat gut bazi ki to mere hisab se ise aise samjhe ki

har insaan ka ek star hai soch ka
pasand hai

jaha bhi use wo soch milti hai wo use padhne lagta hai
aur jaha nahi pasand aata waha dubara nahi jata
wo koi naya chitha bhi ho sakta hai
koi bhaut purana bhi


yaha sabhi buddhijivi log hai
agar hum unko kuch soch de sakte hain
unke star par jakar baat kar paate hain to wo log khud ba khud padhne chale aayenge

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

bhai logon ne bahut kuchh kah diya, ab kya kahoon, lekin chalna jeevan kaa naam, ekla chalo re

डॉ .अनुराग said...

बिरादर पहले तो वो बाँट लूँ आपसे जों मैंने ज्ञानदत जी के ब्लॉग पर भी लिखा था (यधपि आज छुट्टी कि वजह से सिर्फ आपको टिपिया रहा हूँ )-

ब्लॉग लेखन अभिव्यक्ति का महज़ एक साधन है ,जाहिर है यहाँ ग़ालिब को पसंद करने वाले लोग भी है ,beatles को सुनने वाले भी ...कोई अपनी पसंद का गीत बांटना चाहता है ....कोई असहज है कोसी पर .....कोई इस देश में फैली भाष्वाद की राजनीती से कुंठित है.अब इसमें दिल्ली ब्लास्ट से उपजा दुक्ल्ह ओर गुस्सा भी जुड़ गया है .......................कुल मिलाकर सबके भीतर अलग अलग की तरह बैचैनिया है....यही ब्लॉग जगत है....जाहिर है एक दूसरे को खारिज नही कर सकता ...इस समूह के कुछ शिष्टाचार है....टिप्पणी उसका एक अंग है ..
हर व्यक्ति लेखक नही होता ..(ओर ब्लॉग लेखन के लिए ऐसा होना जरूरी नही है ).मुझे अगर कविता से ऐतराज है तो सिर्फ़ मेरे कहने से कविता खारिज नही हो जाती ....ग़ालिब की एक अलग दुनिया है.......संगीत की एक अलग दुनिया है ....यानी कि अभिव्यक्ति एक जरूरी पहलु है ,विधा नहीं.
ऐसा क्यों है कि हम सिर्फ उन्हें पसंद करते है जों हमारी प्रशंसा करते है ?क्यों हम वैचारिक असहमति को अपना विरोध मान लेते है ? क्यों हम एक ब्लोगर का नैतिक आधार पर भी विरोध करने मे घबराते है ये जानते हुए भी की वो गलत है महज़ एक टिपण्णी के लालच मे ? जब हम स्वस्थ बहस का नारा देते है तो क्यों निजता का उलंघन करते है ?क्यों यहाँ लोगो के "बौद्धिक अंहकार "इतने बड़े है ?
बड़े ब्लोगर कौन है ?कद मे बड़े ?उम्र मे बड़े ?मैं आज तक नहीं ढूंढ पाया ?सच बतायूं मुझे इस विषय पर बहस भी बेमानी सी लगती है ...ढेरो ऐसे ब्लोगर है जिन्हें मैं तबसे पढता आया हूँ जब ब्लोगिंग मे आया नहीं था वे आज भी उसी एनर्जी ओर लगन से लिख रहे है भले ही उन्हें कोई टिपियाये या नहीं...उन्होंने कभी इस विषय पर लेख नहीं लिखे

राजेंद्र माहेश्वरी said...

मेरी यह हि‍माकत ‘छोटी मुँह बड़ी बात’ लगती हो तो समझ जाइए कि‍.....

जिसके साथ सत्य हैं वह अकेला होते हुए भी बहुमत में है।

Anil Pusadkar said...

karma kiye ja phal ki chinta mat kar aye blogger mahaan

Anonymous said...

MAAFI CHAAHUNGAA AAJ MERAA COMPUTER HINDI MEIN TYPE NAHEEN KAR PAA RAHAA.
RANJAN JEE KEE TIPPANI KO AATMSAAT KARIE KI JITNAA PARH SAKTE HO PARHO AUR JITNAA LIKH SAKTE HO LIKHO...BAAKEE SAB UDAN TASHTARION PAR CHHOD DO....

Anonymous said...

जा की रही भावना जैसी , तिन देखी प्रभु मूरत तैसी . ज्ञान जी पुराने महंतो अनूप जितेंद्र के साथ खडे होकर सही लिख गये है. वहा हमेशा गुट बाजी थी है और रहेगी इस बारे मे ज्ञान जी से ज्यादा कौन जानता है

Arvind Mishra said...

सहज हैं आपकी बातें -निसंदेह हम इस नए अभिव्यक्ति के माध्यम को अनेक उन बुरी बातों जिनका आपने तफसील से जिक्र किया है की बलि नही चढ़ने देना चाहते ! आपकी यह खबरदार पोस्ट लोगों को नियमित रख सके -यही कामना है .

Anonymous said...

bilkul group baney haen yahaan tak ki ek samay mae agar gyan ki post naa ho to anup ki charcha hee nahin hotee thee phir ek din gyan kaa gyan jagaa usney anup ki khichaayee ki aur anup nae maana ki wo sahidar bloging mae ohas jaaney kae karan jyaada blogger ko nahin padh paaye
ab sahodar bloging kyaa hotee haen anup jaaney
aur ek hamarey ghost buster haen jinko gropu bloging sae sakht chidh haen kyuki par wo chokher baali kaa link lagana sahii mantey haen kyuki usii group kii upaj haen .
wo to hindi bloging mae aayae aur aatey hii unhoney sampark kiya un sab sae jo group mae they taaki pehli post likhtey hee 35 kament milae

Anonymous said...
This comment has been removed by the author.
योगेन्द्र मौदगिल said...

तस्वीर और उसके दो पहलुऒं वाली बात याद तो आत है मगर आप पर भी अविश्वास नहीं कर सकता
वैसे जो चल रहा है चलने दीजिये

Shastri JC Philip said...

ब्लागिग का लक्ष्य ही गुटबाजी से मुक्त होकर अपनी आवाज को स्वतंत्र अभिव्यक्ति देना है. अत: इधरउधर कुछ गुटबाजी हो भी जाये तो वह किसी लेखक की अभिव्यक्ति को दबा नहीं सकता!!



-- शास्त्री जे सी फिलिप

-- समय पर प्रोत्साहन मिले तो मिट्टी का घरोंदा भी आसमान छू सकता है. कृपया रोज कम से कम 10 हिन्दी चिट्ठों पर टिप्पणी कर उनको प्रोत्साहित करें!! (सारथी: http://www.Sarathi.info)

Asha Joglekar said...

क्या कह रहे हैं, सच्ची ऐसा हो रहा है ?

rakhshanda said...

अगर ऐसा है तो बिल्कुल ग़लत है...ब्लोगिंग इन सब चीज़ों से साफ़ पाक होनी चाहिए...लेकिन क्या किया जाए...जो हम चाहते हैं, जब दुनिया ऐसी नही है तो ब्लोगिंग कैसे हो सकती है...

sushil said...

भाईसाब ,क्या टिप्पणी लिखना जरुरी है.केवल ब्लाग पढ्ना नही?
सुशील

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