स्कूल से निकलकर कॉलेज में आया तो यहाँ का फैशन परेड देखकर आश्चर्य में पड़ गया। कुछ ही लड़के ऐसे होंगे जिनकी नाक के नीचे मूँछें टँगी हो। यहॉं तक कि जिन प्राध्यापकों की मूँछे नहीं थी, वे भी मुझे अजीब निगाह से देखते थे, एक प्राध्यापक तो कहने से भी नहीं चुके-
‘यार, स्कूल में ही मूँछे छोड़ आते, इसका भी माइग्रेसन सर्टीफिकेट बनवा लिया था क्या!'लडकों के साथ-साथ लड़किया भी हँस रही थी। इतनी बेइज्जती सहकर भी मैं चुप था। मेरा एक दोस्त सच्ची सलाह के लिए जाना जाता था। उसने कहा इसे मुँड़वा दो, बाद में चाहे तो फिर रख लेना।
मैने कहा बाप के जीते जी मैं ये कुकर्म नहीं कर सकता।
दोस्त को गुस्सा आ गया-
‘तो क्या यहाँ जितने मुँछमुण्डे घूम रहे हैं, उनके बाप मर गए हैं! यार, किस गॉव की बात मूँछ में लपेटकर घूम रहे हो तुम! ऐसे ही रहे तो लोग तुम्हारी मूँछों की कस्में खाने लगेंगे,अमिताभ बच्चन अपने डायलॉग से नत्थूलाल को रिटायर करके तुम्हे रख लेगा- ''मूँछे हो तो जीत्तू लाल जैसी''। बैंक और सुनारों की दुकान के आगे नौकरी लेनी है तो मूँछे बढ़ा!‘
इतनी भी बड़ी नहीं है भाई कि तुम ऐसे ताने मारो- मैने दुखी होकर कहा।
’तो अनिल कपूर की तरह भी नहीं है कि इसे सजाकर घूमो, शीशे में गौर से जाकर देखना,
लगेगा कि ‘गोलमाल’ के राम प्रसाद और लक्ष्मण प्रसाद का नकली मूँछोंवाला एक और भाई है। अब यार तेरे साथ चलने में भी बुरा लगता है, तेरी वजह से कोई लड़की मुझे भी भाव नहीं देती!‘
’मैं क्या करूँ दोस्त, अभी-अभी कोंपलें फूटी है, फलने-फूलने से पहले ही इसे कतर दूँ, ये मुझसे नहीं होता!‘
‘तुम्हें कुछ नहीं करना है, सब उस्तरे पर छोड़ दो!‘
आखिर वो दिन आ ही गया। शर्म से अपने पसीने में ही डूबा जा रहा था मैं। शीशे में लगता था मेरे सामने कोई दूसरा आदमी खड़ा है। हर जगह घूमते हुए मेरी अंगुलियाँ अक्सर ओठों के ऊपर कुछ ढ़ूँढ़ती-सी रहती थी, लोग सोचते थे शायद मनोज कुमार है या कोई चिंतक है।
कोई ये नहीं सोचता था कि मैं अपने खेत में फसल के उजड़ जाने से व्यथित हूँ। सिर्फ कॉलेज के लोगों को ही मेरे मुँह छिपाने की वजह का अंदाजा था।
अपने गुनाह के लिए मन ही मन मैं ईश्वर और अपने पिता जी से कई बार माफी मॉंग चुका था। लेकिन बाकी लोगों की तरह मैं भी धीरे-धीरे इस आपदा को भूलने लगा कि नाक के नीचे जो ऑंधी आई थी, उसमें सिर्फ बाल ही बॉंका हुआ था, किसी और के हताहत होने की कोई सूचना नहीं आई।
(पहली फोटो राज भाटिया जी के सौजन्य से, शेष के लिए गूगल का आभार)
Friday, 19 September 2008
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
40 comments:
बहुत रोचक सहज हास्य लिए हुए पोस्ट...आनंद आया...
नीरज
sahi hai. jari rhe.
me aapka veiw dekha. aapke favourite music par nazar chali gai. aapko jo gaane pasand hai. vo mujhe bhi bhut pasand hai. mera ek songs ka blog bhi hai. or ye gaane usme bhi hai. agar aap chahe to sun sakte hai.
गोलमाल पिक्चर देखते हुए जो हँसी आई थी ,वही इस पोस्ट को पढ़ते हुए आई ..रोचक किस्सा है यह दस्ताने मूंछ ..
" wah, kya dastan-e-mucheny hain, hans hans kr haal behaal ho gya hai.... very interesting"
Regards
bahut khub sir aapki post padhte hue haath baar baar sahaj hi apne moonchho(jo hain nahi...matlab ustariya diye gaye hain)ki taraf hi chala jaa raha tha ...
मुच्छे हो तो नत्थु लाल जै्सी... मजा आया..
हास्य विनोद का सुन्दर संगम । वाह
hamare college mein ek ladka moonchh mudwa kar aaya tha to ham sabne bahut hansi udaayi thi...aapke saath bhi aisa hi hua kya? :)
bahut achhe.. lekhan mein rochakta aarambh se ant tak hai.. jo ise vishisht banati hai..
baki moonch ke bina bhi aap smart to lag hi rahe hai.. :)
हा हा!! बहुत मजेदार-रोचक!!
बिरादर हमारे साथ उल्टा है ..... मूंछे कभी सूट नही हुई .....एक्साम टाइम में ओर कभी कभी शौंकिया जरूर दाढ़ी-मूंछ रखी....खास तौर से आशिकी वाले दिनों में.....
बहुत रोचक प्रसंग है. आपने बहुत विनोद के साथ याद किया है. बहुत अच्छा लगा पढ़कर.
हम तो पैदा ही बिना मूंछ के हुए थे। चोदह पंद्रह बरस बाद इस ने हमारे शरीर पर अतिक्रमण शुरू किया। जब भी हमें लगता कि ये जम जाएंगी तो हम इन्हें साफ कर देते। अब तो पिछले पैतीस बरस से ये रोज अतिक्रमण का प्रयास करती हैं वह भी रात के वक्त। हम हैं कि बस एक कप कॉफी सुड़क कर इन्हें बेदखल कर देते हैं।
कुछ ऐसी ही दास्ताँ अपनी भी है !
लेकिन एक बात सोचनीय..
ये मूंछें आखिर किस काम आती हैं..?
मूंछ कईं बार बस्स पंगा करवा देती हैं.......
और क्या..!!!!!!!!!!!!!!!!
सहज हास्य ! कमाल की रोचकता लिए हुए !
धन्यवाद !
कमाल कर दिया आज तो ! गजब ! गजब !! गजब !!!
यहाँ तो जबरदस्त मूंछ पुराण है ! पर क्या करें ?
हमतो जानते ही नही ये मूंछ क्या होती है !
पर लेखन की शैली शानदार है ! शुभकामनाएं !
बहुत बढिया ! तिवारी साहब का सलाम लीजिये इस लेखन के लिए !
Bahut badiya.
मूंछ मुंडवाने को लेकर इतनी बढ़िया पोस्ट
वाह वाह मज़ा आ गया
वीनस केसरी
अभी तक सिर्फ़ दाढी मुन्डवाने की हिम्मत जुटा पाया हु। सुनार और बैन्क के ्सामने की नौकरी तो नही चाहिये मगर कितनो आन्धी आ जाये नाक के नीचे बाल भई बान्का न हो सकेगा।बहुत मज़ेदार लिखा बहुत-बहुत बधाई
कमाल की रोचकता लिए हुए! सचमुच मजा आ गया।
मूंछ मुक्ति कथा!
मूछ वो मूछ है जिस मूछ ने पूछ बढा दी । तब नही तो अब ही सही । बढिया ।
बहुत ही उम्दा पर बिन मूछ सब सून नहीं है बंधु। मज़ा आगया।
niras n ho jaisa desh waisa vesh rakhna hi uttam hai.
बहुत रोचक रही आपकी दास्ताने-मुस्टाश. पढ़कर मज़ा आ गया.
sir u r composition is great
well done
tell me how i can make my page so lovely
regards
भगत जी आप की मुछों का हमे बडा दुख हुआ, राम राम, एक सलह अगर अगली बार मुछें रखो तो कुछ ऎसी रखे...
http://parayadesh.blogspot.com/2008/08/blog-post_05.html
भाटिया जी, ऐसी मूछें कहॉं से ढ़ूँढ़ लाए आप, आपके सौजन्य सं अपनी पसंद की एक मूँछ(वाला) अपनी पोस्ट पर टॉग रहा हूँ, क्या पता विपरीत परिस्िथतियों में इसे देखकर कुछ प्रेरणा मिले।
प्रिय जीतेन्द्र भगत जी , आशा है आप, मेरा आपके यहाँ
आना अन्यथा नही लेंगे और डरेंगे नही ! मेरे भूत महल में
जो गाना आपने सुना था वो एक बहुत ही पुराना भूत
आया हुवा था और उसकी आवाज बहुत बेसुरी थी ! मैंने
उसको मना भी किया था पर मैं माफी चाहूँगा की उसने
आपको डराने की कोशीश की ! अब वो भूत महाराज लौट
गए हैं और एक बहुत ही सुंदर आवाज की चुडैल का गायन
आपको सुनाई देगा ! उम्मीद करता हूँ की आप उसका गाना
सुन कर अमूल्य राय देंगे ! आपके कहने पर ही हमने पुराने
भूत को भगा दिया है ! हम आपका इंतजार कर रहे हैं !
प्रिय जीतेन्द्र भगत जी , आशा है आप, मेरा आपके यहाँ
आना अन्यथा नही लेंगे और डरेंगे नही ! मेरे भूत महल में
जो गाना आपने सुना था वो एक बहुत ही पुराना भूत
आया हुवा था और उसकी आवाज बहुत बेसुरी थी ! मैंने
उसको मना भी किया था पर मैं माफी चाहूँगा की उसने
आपको डराने की कोशीश की ! अब वो भूत महाराज लौट
गए हैं और एक बहुत ही सुंदर आवाज की चुडैल का गायन
आपको सुनाई देगा ! उम्मीद करता हूँ की आप उसका गाना
सुन कर अमूल्य राय देंगे ! आपके कहने पर ही हमने पुराने
भूत को भगा दिया है ! हम आपका इंतजार कर रहे हैं !
अच्छी मूछ कथा लिखी है।बहुत बढिया!!
’मैं क्या करूँ दोस्त, अभी-अभी कोंपलें फूटी है, फलने-फूलने से पहले ही इसे कतर दूँ, ये मुझसे नहीं होता!‘....... बहुत मजा बाँट रहे हो, लगे रहो।
अरे वाही, मूंछ न हुई पूरी दुकान हो गयी। बहुत खूब।
bhai wah, waise aapka yeh lekh padhkar mujhe ek kuchh-kuchh non-vej chutkule ki yaad aa gayi jo bahut pahle kabhi suna tha.
शुक्र है मेरी तो है । ग़ज़ब की पोस्ट । लॉफ्टर पोस्ट ऑफ दी इयर ।
शुक्र है मेरी तो है । ग़ज़ब की पोस्ट । लॉफ्टर पोस्ट ऑफ दी इयर ।
वाह मजा आ गया !अमोल पालेकर की एक्टिंग भी याद आयी
Post a Comment