सर्दियों की गुनगुनी धूप में कॉलेज का मैदान मेले में तब्दील हो जाता था। लोग रंग-बिरंगे गर्म कपड़ों में चहलकदमी करते रहते थे। क्लास में बैठकर भी लोग बाहर की धूप में जाने के लिए बेचैन लगते थे। सर को स्टाफ-रूम में जाकर याद दिलाना पड़ता था कि सर(दार) आपकी क्लास है। वे पूछते थे-
हूँ..., कितने बच्चे हैं?
सरदार दो बच्चे हैं।
हूँ..., दो बच्चे,
(चीखकर) सर के बच्चे!! तुम दो हो, बाकी 20 कहॉं हैं?
सरदार बाकी 20 तो धूप खा रहे हैं।
फिर भी क्लास के लिए बुलाने आ गए, वो भी खाली हाथ(न कलम न कॉपी)
क्या समझकर आए थे कि सरदार बहुत खुश होगा, शब्बासी देगा, क्यों!
धिक्कार है!!
[सरदार जेब से चश्मा निकालता है और उसका शीशा रूमाल से साफ करने लगता है।]
अरे ओ शंभू (सफाईकर्मी)! कितने पैसे देती है सरकार हमें पढाने को?
शंभू सीढ़ियों पर चढ़कर पंखा साफ कर रहा है-
-पूरे 30 हजार!
-सुना! [सरदार चश्मा ऑखों पर चढ़ाते हुए कहता है]
पूरे 30 हजार!
और ये पैसे इसलिए मिलते हैं कि हम कॉलेज आँए और यहॉं स्टाफ-रूम की शोभा बढ़ायें, यहॉं की चाय पीकर प्यालों पर अहसान जताऍं।
यहॉं से पचास-पचास कोस दूर गॉव से जब बच्चा कॉलेज के लिए निकलता है तो मॉं कहती है बेटे मत जा, मत जा क्योंकि सर(दार) क्लास लेने नहीं आएगा।
सरदार फिर चीख पड़ता है-
और ये दो शहजादे, इस कॉलेज का नाम पूरा मिट्टी में मिलाए दिए।
इसकी सजा मिलेगी,बराबर मिलेगी।
क्या रॉल-नम्बर है,
-आयें
सरदार चीखकर पूछता है- रॉल नम्बर बताओ!
छ: सर(दार)!
छ: रॉल-नम्बर है तुम्हारा!!
बहुत नाइंसाफी है ये! रजीस्टर लाओ!
सरदार रजीस्टर में दोनों के ऐटेंडेंस लगा देता है। एक बच्चा सरदार का मुँह देखने लगता है।
सरदार पूछता है अब क्या हुआ?
सर(दार) हम दरअसल तीन हैं, बसंती का भी एटेंडेंस लगा दो, वो बगीचे में आम तोड़ रही है।
सरदार नाराज हो जाता है, बसंती बगीचे में है और तुम कहते हो एटेंडेंस लगा दूँ। बच्चे कहॉं है, कहॉं नहीं, हमको नहीं पता! हमको कुछ नहीं पता!
इस रजीस्टर में 22 बच्चों की उपस्थिति और अनुपस्थिति दर्ज है। देखें किसे क्या मिलता है!
सरदार वीरु का नाम देखकर कहता है- बच गया साला।
फिर जय का नाम देखता है- ये भी बच गया।
तभी झोले में आम लिए बसंती भी वहॉं आ जाती है।
सरदार उससे पूछता है- तेरा क्या होगा बसंती?
बसंती कहती है- सरदार! मैंने आपको अपना टीफिन खिलाया है सरदार।
अब आम खिला।
कमाल हो गया, सबके ऐटेंडेंस लग गए- यह कहकर सरदार पागलों की तरह हॅसने लगता है, शंभु और बाकी बच्चे भी सरदार के सुर में सुर मिलाकर हँसने लगते हैं। हॅसते-हॅसते दिन कट जाता है और फिर सभी घोड़े पर सवार होकर घर के लिए रवाना हो जाते हैं। सरदार पहले ऑफिस जाता है और अपना चेक लेकर तब कॉलेज से चेक-आउट करता है।
Thursday, 25 September 2008
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29 comments:
bahut badhiya likha hai...
ये चेक हमको दे दो सरदार!
'ha ha ha ha great sense of humour, mind blowing, "
Regards
bahut badhiya, mitr
बसंती कहती है- सरदार! मैंने आपको अपना टीफिन खिलाया है सरदार।
अब आम खिला।
और भूत नाथ कहता है - ले सरदार ले ! अब ये टिपणी संभाल ! भूत नाथ
बड़ा खुश हुवा ! :-)
sahi likha hai thakur!
गुड वन, कॉलेज और शोले को क्या बताया है बिरादर बहुत ही उम्दा। पूरा चख लिया।
इस रजीस्टर में 22 बच्चों की उपस्थिति और अनुपस्थिति दर्ज है। देखें किसे क्या मिलता है!
अति सटीक व्यंग ! प्रणाम सर (दार ) को !
बहुत बढ़िया लिखा है जी :)
बहुत अच्छा व्यंग्य है .
सरदार का नया रूप बहुत पसंद आया .
बधाई हो .
:) :)
Ha...Ha...Ha...
Bhai maza aa gaya, Naye roop me.n sardar se milkar.
वाह क्या मस्त कैरियर है सर(दार) का !
क्या कमाल का सर....दार है भई।
गज़ब ढाया !!काश वे सर{दार}ब्लॉगिंग करते होते तो अपनी छवि देख सिहाते तो सही !
अरे, कमाल की चीज लाये हो भाई.
joradar vyangy. padhakar majedaar laga.
शोले फिल्म को लेकर
बढिया लिखा है !
- लावण्या
ha, ha , ha, bahot hi sundar or umda lekh hai dhnyabad,
सरदार अब तो बहुत मजा आयेगा,जब बुढी बसंती नाचेगी..... ओर बाबा बीरू चिखे गा बसंती इन बुढॊ के सामने मत ना़चना ...
धन्यवाद एक शान दार पोस्ट के लिये
ही ही ही कहाँ कहाँ की ठेल रहे हो भाई
मज़ा आ गया
:) :)
वीनस केसरी
वाह, मजेदार!
bahut achchi post.....
mazedar....
आणंद आ गया।
हा हा .....
अरे बिरादर !!... तुम्हारा नाम क्या है?
हा,हा,हा, ...गजब।
बहुत खूब, सर(दार) आपका जवाब नहीं।
भाई वाह ! भगत जी
आपकी क्लास में मज़ा आगया ! हँसाने के लिए शुक्रिया !
मज़ा आ गया बिरादर! ऐसे ही लिखते रहो!
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