सच कहूँ तो फुर्सत मिली नहीं
कि याद तुम्हें कर पाऊँ
पर जो कुछ भी कर रहा हूँ
ये सब तुम्हारे लिए है।
मैंने कभी नहीं कहा था
तुम्हारे लिए तोड़ लाऊँगा चॉंद-तारे।
सच तो ये है कि
तुम तक पहुँचने के लिए
अपने हाथों से मुझे
बनानी पड़ रही है सड़क
..........तोड़ने पड़ रहे हैं पत्थर।
मुझे मालूम है
बर्तन-बासन मॉंजते
तुम्हारे हाथ पत्थ़र हो गए हैं
मुझे माफ करना मेरी प्रिये!
मैं नहीं तोड़ पाया ये पत्थर .......
मैंने नहीं कहा था कि
मैं लौटकर आऊँगा
पर चाहा था कि इंतजार करना.........।
माना कि सरहद पर नहीं जा रहा था
पर अपनी दहलीज पर
हरेक को लड़ना पड़ता है जिंदगी से
एक फौजी की तरह।
और वैसे भी
जो लड़ नहीं पाता
वो बेमौत मारा जाता है.......
फिलहाल मच्छरों के बीच
थककर उचाट सोया हूँ,
नींद है भी और नहीं भी
हिचकता हूँ याद तुम्हें करते हुए....
अब तो मेरी मुन्नी भी
पप्पा -पप्पा करने लगी होगी
अरमानों का चूल्हा-चौका
भरने लगी होगी।
मैं आऊँगा मिलने उससे
भर लाऊँगा कपड़े लत्ते।
मेरी बन्नो तेरी बिंदिया-चूड़ी
लेकर नहीं आ पाऊँगा।
जानता हूँ
तुम्हे इसका अरमान रहा भी कब
मेरा आना ही तुम्हारे लिए
हर कारज सिद्ध होना है....
आने का वादा अभी कर नहीं सकता
क्योंकि कल फिर काम पर जाना है।
और सच कहूँ प्रिये
ये सब तुम्हा्रे लिए है..........
-जितेन्द्र भगत
(चित्र गूगल से)
Friday, 11 December 2009
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13 comments:
जिंदगी की दौड भाग को बहुत सुंदर ढंग से कविता में ढाल दिया आपने।
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शानदार रही लखनऊ की ब्लॉगर्स मीट
नारी मुक्ति, अंध विश्वास, धर्म और विज्ञान।
कहां रहे आप इतने दिन... बहरहाल अच्छी कविता के लिये बधाई...
waah..........behad khoobsoorat bhav..............ek hatkar kahe gaye bhav.
बहुत खुब.. चित्र तो बहुत प्यारा है..
वैसे बहुत दिनों से आये है!!
बहुत सुन्दर चित्र सहित बढ़िया रचना .... बधाई
वाह वाह !
बहुत ही अच्छी कविता..........
मैंने कभी नहीं कहा था
तुम्हारे लिए तोड़ लाऊँगा चॉंद-तारे।
सच तो ये है कि
तुम तक पहुँचने के लिए
अपने हाथों से मुझे
बनानी पड़ रही है सड़क
..........तोड़ने पड़ रहे हैं पत्थर।
_________बधाई !
आने का वादा अभी कर नहीं सकता
क्योंकि कल फिर काम पर जाना है।
और सच कहूँ प्रिये
ये सब तुम्हा्रे लिए है..........
-जिन्दगी की आपा धापी के बीच कुछ उजागर क्षण खुद को तौलते हुए..अच्छे लगे!!
बकोल धूमिल "कविता भाषा में आदमी होने की तमीज है .".......
मेरा आना ही तुम्हारे लिए
हर कारज सिद्ध होना है....
ईन्तजार.................
zindgi ko achchhi tarah bayaan kiya hai aapne kavita mein
बहुत अच्छी कविता ........ यथार्थ से परिचय करवाती ........
बहुत सुन्दर शब्द चित्र.
बहुत सुन्दर! उम्मीद पे दुनिया कायम है.
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