ऐसा लगने लगा है जैसे हमारे आज के सुपर स्टार मंच और घर के ऑंगन का फर्क भूलते जा रहे हैं।
‘मिले सुर मेरा तुम्हारा’ का नया संस्करण आ गया है। हैरानी होती है कि इस गीत के आधुनिक संस्करण में आम आदमी की मौजूदगी नदारत है। और तो और, आमिर खान या सलमान खान अपने बनाये हुए खॉंचें से बाहर आने का कोई प्रयास नहीं करते। आमिर खान की क्लीपिग में ‘ऐ क्या बोलती तू’ का सड़कछाप धुन मिश्रित है।
‘मिले सुर मेरा तुम्हारा’ के पुराने संस्करण में प्रादेशिक भाषा, वेषभूषा के साथ-साथ वहॉं की जातीय छवि भी नजर आई थी। आम आदमी की मौजूदगी वहॉं ज्यादा थी, बॉलीवुड के अभिनेता और अभिनेत्रियॉं भी थे, पर अपने नाम से ज्यादा वे अपने प्रादेशिक चरित्र को उभार रहे थे । पं भीम सेन जोशी के सुर से आरंभ होकर राष्ट्र गान पर समापन वास्तव में सुर को मिलाने का वह एक बेहतरीन प्रयास था।
पुराने संस्करण में बरखा है, बादल है,नदी है पर्वत है, खेत और ट्रैक्टर है, उँट और हाथी है, सागर है लहरें है, वहॉं गॉंव और शहर का एक अपना सुर है, महानगर का एक अपना सुर है । यानी यहॉं प्रकृति और मनुष्य का आदिम रिश्ता भारतीय विविधता में जैसे समाहित-सी नजर आती है।
पुराने संस्करण की सबसे बेजोड़ बात है कि उसमें बंगला पंजाबी, मलयालम, कन्नड़ जैसे सभी प्रमुख प्रादेशिक भाषाओं में इस सुर को पिरोने का प्रयास किया गया है। इस प्रयास से दर्शक या श्रोता का भारतीय मन वास्तव में सुरों के संगम का अहसास करता है, वह अलग अलग भाषाओं में नीहित संदेश की एकरूपता को न केवल महसूस करता है बल्कि उसे स्वीकार भी करने लगता है। पुराने संस्करण के दृश्य संयोजन का यही जादू है।
पर नये संस्करण में न कोई भाषा है न संगीत की मधुरता। मिला-जुलाकर यह भारतीय परंपरा और संस्कृति को बयान करने के बजाए बॉलीवुड के स्टार्स को प्रमोट करती नजर आती है। अपने आपको इतिहास में दर्ज कराने के इस प्रयास में यहॉं एक हास्यास्पाद दृश्य पैदा हो जाता है। संगीत में जो सार है, अर्थ है वो गुम हो जाता है और अंत में ऐसा प्रतीत होता है जैसे बेसुरों ने सुर मिलाने की कोशिश की हो। प्राथमिकता बदल जाने के कारण ऐसा बेसुरा प्रदर्शन हमें हैरान नहीं करता बल्कि दुखी करता है।
Wednesday, 27 January 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
14 comments:
ये जूम टीवी के लिए कल की सबसे बड़ी खबर थी। आप जो आम आदमी इसमें तलाश रहे हैं,उससे कहीं बड़ी बात है कि इस एक गाने के बहाने तीनों खान एक मंच पर आ सके। इसलिए मेरी अपनी समझ है कि इतिहास में कल को पढ़ाया जाएगा कि मिले सुर मेरा तुम्हारा का ऐतिहासिक महत्व क्या है तो बच्चों का जबाब होगा- ये एक ऐसा गाना है जिसने कि तीनों खानों को एक मंच पर लाकर खड़ा कर दिया,वो सारे भेदभाव भूल गए। इसी आधार पर एक फिल्म भी बनी थ्री इडियट्स। उन्हें इस फिल्म से अपने को लेकर शर्मिंदगी हुई और तब उन्होंने इस गाने में साथ आने का फैसला लिया।..हमारा और आपको सुर मिले ये जरुरी नहीं है,जरुरी है कि तीनों खान का सुर मिल जाए।.
aapki yaar se sahamat hu.manik
ये समय अनुसार आए परिवर्तन की एक झलक है ........ जो स्वयं ही बोलती है ....... कितनी उचित और कितनी अनुचित ये तो आने वाला भारत कैसा होगा .... ये ही बतलाएगा .....
हम तो भाईया देखते हि नही ऎसी बकवास को फ़िर क्या बोले??परिवर्तन हो लेकिन बेहुदा ना हो...
एक मिनट की क्लिपिंग भी पूरी नहीं देखी और बन्द कर दी,
जबकि पुराने वाले को आज भी बार-बार देखने सुनने का मन करता है
प्रणाम
क्या बात है यहाँ एक दूसरे के सुर मिलते कहाँ हैं...समय के साथ साथ बदलते रहते हैं ..
मैंने अभी तक देखि सुनी नहीं...लेकिन अगर वो ऐसी है जैसा आपने बताया है तो उसे ना देखना ही भला है...
नीरज
हाँ हमें भी नए में आनन्द नहीं आया, बेसुरा सा लगा।
Old is always Gold.........Very good post....
agar bnana tha to kuchh naya hi bnate itne naisrgikta ko krtrim bana dala .
mile sur par jo dil dhdkta tha vo dhadkan ndard hai is nye sur me .
vinit kumar ji ke comment ko 100 number
सही है ।
वास्तव में old ही gold है.
न पुराना पता न नया - Ignorance is bliss!
Post a Comment