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Sunday 31 January 2010

‘बीप-बीप’ के बीच इमोशनल अत्याचार !!

साल में ऐसे मौके कम ही होते हैं जब आपको टीवी देखने का अवसर कुछ ज्यादा ही प्राप्त होता है। अभी मेरा दौर ऐसा ही चल रहा है। कुछ-कुछ खाली भी हू या यूँ कहि‍ए कुछ खाली महसूस करने के लि‍ए टीवी देखने लगा हूँ। लंबे सफर की थकान तब थोड़ी-बहुत उतर ही जाती है जब आधी रात को, आधे रास्ते के बाद, भोजन पानी के लि‍ए बस कि‍सी ढाबे पर रूकती है। व्यस्तता की इस लंबी सडक पर मुझे ये तो नहीं पता कि‍ रास्ता आधा तय हो गया है या रात आधी हो गई है, पर कहीं ठहरकर इस बारे में सोचना अच्छा लगता है।
‘यू टीवी बिं‍दास’ पर ‘इमोशनल अत्याचार’ के दो एपि‍सोड को देखकर सोच में पड़ गया कि‍ पुरूष प्रेमि‍यों का इम्ति‍हान जि‍स तरह लि‍या जा रहा है, उससे कि‍तने मर्द बच सकते हैं? इस सीरि‍यल में पूर्वनि‍योजि‍त योजना के तहत एक सुंदर-सी लड़की को कि‍सी के प्रेमी के पास भेजकर ऐसा माहौल तैयार कि‍या जाता है कि‍ उसकी आपत्ति‍जनक वि‍डि‍यो तैयार की जा सके। साथ ही ऐसे संवाद उगलवाये जाते हैं जो उस पुरूष के व्यभि‍चार को उभारता है। पुरूषों की मूलभूत कमजोरि‍यों को इस सीरि‍यल का आधार बनाकर उसकी प्रेमि‍का या पत्नी के सामने उसके आपति‍जनक दृश्यों को दि‍खाकर पूछा जाता है कि‍ देखो, आपके प्रेमी ने आपके साथ कि‍तना बड़ा वि‍श्वासघात कि‍या है! फि‍र उसे रंगे हाथों पकड़वाकर नाटकीय दृश्य पैदा कि‍या जाता है। गालि‍यों की बौछार को बीप-बीप में छि‍पाया जाता है। झगड़े की इन्टेनसि‍टी (तीव्रता) को नापना हो तो कि‍तनी बार बीप-बीप बजा, उसे नोट करते जाओ।
दूसरे एंगि‍ल से सोचूँ तो ये मसाला सीरि‍यल तैयार करने के लि‍ए प्रेमी-युगल को सहमति‍ में लेकर भी तैयार कि‍या जा सकता है। अगर ऐसा है फि‍र भी यह एक प्रश्न मन में तो छोड़ ही जाता है कि‍ आप अपनी पत्नी या प्रेमि‍का के साथ कि‍तने वफादार हैं। क्या् आपका वि‍श्वामि‍त्रीय मन मेनका टाइप लड़की को आपकी तरफ आकर्षि‍त होते देख अपनी वफादारी कायम रख सकते हैं? इस आपातकाल में इन चार-पॉंच वि‍कल्पों में से आपका नि‍र्णय क्या होता-
1 आप घरवाली-बाहरवाली की जि‍म्मेदारी एक साथ उठाते।
2 आप अपनी प्रेमि‍का या पत्नी‍ को इस घटना/दुर्घटना से अवगत कराते।
3 आप उस स्त्री को धि‍क्कारते जो जबरदस्ती आपके जीवन में प्रवेश करना चाहती है।
4 आप ‘क्या करूँ या ना करूँ’ की स्थित‍ि‍ ‍से पगलाए रहते।
5 आप कुछ और ही रास्ता अपनाते तो क्या अपनाते।

दि‍माग तो ये कहता है कि‍ मैं नम्बर टू वि‍कल्प अपनाता, मगर दि‍ल का भरोसा कैसे करूँ :)


4 comments:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

भाई मेरे, नंगई की कोई हद नहीं होती. वो तो सरकार का थोड़ा सा भय है वरना रात में बेडरूम की पूरी कहानी का सीधा प्रसारण कर दें ये लोग.

संजय @ मो सम कौन... said...

इब्तदाये तरक्की में रोता है क्या,
आगे-आगे देखिये होता है क्या।

बंधु, एक बात और भी है कि ऐसा चांस मिलने पर दोनों तरफ से घाटा है, रिजेक्ट करने पर बंदे पर क्या-क्या आरोप लग सकते हैं, जरा कल्पना कीजिये।

शरद कोकास said...

इसीलिये हम टीवी नही देखते ।

अनूप शुक्ल said...

संयोग है कि आज अभी एक इपीसोड देखने के बाद इसे पढ़ा! :)