'जितेन, मेरी कार का शीशा फूट गया है, मैं नहीं जा सकूँगा!'
विजय ने जैसे दो टूक फैसला सुना दिया।
मैंने कहा-
-जाना तो सरबजीत के कार से है, तब तक के लिए तू अपने कार पर कवर चढाकर चल पड़!
-नहीं, मेरा मूड ऑफ हो गया है! कल किसी बच्चे ने कुत्ता भगाने के चक्कर में एक पत्थर मेरी कार को दे मारा!
इंश्यारेंसवाले को दस दिन से कह रहा था, पेपर तैयार करा दे-करा दे, पर अब क्या होगा, बैठे-बिठाये 6 हजार का चूना लग गया!
यह सुबह की बात थी, तब तो मैंने उसे मना लिया था कि जो फूटना था, वो तो फूट चुका, अब सब लोग जब तैयार बैठे हैं, मना मत कर!
शाम होते-होते मैं अपना बैग लेकर तैयार हो गया। मेरा भाई मुझे विजय के पास ड्रॉप करने के लिए साथ चल पड़ा। अंधेरा होने लगा था और आसमान भी साफ था कि तभी तेज हवाओं के साथ ऑंधी आ गई और कार के शीशे पर बूँदे पड़ने लगी। मौसम का ये बदला मिजाज कुछ अच्छा नहीं लगा! मेरी पत्नी बिल्कुल ही नहीं चाह रही थी कि इसबार मैं इस टूर पर जाऊॅ। और इस तूफान में मुझे निकलते देखकर वह न जाने क्यों, चुप रह गई। विजय ने जाने के लिए हामी तो भर दी थी, लेकिन शायद अजमेर से भाभी के रिश्तेदार इस बीच दिल्ली आने वाले थे,इसलिए वह भी आरंभ में थोड़ा विचलित था।
मैंने विजय को फोन लगाया-
मैं मार्केट में हूँ,सफर के लिए कुछ खरीदना है तो बता!
उधर से सुस्त-सी आवाज आई-
दो मिनट के लिए पहले घर आ जा!
यह कहकर उसने फोन काट दिया या शायद कट गया....
मैंने दुबारा फोन किया-
मार्केट दुबारा आया नहीं जाएगा, सुबह चार बजे निकलना है फिर जरूरी सामान कब खरीदोगे!
तू एकबार घर आ तो सही, सरबजीत के पापा के पेट में तेज दर्द उठा है!
- यह कहकर उसने फोन काट दिया।
बूँदें तेज हो गई। वाइपर चलने के साथ मेरे दिमाग में सफर का ख्याल मिटने-सा लगा। मेरे हफ्ते-भर की तैयारी खटाई में पड़ने वाली थी। तैयारी भी क्या थी, बस मानसिक रूप से जाने के लिए पूरी तरह बेचैन था।
विजय का घर आ गया था, मैंने डोरबेल बजाने से पहले उसके कार के शीशे को चेक किया। शीशा वाकई फूटा हुआ था लेकिन इतना नहीं कि उसे बदलवाने की जरूरत पड़े! ये जरूर था कि इंश्योरेंस कराने में अब दिक्कत आती। जब अंदर कमरे में आया तो विजय किचन में खाना बना रहा था। तैयारी के नाम पर कहीं कुछ भी बिखरा हुआ नहीं था। मैंने महसूस किया कि ऐसी हालत में अपने गुस्से को कैसे काबू करना चाहिए!
मुझे कुछ-कुछ अंदेशा तो हो ही चुका था, इसलिए मैंने अपने भाई को वापस भेजा नहीं कि शायद घर लौटना पड़े। हम दोनों विजय के कमरे में यूँ ही बैठे हुए थे।
थोड़ी देर में विजय किचन से आया और सरबजीत को फोन लगाकर पूछा-
चलना है या नहीं, जितेन आकर बैठा हुआ है.........
यह कहता हुआ विजय अपनी बाल्कनी की तरफ चला गया।
विजय ने आकर बताया कि सरबजीत के पापा को अभी दर्द का इंजेक्शन दिया गया है, अगर दस मिनट में हालत सुधरती है तो सरबजीत चल पड़ेगा अपनी गाड़ी लेकर!
पॉंच मिनट तब मैं सकते में बैठा रहा, फिर अपने भाई को बोला-
चलो घर चलते हैं। सरबजीत के पापा अगर दस मिनट में ठीक हो भी गए और जाने के बाद दुबारा दर्द उठा तो उसके जिम्मेदार हम सब होंगे। वैसे भी सरबजीत उनका इकलौता लड़का है, उन्हें पड़ोसी के सहारे छोड़कर घूमने जाने की बात शर्मनाक है!!
विजय ने ये सब सुना, पर बोला कुछ नहीं।
मैं बारिश की बूँदो को देखता हुआ घर आ गया। सिरदर्द में अब तक आराम नहीं हुआ था हालॉकि मौसम बहुत सुहाना हो चुका था। जिस चीज को पाने के लिए मैं दिल्ली से बाहर जाना चाहता था, अब वह यहीं नजर आ रहा था.......... अपने दिल को और कैसे तसल्ली देता........ सोच रहा हूँ सरबजीत के पापा से मिलने कल जाऊँगा।
(शीशा हो या दिल हो, आखिर.....)
अंतर सोहिल,नीरज जाट,मुनीश जी,सुजाता जी और मुन्ना पांडेय ने मेरे सफर का जो खाका तैयार कर दिया था,
मुझे अफसोस है कि मैं अमल नहीं कर पाया! मैं इन सबका आभार व्यक्त करता हूँ और महसूस करता हूँ कि ऐसे इवेंट पर ब्लॉग कितने काम की चीज होती है! बाकी सब लोगों ने जो शुभकामनाऍं दी हैं, उन्हें मैं वापस नहीं करूँगा और जल्दी ही दुबारा जाने का प्रोग्राम बनाऊँगा!
Saturday, 1 May 2010
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15 comments:
:(
कोई गल नहीं जी.. बहारें फिर भी आएगी...
कभी कभी ऎसा भी हो जाता है, फ़िक्र नांट जी, मुस्कुरा दिजिये बस
IT happens ! It happens ! It happens like this with all of us . Do not worry enjoy the ice cream , dosa n'curry !
अरे बिरादर
काहे टैंशन लेते हो। मैं अपनी बताऊं मेरा हर टूर प्लान जो पहले फिक्स हो, कैंसिल हो जाता है। आज तक जितनी भी जगहें घूमा हूं, सब अचानक टूर किये हैं। ज्यादातर में तो कपडे भी नये खरीदे और हमेशा रेल रिजर्वेशन कराया तो रद्द कराना पडा।
चिल्ल यार
Hota hai aisa bhi kabhi-kabhi..
Sundar yaatra vrat....
Prastutikaran ke liye dhanyavaad
....
अरे कोई बात नहीं ....जब जाईये तभी मरती शुभकामनाएँ !
जब biradri में दिक्कत है तो बाहर कसे जा सकते हैं.......ये सफ़र फिर सही.......
ये तो चलता रहता है..जाना नहीं जाना. परिवार ज्यादा जरुरी है. फिर हो आयेगी.
sarabjeet ke papa ke liye shubhkamnaen.....
bahut khub
badhai is ke liye aap ko
चलिये फिर कभी।
भाषा का प्रवाह अच्छा लगा ।
Han ji aisa kabhee kabhee ho jata hai par jaldi hi aapka programme fir banega aur hum aapke safar ko wistar se padhenge.
बहुत सुन्दर प्यारी पोस्ट! न जाकर ही ज्यादा अच्छा लग रहा होगा। है न!
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