कमरे की दीवारों के तमाम मोड़ों और फर्श पर बारीक गड्ढो से होकर चीटियों की लंबी कतार आवागमन में इस तरह व्यस्त थीं जैसे कोई त्योहार हो इनके यहॉं। सबके हाथों में सफेद रंग की कोई चीज थी।
इन दिनों घर के हरेक कोने में, किचन में, यहॉं तक कि फ्रिज में भी चीटियों का कब्जा हो गया था। बेड पर सोते हुए काट लेती थी, हैंगर और सर्ट के कॉलर में भी ये छिपकर बैठी होती थी। कल बेटे के बाजू में इनके काटने से मैं काफी परेशान था और किसी उपाय की तलाश में था। पर इन्हें अपने घर से निकालना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन लग रहा था। इसलिए लक्ष्मण-रेखा हाथ में लेकर मैं इनकी यात्रा मार्ग में जगह-जगह रेडलाइट बनाने लगा।
सभी यात्री अपनी जगह ऐसे अटक कर खड़े होने लगे थे जैसे पहाड़ी रास्तों पर बर्फबारी या चट्टानें खिसकने से गाड़ियॉं अटककर खड़ी हो जाती है।
लक्ष्मण रेखा काफी प्रभावी लग रहा था। सैकड़ों की संख्या में चीटियॉं बेहोश लगने लगी थी। मुझे ऐसा लगा जैसे उसके आसपास की चीटियॉं उसे घेरकर खड़ी हो। समझ नहीं आया मैंने ये सही किया या गलत! मेरे परिवार के कुछ सदस्य मैंदानों में रोज सुबह चीटियों को आटा/चीनी देकर आते हैं, पर वे भी मेरे इस नृशंस कृत्य पर आलोचना करने की बजाए इन्हें बाहर करने के दूसरे उपायों पर चर्चा करते पाए गए।
15 मिनट बाद सैकड़ों चीटियों की लाश फर्श पर अपनी जगह पड़ी हुई थी,और इन लाशों को ठिकाने लगाने के लिए झाड़ू-पोछा ढूँढा जा रहा था.....
एक बेतुका-सा ख्याल आया कि सरकार और अनशनकारियों के बीच कुछ ऐसा ही तो नहीं चल रहा है.......
Sunday, 19 June 2011
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6 comments:
इन चींटियों को कोई नहीं चीनी-आटा देने वाला...
bahut badhiyaa likha hai
चीटियों ने अपने भार से अधिक बोझ उठा लिया था।
यह "लक्ष्मण रेखा" क्या किसी इंसेक्टिसाइड का नाम है? यदि हाँ तो अब ज़हर से मरी चींटियों को खाकर चिडियाँ मरेंगी, फिर उन्हें खाकर कौवे और बिल्लियाँ, फिर आवारा कुत्ते फिर ...
चींटियों से तो मैं भी परेशान हूँ.वैसे मेरे घर पर हमला करने वाली चींटियाँ न काटने वाली प्रजाति की हैं और बिना काटे हुए ही परेशान कर रखा है. मैं अभी तक तो उनसे युद्ध साबुन, डिटर्जेंट के घोल व केरोसिन से लड़ रही हूँ. लगता है की अब विष प्रयोग करना ही होगा.
घुघूती बासूती
चीटियों के बहाने अच्छा जूता लगाया सरकार को या ...........
हल्दी के बारे में क्या खयाल है । वैसे लक्ष्मण रेखा काफी कारगर है ।
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