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Monday 1 September 2008

...... मॉं की याद आती है, पर माँ नहीं आती!

मैने सुना था कि‍ औरतों का काम कभी खत्‍म नहीं होता! मेरी मॉं उन्‍हीं औरतों में से एक है। हर वक्‍त व्‍यस्‍त! रह-रह कर बेचारी घड़ी की तरफ देखेंगी और आश्‍चर्य से कहेंगी- आईं! 7 बज गये! एक घंटे बाद फि‍र कहेंगी- आईं! 8 बज गए! इस तरह 9 और 10 भी बज जाते हैं। पहले मॉं 9 बजे तक सो जाया करती थी, इसलि‍ए मैं 9 बजे तक एस.टी.डी. फोन कर लि‍या करता था, पर अब जमाना बदल गया है। मॉं जमाने के साथ बदल गई है। उन्‍हें एक ऐसी लत लग गई है, जि‍सका उन्‍हें रत्ती भर भी रंज नहीं, (मैं रंज देता भी नहीं!) मैं उन्‍हें अब रात के 10 बजे से 12 बजे के बीच भी फोन करके बात कर सकता हूँ, शनि‍वार और रवि‍वार को छोड़कर। फोन उठाने के बाद भी मॉं का ध्‍यान मेरी बातों पर नहीं रहता। कहती हैं- दो मि‍नट ठहरो। ज़ी टी.वी.पर ‘तीन बहुरानि‍यॉं’ आ रही है। .......अब ऐड आ गया। हॉं अब बोलो, मेरा पोता ठीक है? बात करते हुए मैं सोचता जाता हूँ, शायद जी सि‍नेमा पर 10-15 मि‍नट का ऐड आता है, पर मॉं तो ज़ी टी.वी. देख रही है, 3-4 मि‍नट में ही फोन रख दूँ तो ठीक रहेगा, कोई ऐसी जरुरी बात भी नहीं। मैं भी थोड़ी बातें करके, ऐड खत्‍म होने का अनुमान लगाकर हँस-बोलकर फोन रख देता हूँ।

मॉं अपनी बहू और पोते से सैकड़ों मि‍ल दूर है, उनके पास हम नहीं हैं, पर उनके पास ‘’तीन बहुरानि‍याँ’’ हैं। साथ ही, और भी न जाने कौन-कौन से सीरि‍यल्स हैं! वे उन्‍हीं में स्‍वयं को दि‍नभर भुलाए रखती हैं। माँ को मेरे पास इस महानगर में रहना अच्छा नहीं लगता। वे उस छोटे शहर के दूरदराज इलाके से अपना घर छोड़कर कहीं नहीं नि‍कलना चाहतीं। आखि‍र उसकी एक-एक ईट को उन्‍होंने अपने सपनों की तरह संजोया है। वो हमें वहीं बसने पर जोर भी नहीं डालतीं। नौकरी का तकाजा है, इसलि‍ए मैं भी इस बात से बचता हूँ! इन सब मन:स्‍थि‍ति‍यों के बीच मॉं की याद आती रहती है, पर माँ नहीं आती!

19 comments:

डॉ .अनुराग said...

जी हाँ माँ के काम कभी ख़त्म नही होगे ...ओर माँ कभी बदलेगी भी नही...

विनीत कुमार said...

meri maa kahti hai jis din kaam khatam ho gaya us din samjho hum hi khatma ho jaayaenge, aurat ka kaam kabhi khatma nahi hota. meri maa teen bahuraniya ke saath-saath saas bahu aur saajis bhi dekhti hai aur humse kahti hai...hum saath to nahi rahenge, fir bhi tum aisi mat le aana.

रंजन (Ranjan) said...

हम भी माँ को समझा कर थक जाते है.. पर माँ के काम.....

रंजन
aadityaranjan.blogspot.com

नीरज गोस्वामी said...

दुनिया की सारी माएँ ऐसी ही होती हैं....बहुत रोचक अंदाज में सच लिखा है आपने...
नीरज

Anil Pusadkar said...

maa bhagwaan hai

शोभा said...

माँ ऐसी ही होती है। बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति है। बधाई

दिनेशराय द्विवेदी said...

सब दूर ऐसा ही है जी। बस वही कह सकते हैं जो आप ने कहा।

राज भाटिय़ा said...

मां तो मां हे, बस , ओर कया कहू
धन्यवाद

Anonymous said...

Zimmedar poore samaj ki hai ke hum ek maa ko roti jaisi chinta se bhi mukat nahin ka paye..........

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

हर माँ की दास्ताँ कह गये आप अपनी माँताजी की यादोँ के साथ -

manvinder bhimber said...

ma ka kaam khatam ho gaya to bachcon ke khawab kon bunega.....bahut achcha likha

रंजू भाटिया said...

माँ का काम और माँ के सपने ही बच्चो को आगे ले जाते हैं ...बहुत अच्छा लगा इसको पढ़ना ..

Nitish Raj said...

बहुत ही बढ़िया लिखा है और आप को जितेंद्र भाई एक बात बताऊं, मां ऐसी ही होती है। वो हमेशा ही तुम्हारे बारे में सोचती है पर बताती नहीं हैं। सीरियल में तुमको तुम्हारे परिवार को खोजती है पर तुम्हें बताती नहीं है।

PREETI BARTHWAL said...

हर मां ही ऐसी होती है और मेरी मां कहती हैं कि बच्चों काम तो कभी खत्म होता ही नहीं और होना भी नहीं चाहिए।

परमजीत सिहँ बाली said...

माँ के काम कभी खतम नही होते।...उस का ना बदलना ही हमें उन के सामनें हमेशा हमे बच्चा बनाए रखता है।

Arvind Mishra said...

:)

Anonymous said...

Ma.n hi to duniya me.n ekmatra vyast prani hai..., Bahut sahi laga aapka lekh.
Bhai maza a gaya
Badhai

Asha Joglekar said...

Man hoti hi aisee hai use kam karne men bahut anand milta hai kyun ki usake sare kam gruhasthee se priwar se jude hote hain ab unhe fursa hai to kyun na dekhen we z tv. Achcha hai. we janha khush rahen wahin unhe rehane deejiye.

seema gupta said...

मॉं की याद आती रहती है, पर माँ नहीं आती!
"ah! very emotional one, touched me"

Regards