(I)
मेरी चमड़ी पर कई झुर्रियाँ पड़ गई हैं, कमर भी झुक गई है। मेरे फीते की धज्जियॉं भी उड़ गई हैं। मेरी आत्मा (सॉल) लगभग घिस चुकी है, उसके परखच्चे बस उड़ने ही वाले हैं। अपनी उम्र से ज्यादा मैं जी चुका हूँ। सन् 2004 की होली में मैंने मालिक के पैरों को आसरा दिया था, 2009 की होली अब आनेवाली है, पर मेरा मालिक आज भी मेरी अटकी हुई सॉस को रोकने की बेतरह कोशिश कर रहा है।
मुझे आज भी याद है, जब मेरा मालिक दूल्हा बना था, शादी के मंडप से दो कुड़ियॉं मुझे छिपा ले गई थीं। और उस दिन का तो क्या कहना, जब मेरे मालिक को लड़का हुआ था, चाहता तो था कि पालने तक जाऊँ, लेकिन हम लोगों की तकदीर ही कुछ ऐसी है, शुद्ध और स्वच्छ स्थानों से हमें दूर ही रहना पड़ता है, चाहे मंदिर हो या अस्पताल।
वैसे तो मेरे पूर्वजों का इतिहास अत्यंत गौरवशाली रहा है। महाराज भरत ने श्रीराम के खड़ाऊ को पूज्य बनाकर मेरे पूर्वजों को जितनी इज्जत बख्शी, ऐसा उदाहरण विश्व में कहीं नहीं मिलता।
एक बार मेरे मालिक सड़क से गुजर रहे थे, मैंने देखा कुछ लोग मेरे सहोदरों को हाथों में लेकर दूसरे आदमी को पीट रहे थे। मुझे ऐसे लोगों से चीढ़ है जो चीजों का गलत इस्तमाल करते हैं। जूते की शोभा पैरों में ही है, कहीं और नहीं। कई बार तो मेरी माला बनाकर मुझे भी गधे नामक जंतु की सैर करा दी जाती है। कहीं किसी मंच पर कुछ भी गड़बड़ हो, मेरे सहोदरों को ही उठा-उठाकर फेंका जाता है। अभी बीते महिने की बात है, मेरे विदेशी मित्र को किसी ने बुश पर दे मारा।
गर्मी, सर्दी, बरसात - न जाने क्या-क्या झेले हैं मैंने। नदी, पर्वत, आकाश - न जाने क्या-क्या नापे हैं मैंने। मुझे नौकरी पर रखनेवाला मेरा मालिक बेचारा खुद पक्की नौकरी की जुगत में रहा। समय के अभाव के बावजूद उसने बराबर मेरा ख्याल रखा, सुबह बड़े चाव से मेरे चेहरे को चमकाता और रात को गहरी थकान के बावजूद मुझे इधर-उधर फेंकने की भूल नहीं करता। सोचा था मालिक को पक्की नौकरी मिलते ही मुझे रिटायरमेंट मिल जाएगी, पर मालिक पर जिम्मेदारी दिनोंदिन बढती गई और मुझे ओवरटाइम तक करना पड़ा।
मजे की बात बताऊँ, मालिक मेरे बिना रह नहीं सकते, कहीं आ-जा नहीं सकते, ट्रेन के सफर में मैं उनसे बिछुड़कर किसी और के पैरों की शोभा न बढ़ाऊँ, इसलिए अपने पास थैले में डालकर सोते हैं। मेरी चिंता में इन्होंने मंदिर जाना तक छोड़ दिया है, अगर जाते भी हैं तो बाहर से खड़े-खड़े ही नमन कर लेते हैं
कभी-कभी सोचता हूँ दुनिया में जितने भी प्रेमी हुए हैं, अक्सर रोमियो-जूलियट, शीरी-फरहाद, लैला-मजनू, चंदा और चकोर की कस्में खाते देखे गए हैं, लेकिन क्या किसी ने हमारी जोड़ियों की कसम खाई है ??
(II)
लोग मेरे मालिक को कहते हैं यार तेरा जूता तो काफी चल गया!! मैं पूछता हूँ ये तारीफ है या ताना !! एक आदमी ने पक्की नौकरी के इंतजार में छ: साल मेरे साथ गुजार दिए जबकि ऐसे भी लोग हैं जो साल-छ:महिने में जूते बदल लेते हैं।
नए जूते खरीदना कोई मुश्किल नहीं है, पर मेरे मालिक को आज की रवायतों का ठीक-ठीक अंदाजा नहीं है, वर्ना वे इस भरोसे या भ्रम में न जीते कि पक्की नौकरी मिलते ही नए जूते ले लूँगा। अलादीन के चिराग और मुझमें कुछ तो फर्क होता है न!!
जिस तरह पलकें आखों पर बोझ नहीं होती, उसी तरह मेरे मालिक ने भी मुझे कभी बोझ नहीं माना, बल्कि हमेशा अपने पथ का साथी माना है, मेरी जर्जर काया के बावजूद उनका मोह मुझसे नहीं छुटा है। बस एक ही गुजारिश है इनके विभाग के वरिष्ठ प्रोफेसरों से, मुझे अपने मालिक से निजात दिलाने का कुछ जतन करो। पक्की नौकरी देकर इसकी एड़ियों को भी नए जूते का सुख भोगने दो। घिसे हुए जूते को पॉलिश से कब तक छिपाता रहेगा मेरा मालिक !! छ: साल कम नहीं होते हैं..... आदमी घिस जाता है, मैं तो अदद एक जूता हूँ।
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40 comments:
bahut badiyaa abhivyakti hai
जिस तरह पलकें आखों पर बोझ नहीं होती, उसी तरह मेरे मालिक ने भी मुझे कभी बोझ नहीं माना, बल्कि हमेशा अपने पथ का साथी माना है, मेरी जर्जर काया के बावजूद उनका मोह मुझसे नहीं छुटा है।
"जुता हमारी जिन्दगी के कितना अहम हिस्सा और जरूरत है की इसके बिना हम एक कदम भी नही चल सकते..... जुते की आत्मकथा सच मे शानदार रही.... लकिन अंत ने थोड़ा विचलित किया जहाँ जुता भी मुक्ति मांग रहा है.....यहाँ एहसास होता है की शायद हर चीज़ की एक उम्र होती है......चाहे वो सांसे भरता प्राणी हो या फ़िर जुता....."
Regards
'दस्ताने जूता "बढ़िया रोचक लगा
जूते के माध्यम से कसा हुआ व्यंग्य.
बहुत अच्छे!
आपने तो जूतो में जान डाल दी... वैसे मैं तो मंदिर में उनकी हिफ़ाज़त के लिए टोकन भी लेता हू.. मुझे इसका इतना ख्याल जो है..
वैसे आज सुबह नेट पर आते ही सबसे पहले आपको पढ़ा है.. और पढ़ते ही मज़ा आ गया.. जबरदस्त
"आपके जूते की इस कथा ने आँखें भिगो दीं...उसे कहना हम उसके साथ हैं....वो अकेला नहीं है दुनिया में..."
ये कमेन्ट नीरज नाम के प्राणी का जूता ही कर रहा है...जूता एकता जिंदाबाद...हे प्राणी हम कब तुझको पहनेगे?
दास्तन ए जूता पढकर अच्छा लगा।
जूता पुराण कलयुग से लेकर त्रेता तक .
धन्य है वह पैर जो छह साल तक एक जूतों का इस्तमाल करते रहे या धन्य है वह जूते.....
जूता जी जिन्दाबाद !
इन दिनों अचानक जूते टी आर पी में शीर्ष स्थान पर है.....जे बुश की कहे या .उस पत्रकार की....... वैसे इस जमाने में तीन चार जोड़ी जूते रखने वाले लोग भी है ओर फिलिपींस की इमेल्डा की तरह ३०० वाले भी
सरजी, आपको क्या लगता है कि विभाग के प्रोफेसर इतनी आसानी से नौकरी दे देते हैं। आपके ये घिसे जूते अगर इसी तरह से रोते-कलपते रहे तो चंदा करके एक जोड़ी नए जूते का इंतजाम भले ही कर दें लेकिन नौकरी...आप भी जानते हो
जूता कथा बहुत बढिया रही जी.
जुए की रामकहानी बढ़िया है जी. हम भी बहुत दिनों से घिस रहे हैं. सोचना पड़ेगा की तारीफ़ है या ताना !
भाई आप का जुता पुराण पढ कर हमे कासिम के जुते वाली कहानी याद आ गई. वेसे आप की बात बहुत सही है जुता हम सब के लिये कितना महत्व पुरण है( अजी हमारे पेरो के लिये )मुझे तो लगता है यह जुता आखरी सांस तक साथ चलता है.
धन्यवाद
bahut badhiya
जूता ही नहीं मनुष्य की हर वस्तु उस के बारे में बहुत कुछ कह सकती है।
dhaansoo joota puraan. joote par bhi itna achchha likha ja sakta hai aaj pata chala
जूतों की पीड़ा की अच्छी अभिव्यक्ति। ओशो की पंक्तियां याद आ गयीं- कपड़ों,जूतों के साथ मैत्रीभाव रखने की। उनके परमभक्त एक मास्टर साहब थे, रोज शाम को घर लौ्टने के बाद जूतों को प्रनाम करते थे, धन्यवाद देते थे कि आपने मेरे पैरों की सुरक्षा की।
काफी दिनों बाद आपको पढ़ा। अच्छा लगा।
जूता न हुआ, हमारा जीवन्त चरित्र हो गया।
mast rahi ye abhivyakti......bilkul jaan daal de aapne joote men...
वाह साहब क्या सफाई से आपने आज के समाज पे बढ़िया ब्यंग कसा है ये अंदाज भी निराला है ढेरो बधाई स्वीकारें...
अर्श
जूते भी हमारे पूरे शरीर को उठाये महत्त्व का काम करते हैँ और आपने ज़बरदस्त लिखा है
अरे बिरादर आप दिखे हैं बहुत दिनों के बाद
जूतों के इस खेल में आई बस जूतों की याद
Waah ! Adbhut aatmkatha... JOOTE KEE AATMKATHA !Joote me jaan daal, jeevant kar diya aapne.Lajawaab !
बहुत बढ़िया, जी !
बहुत गंभीर बहुत तीखा व्यंग सरस
क्या खूब चली यह जूता चर्चा भी!
आज तो जूते भी गंगा नहा लिये, बहुत खूब
जूतों की दास्तान, रोचक और मजेदार। ईश्वर उसकी आत्मा को शान्ति दे।
काफी रोचक है ये जूता जब से बुश पर पडा और कद बढ गया हे इसका अच्छा लिखा है आपने
Regard
Jitendra ji, aapki jute gatha padhi kafi dardnak hai....
कई बार तो मेरी माला बनाकर मुझे भी गधे नामक जंतु की सैर करा दी जाती है। कहीं किसी मंच पर कुछ भी गड़बड़ हो, मेरे सहोदरों को ही उठा-उठाकर फेंका जाता है। अभी बीते महिने की बात है, मेरे विदेशी मित्र को किसी ने बुश पर दे मारा.....
क्या बात है। गुरू जमा दिया तुमने। सच का तड़का है यह दास्तान।
गणतंत्र दिवस की आप सभी को ढेर सारी शुभकामनाएं
http://mohanbaghola.blogspot.com/2009/01/blog-post.html
इस लिंक पर पढें गणतंत्र दिवस पर विशेष मेरे मन की बात नामक पोस्ट और मेरा उत्साहवर्धन करें
आपका लेखन किस कारण रुका है भगत जी...
where r u friend?
bahut badiya.padkar dil khush ho gaya.6 sal ki dono ki peeda thoda aur vichlit kar gayi
आपने तो सच में ही बुश पर दे मारा। इराक रत्न के हकदार हो गए आप। बधाई।
सोच रहा हूँ कि जूते हमें भी पड़ जाएँ....तो ये बन्दा भी ता-जहां.....ता-मीडिया छा जाए....ओ ब्लोगर-भाईयों....चलाओ ना प्लीज़ मुझपर दो-चार-या फिर दस-बीस जूते.....!!
होली की घणी रामराम.
दोस्त आपने हिम्मत करके इस चौपाल मे लिख दिया........बिल्कुल सच्ची बात..बहुतों में तो हिम्मत नहीं ......
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