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Friday 3 April 2009

राह से गुजरते हुए.......

अजनबी हो जाने का खौफ
बदनाम हो जाने से ज्यादा खौफनाक है।
अकेले हो जाने का खौफ
भीड़ में खो जाने से ज्यादा खौफनाक है।

कि‍सी रास्ते् का न होना
राह भटक जाने से ज्यादा खौफनाक है।
तनाव में जीना
असमय मर जाने से ज्या‍दा खौफनाक है।

इनसे कहीं ज्यादा खौफनाक है-
आसपास होते हुए भी न होने के अहसास से भर जाना.........

-जि‍तेन्द्र भगत

( चाहा तो था कि‍‍ ब्लॉग पर नि‍रंतरता बनाए रखूँ, पर शायद वक्त कि‍सी चौराहे पर खड़ा था, जहॉं से गुजरनेवाली हर सड़क मुझे चारो तरफ से खींच रही थी, वक्त‍ के साथ मैं भी बँट-सा गया था...... आज इतने अरसे बाद वक्त ने कुछ यादें बटोरने, कुछ यादें ताजा करने की मोहलत दी है, अभी तो यही उम्मीद है कि‍ वक्त की झोली से कुछ पल चुराकर इस गली में आता-जाता रहूँगा। )

32 comments:

रंजन said...

स्वागत है वापसी पर...

अच्छी कविता के साथ आये..

विनीत कुमार said...

जो हैं उसके न होने का एहसास
सचमुच खतरनाक है।.
समय की समझ को दुरुस्त करती कविता

समयचक्र said...

अच्छी कविता

रंजू भाटिया said...

इनसे कहीं ज्यादा खौफनाक है-
आसपास होते हुए भी न होने के अहसास से भर जाना........
बहुत दिनों बाद आपका लिखा पढ़ा .
न होने के एहसास से भर जाना ....यह भाव अक्सर दिल पर हावी हो जाता है ...और फिर इस से बचना मुश्किल सा लगता है .अच्छा लगा आप का लिखा इतने दिनों बाद पढना ..लिखते रहे

संगीता पुरी said...

काफी दिनो बाद पढा ... बहुत अच्‍छी रचना है ... बधाई।

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत सुन्दर रचना है।बधाई।

Unknown said...

बेहतरीन रचना के लगी पढ़कर ।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

kahan rah gaye the mitra, bade dino baad aaye, achchha laga

कुश said...

उम्मीद है चौराहा पीछे छूट गया है.. अब एक सीधी सड़क है..

मुन्ना कुमार पाण्डेय said...

वेलकम बैक सर,
काफी समय बाद अच्चा लगा अचानक आपके आने की खबर मेरे ब्लॉग पे आई तो.

ghughutibasuti said...

बिल्कुल सही कह रहे हैं। गली में आना जाना बनाए रखिएगा।
घुघूती बासूती

L.Goswami said...

आते रहिये हमें आपका इन्तिज़ार रहेगा.

ताऊ रामपुरिया said...

सुस्वागतम भाई. अब पुरानी बात को याद रखना और एक निरंतरता बनाये रखियेगा. पिताजी का स्वास्थ्य आशा है अब दुरुस्त होगा. बहुत शुभकामनाएं.

रामराम.

राज भाटिय़ा said...

सचमुच बहुत खतरनाक एहसास है। शुक्रिया

अनूप शुक्ल said...

सुन्दर! ऐसे ही समय चुरा कर लिखना जारी रखा जाये!

mehek said...

bahut hi sunder

Udan Tashtari said...

बहुत कमी कल रही है भाई आपकी!! अब आ भी जाओ!!

बढ़िया रचना.

Gyan Dutt Pandey said...

अरे बिरादर वैल्कम बैक। बाकी, ब्लॉगिंग समय खोटा जरूर करती है और कमी हो तो राशनिंग करनी पड़ती ही है।

Smart Indian said...

कोइ बात नहीं मूल्य आधिक्य से ज़्यादा महत्वपूर्ण है. कविता अच्छी लगी.

मोहन वशिष्‍ठ said...

बडे ही अंतराल के बाद भारी कदमों के साथ वापसी की है आपने सचमुच आपकी कविता बहुत ही खतरनाक है बस अब आगे से इस अंतराल को कुछ कम कर दो दो चार दिन का अंतराल काफी हो जाता हे इसलिए निरंतरता बनाए रखना

हरकीरत ' हीर' said...

चाहा तो था कि‍‍ ब्लॉग पर नि‍रंतरता बनाए रखूँ, पर शायद वक्त कि‍सी चौराहे पर खड़ा था, जहॉं से गुजरनेवाली हर सड़क मुचाहा तो था कि‍‍ ब्लॉग पर नि‍रंतरझे चारो तरफ से खींच रही थी, वक्त‍ के साथ मैं भी बँट-सा गया था...........

वाह...बहुत सुन्दर....!!

कि‍सी रास्ते् का न होना
राह भटक जाने से ज्यादा खौफनाक है।
तनाव में जीना
असमय मर जाने से ज्या‍दा खौफनाक है।

इनसे कहीं ज्यादा खौफनाक है-
आसपास होते हुए भी न होने के अहसास से भर जाना.........

आपने अपने मनोभावों को कविता में बहुत ही सुन्दर ढंग से पिरोया है....बधाई ...!!

अजित त्रिपाठी said...

एक अंधेरा, एक ख़ामोशी, और तनहाई,
रात के तीन पांव होते हैं।
ज़िन्दगी की सुबह के चेहरे पर,
रास्ते धूप छाँव होते हैं।

इस उम्दा रचना के लिए बधाई....

दिगम्बर नासवा said...

अकेले हो जाने का खौफ
भीड़ में खो जाने से ज्यादा खौफनाक है

जितेन्द्र जी
सही और सार्थक लिखा है, ये तो ज़िन्दगी का एक पहलू है......

Harshvardhan said...

bahut sundar

Harshvardhan said...

bahut sundar

seema gupta said...

कि‍सी रास्ते् का न होना
राह भटक जाने से ज्यादा खौफनाक है।
तनाव में जीना
असमय मर जाने से ज्या‍दा खौफनाक है।
" वापसी पर हार्दिक स्वागत है.......इन पंक्तियों मे एक ऐसा सच छुपा है जिसे हम अनदेखा ही कर देते हैं....और तनाव हमरी जिन्दगी का आज बन जाता है...." वो कर्सर वाला दि‍ल आशीष जी (हिंदी ब्लॉग टिप्स) ने अपने ब्लॉग पर लिखा था की कैसे हम अपने ब्लॉग पर लगा सकते हैं. अगर आपको भी लगाना है तो उनके ब्लॉग पर इसका तरीका और आप्शन है."
Regards

"अर्श" said...

JITENDRA BHAEE AAPKE KAVITAWO KA KYA KAHANA BAHOT HI MUKAMMAL LIKTE HAI AAP.... BAHOT BAHOT BADHAAYEE AAPKO... AUR HAAN EK BAAT KE LIYE AAPKO SHUKRIYA KE AAP MERE BLOG KE TIPPANIKARTA ME 1000 WAN AAP HI HAI ISKE LIYE DHERO BADHAAYEE AUR SHUKRIYA AAPKO...


ARSH

आशीष कुमार 'अंशु' said...

मर्मस्पर्शी।

नीरज गोस्वामी said...

जीतेन्द्र जी हालाँकि बहुत दिनों बाद आपका लिखा पढ़ रहा हूँ लेकिन अफ़सोस नहीं है क्यूँ की इतने दिनों बाद ही सही आपने एक यादगार रचना दी है...बेहद नपे तुले शब्दों में आज के जीवन की विडंबनाओं को प्रस्तुत किया है...मेरी बधाई स्वीकार करें.
नीरज

डॉ .अनुराग said...

आते जाते रहिये ,कुछ गलिया आबाद रहे तो मन को अच्छा लगता है.....

shama said...

Sach hai...shatpratishat...akele honekaa bhay bhayankar hota hai...ye maine jeeke dekha hai....

Alpana Verma said...

अजनबी हो जाने का खौफ
बदनाम हो जाने से ज्यादा खौफनाक है।
अकेले हो जाने का खौफ
भीड़ में खो जाने से ज्यादा खौफनाक है।

बहुत अच्छी कविता लिखी है.
यहाँ आने जाने में निरंतरता बनाये रखियेगा..यही आशा करते हैं.