एक ही व्यक्ति अलग-अलग जीवन-स्िथतियों में जीता है, अलग-अलग उम्र को जीता है और अपने फलसफे बनाता है.... या नहीं भी बनाता....। लेकिन फितरत यही होती है कि व्यक्ति अपनी ही मूरत को बनाता है, सँवारता है, फिर उसे तोड़कर चल देता है। हमारा शहर फैलता जा रहा है और हम उसमें सिकुड़ते जा रहे हैं- मन से भी और रिश्तों से भी। मानसिकता का फर्क हमारे भौतिक जगत को प्रभावित कर रहा है और उससे प्रभावित भी हो रहा है।
हमारा संसार 'घर और लैपटॉप' के भीतर सिमटकर रह गया है। इस घर में या लैपटॉप में कुछ भी गड़बड़ी हो, हम बेचैन हो जाते हैं। अब अपनी ही बात बताऊँ, मैंने अपने लैपटॉप पर इंटरनेट से एक एंटी-वायरस डाउनलोड किया था, पर वह कारगर साबित नहीं हुआ, मैंने कंट्रोल पैनल जाकर जैसे ही उसे रिमूव किया, मेरी समस्या वहीं से शुरू हुई। डी-ड्राइव में मौजूद लगभग 5 जी.बी. की सारी फाइल उड़ गई, फिर इसके साथ कई चीजें उड़ गई- मेरी नींद, मेरे होश.....। मेरी हालत देवदास-सी हो गई और अपनी इस हालत पे मुझे गुस्सा भी आया- मैंने अपने-आपको इतना पराश्रित क्यों बना डाला है ?
मैंने याद करने की कोशिश की, मैं दो बार ऐसे अवसाद से और घिर चुका हूँ........... एक बार मोबाइल गुम होने के बाद, दूसरी बार मोबाइल से सारे नंबर डिलिट होने के बाद।
मैं सोच रहा था कि मैं अपने दोस्त को क्या जवाब दूँगा, जिसकी अभी-अभी शादी हुई थी और इस अवसर की सारी तस्वीरें और वीडियो मेरे कम्प्यूटर में सेव थी। मेरा जो नुक्सान हुआ सो अलग।
मैंने अपने एक मित्र से पूछा कि क्या इस रिमूव्ड फाइल को पाया जा सकता है ? फरवरी 2010 तक मेरा लैपटॉप अंडर-वारंटी है, इस वजह से हार्ड-डीस्क निकालना ठीक नहीं है, पर किसी सॉफ्टवेयर से ऐसा किया जा सकता है। मेरा मित्र इसके ज्यादा कुछ न बता सका। अब लैपटॉप मुझे खाली डब्बा-सा लग रहा है।
हम जैसे-जैसे मशीनों के आदी होते जाऍंगे, वैसे-वैसे मैन्यूअल और मैकेनिकल के बीच द्वंद्व बढ़ता जाएगा, क्योंकि मनुष्य अंतत: भूल करने के लिए अभिशप्त है, आखिर हम इंसान जो है।
कभी-कभी लगता है, हम अपने-आपको कितना उलझाते जा रहे हैं। हाई-टेक होती जिंदगी में रि-टेक की गुंजाइश खत्म-सी होती जा रही है।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
20 comments:
डिपेंडेंसी तो हो ही गयी है मशीनों पर.
HAM INSAAN AB MASHINO KE JAISE JEENE LAGE HAI MASHINO KE SATH.... AAGE KYA HOGAA UPAR WAALA HI JAANE..
ARSH
खुद ही मशीन बन गए हैं जी ..
सही कहा,खासकर मोबाईल के मामले मे तो बहुत परेशानी है।पहले सारे नंबर मुंहजबानी याद रहते थे अब तो सब कुछ फ़ोनबुक पर डिपेंड करता है।
ठीक कह रहे हो भाई...मोबाइल का तो बेक अप लेकर रखते है .....लेकिन ऐसे अचानक उड़ जाना इतना फ्रस्ट्रेशन देता है पूछिए मत ...इसलिए कुश से भी हमने कहा है ब्लॉग का बेक अप का जुगाड़ बतायो....
आपको आपका बैक अप मिल सकता है.. बस किसी कम्प्युटर गीक से संपर्क करें जो दिन भर बस साफ्टवेयर इंस्टाल और अनइंस्टाल करता रहता हो और उसे चेक करता रहता हो.. कोशिश करें कि वह किसी कालेज का छात्र हो, क्योंकि उसी के पास इतना समय होता इन सब के लिए.. कालेज के दिनों में हम भी किया करते थे यही सो हमें पता है कि कहाँ से इसका इलाज मिल सकता है..
बहुत देर हो चुकी है रीटेक के लिए.
बन्धु आदमी मशीनों का गुलाम होता जा रहा है.
मेरे ओर फैली सारी चीजें, टीवी, लैपटॉप,रिकार्डर.आइपॉड,ये,सब मुझे भाई-बहन जैसे लगते हैं और इसके बिगड़ते ही मैं परेशान हो जाता हूं।
har cheez ke fayde aur nuksan to hote hi hai lekin itna bhi nirash hhone ki jarurat nhi hai .
take it essy.
ये सब लफ़ड़े तो हैं ही जी!सब कुछ ठीक हो जाने के लिये शुभकामनायें। न हो तो पी.डी. को बुलवा लो।
बहुत हद तक आप सही कह रहे हैं.
रामराम.
सहानुभूति है जी। और क्या कहें?
बहुत कुछ पाने की चाह में इंसान बहुत कुछ खो भी रहा है..............संवेदनाएं, प्यार, जीवन से भरे लम्हे.......सब कुछ तो खोता जा रहा है इस हाई टेक दौर में
पि डी भईया से सहमत.
ये मशीनी निर्भरता हमें कहीं का नहीं छोड़ने वाली बिरादर...
हमारा शहर फैलता जा रहा है और हम उसमें सिकुड़ते जा रहे हैं- मन से भी और रिश्तों से भी।
वाह!
रचना बहुत अच्छी लगी।
आप का ब्लाग भी बहुत अच्छा लगा।
सही कहा आपने। आपके रिटेक का चांस लिया, तो गये सबसे पीछे।
-----------
SBAI TSALIIM
मुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा! आपने बहुत ही सुंदर लिखा है ! मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है!
For backing-up ur mobile contents you can try Microsoft Phone Data Manager. I tried it few days back and got back-up of all my contacts, pix, videos, songs from my mobile to my computer hard-disk.
Post a Comment