जिंदगी के कई रंग होते हैं
कुछ रंग वह खुद दिखाती है,
कुछ हमें भरना पड़ता है!
उन्हीं रंगो की तलाश में
भटक रहा हूँ मैं इन दिनों!
(1)
अनजाने किसी मोड़ पर
पता न पूछ लेना!
हर शख्स की निगाह
शक से भरी है इन दिनों!
मौसम से करें क्या शिकवा
हर साल वह तो आता है!
इस बार की बयार है कुछ और
कयामत आई है इन दिनों!
फरेबी बन गया हूँ मैं
खाया है जो मैंने धोखा!
अब रोटी से नहीं
भूख मिटती है इन दिनों!
(2)
सुना है उनकी तस्वीर
बदली-बदली सी लग रही है!
सच तो ये है कि वे खुद भी
बदले-बदले-से हैं इन दिनों।
पहले इक नजर के इशारे में
हाजिर हो जाते थे!
अब तो पुकारने पर भी
नजर नहीं आते हैं इन दिनों!
तुम हँसती थी
बेवजह
चहकती थी हर वक्त!
आज वजह तो नहीं है मगर
काश हँस देती इन दिनों!
(3)
मुझसे न पूछो यारों
है घर कहॉं तुम्हारा!
घर बसाने की चाहत में
बेघर-सा हूँ इन दिनों!
बहुत दूर आ गया हूँ
पीछे रह गई हैं यादे!
बेगाने शहर में ओ मॉं!
बरबस याद आती हो इन दिनो!
यूँ तो जिंदगी है काफी लंबी
और हसरतों की उम्र उससे भी लंबी!
जिंदा रहने की हसरत बनी रहे
इतना भी काफी है इन दिनों!!
-जितेन्द्र भगत
Tuesday, 1 March 2011
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10 comments:
बहुत सुन्दर/भावपूर्ण रचना.
वाह बिरादर बहुत दिन बाद दिखे और क्या खूब दिखे। क्या खूब लिखे!
सुंदर ... अद्भुद !!
सहज रूप से मन की आशाओं को शब्द दे दिये, बहुत सुन्दर।
बहुत दिनों बाद आये पर पूरे रंग में आये. बहुत शुभकामनाए.
रामराम.
ब्लॉग जगत में बने रहिये , आपकी कमी महसूस होगी यहाँ....
शुभकामनायें आपको !
शुभ पुनरागमन -सब खैरियत तो है ?
ये आमद भी हसीन रही..
अनजाने किसी मोड़ पर
पता न पूछ लेना!
हर शख्स की निगाह
शक से भरी है इन दिनों!
tareef se badhker hain ye ehsaas
प्रिये! तुम्हारे लिए.......
apni yah rachna vatvriksh ke liye bhejen rasprabha@gmail.com per parichay tasweer blog link ke saath
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