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Thursday, 7 April 2011

शि‍मला के बहाने ट्रेन का सफर भाग-2

शि‍मला स्‍टेशन बहुत खूबसूरत स्‍टेशन है, जहॉं बैठकर आप बोर नहीं हो सकते। वैसे भी मेरी यही इच्‍छा रहती थी कि‍ मैं शि‍मला आऊँ तो स्‍टेशन से ही वापस लौट जाऊँ।

इसके पीछे कारण है- शि‍मला की बढ़ती आबादी,घटते पेड़ और बढ़ते मकान,व्‍यवसायीकरण, ट्रैफि‍क और अत्‍यधि‍क शोर।




हम यहॉं 12 बजे तक पहुँच गए थे, और शाम को वापस 4 बजे यहीं आकर हमें बड़ोग के लि‍ए रेल मोटर पकड़ना था। सबसे पहले हमने स्‍टेशन पर ही रेस्‍टॉरेंट में खाना खाया। अब 4 घंटे में हमें माल रोड से घुमकर वापस आना था, इसलि‍ए हमने लि‍फ्ट तक जाने के लि‍ए टैक्‍सी ली।



15-20 मि‍नट में हम माल रोड पर आ चुके थे। ऊपर जाने तक के रास्‍ते में कपड़ों की मार्केट लगी हुई थी। मुझे वहॉं कुछ जैकेट काफी पसंद आए, पर समय की कमी की वजह से मैंने सोचा कि‍ दि‍ल्‍ली से खरीद लूँगा।(वापस लौटने पर दि‍ल्‍ली में मैंने वैसे जैकेट ढ़ँढने की कोशि‍श की पर वे पसंद नहीं आई )।
उसी मार्केट में चलते हुए इशान खि‍लौने की जि‍द करने लगा। मैंने उसे 50 रूपये का एक छोटा-सा टेलि‍स्‍कोप दि‍लवाकर पीछा छुटवाया। हमें यहॉं पर दो घंटे बि‍ताने थे, पर ये समय जाते देर न लगी।



लाल रंग के उस टेलि‍स्‍कोप को इशान कैमरा ही समझ रहा था। जैसे मैं उसका फोटो ले रहा था, वह भी मुँह से 'खि‍च-खि‍च' की आवाज नि‍काल लेकर मेरा फोटो ले रहा था।



उसके बाद मैंने आसपास के मनोरम दृश्‍यों का फोटो लि‍या-



और अपने हमसफर का भी-



फि‍र इशान को आइसक्रीम दि‍लाया और स्‍टेशन के लि‍ए चल पड़े।



नीचे की तस्‍वीर में ऊपर की तरफ जाखू पर्वत पर हनुमान जी की सबसे ऊँची मूर्ति‍ नजर आ रही है, जि‍सका अनावरण इसी साल हुआ था और उस अवसर पर अभि‍षेक बच्‍चन भी मौजूद थे।


माल रोड से पश्‍चि‍म की तरफ,जि‍धर बी.एस.एन.एल का ऑफि‍स और वि‍धानसभा है, उधर हर एकाध-घंटे पर टवेरा टाइप की सरकारी गाड़ी चलती है। हम उसका इंतजार करने लगे।






3 बज गए पर तबतक कोई गाड़ी नहीं आई। वहॉं खड़े ट्रैफि‍क पुलि‍स से हम 3-4 बार गाड़ी का समय पूछ चुके थे, पर उसने इंतजार करने को कहा। हमें लगा यदि‍ समय पर हम स्‍टेशन न पहुँचे तो रात हमें शि‍मला में बि‍तानी पड़ेगी और रेल मोटर के मजेदार सफर से भी हम वंचि‍त रह सकते थे।

क्रमश:

2 comments:

कुश said...

दो साल पहले गया था शिमला... सोचता हूँ कभी कितनी खूबसूरत रही होगी ये जगह..
जिस दिन हम निकले थे.. उसी दिन वहा स्नो फ़ॉल भी हुआ था.. टॉय ट्रेन का सफ़र तो अच्छा रहा

प्रवीण पाण्डेय said...

सुन्दर चित्रावली, घूम कर आनन्द आ गया।