दोहरी जिन्दगी जीने का इतना सुखद अर्थ मैंने कभी नहीं सोचा था। ब्लॉग पर जो आभासी रिश्ते बनते हैं या बिगड़ते हैं, किसी टी.वी. धारावाहिक की कहानी की तरह ही वे आगे बढ़ते हैं। एक सूत्र से कथा दूसरे सूत्र तक जाती है, दूसरे से तीसरे और इस तरह कभी न खत्म होनेवाले इस सीरियल से हम जुड़ते चले जाते हैं। यहॉ हम ही नायक, हम ही खलनायक और हम ही निर्देशक।
कभी-कभी अवसाद मन में भर जाता है कि इससे बाहर चला जाऊँ, अपनी जिंदगी संभालने का वक्त नहीं निकल पाता, परिवार-रिश्तेदार भी वक्त देने के लिए ताने मारते रहते हैं। इसके बाद, एक साथ इतने लोगों से ब्लॉग पर मिलने-जुलने की ताकत चाहिए, प्रबल इच्छा-शक्ति चाहिए। और यह ताकत कई लोगों के पास है, जिनके जज्बे की मैं कद्र करता हूँ।
इस छद्म भरी दुनिया में व्यक्ति अपनेआप को जिस तरह प्रोजेक्ट करता है, क्या यही उसका असली चरित्र है? बहरूपिया बनकर लोगों की भावनाओं को भुनाना क्या सही है? परदे पर आए बिना स्वांग करना आसान नहीं है। कभी शीशा देखते हुए आपने राक्षसी चेहरा बनाया है, (आज बनाकर देखिएगा) कितना भयावह रूप होता है वह! फोटो खिंचवाते हुए हम अपने चेहरे पर मुस्कान लाने की कोशिश क्यों करते हैं? हम अपनी लेखनी से जो छवि निर्मित करते हैं, क्या उसी उत्कंठा से हम उसे जी पाते हैं?
हर आदमी की अपने बारे में एक राय होती है, कई बार अपने बारे में बनी राय दूसरों के राय से भिन्न और कई बार विपरीत भी होती है। बहुत चुप रहनेवाले व्यक्ति को आप ब्लॉग पर बतरस के बादशाह के रूप में स्थापित पा सकते हैं। बहुत मजाकिया आदमी गंभीर लेखन के लिए जाना जाता हो, गंभीर आदमी ब्लॉग पर सतही बातें करते हुए मिल सकते हैं। बहुत मिलनसार लगनेवाला आदमी शायद मिलने पर झल्लाते हुए नजर आ सकता है। अहंकारी लगनेवाला आदमी क्या पता खातिरदारी में कोई कसर न रहने दे। सुंदर लगने वाला आदमी बदसूरत और बदसूरत लगनेवाला आदमी सुंदर नजर आ सकता है। जरुरी नहीं कि यह विरोधाभास मिलता ही हो। अपनी छवि को टूटता या बनता देख अफसोस या संतोष होना आम बात है।
एक सहज मानवीय अवगुण के तहत खास लोगों के साथ आम लोग जल्दी रिश्ता बनाने के फिराक में रहते हैं। वे सोचते हैं कि इस दोहरी जिंदगी के भेद को धीरे-धीरे खत्म कर देंगे और व्यक्तिगत रिश्ता कायम कर उनसे अपना स्वहित सिद्ध करेंगे। इसमें सफल होंगे या नहीं यह वे भी नहीं जानते। इसलिए कहा जा सकता है कि ब्लॉग को ब्लॉग ही रहने दो, इस रिश्ते को कोई नाम न दो। अधिकांश ब्लॉगर एक-दूसरे से न कभी मिलें हैं और न ही मिलना चाहेंगे। शायद मैं भी इन्हीं में से एक हूँ। यह एक रोमांटिक विचार है। ब्लॉगर्स-मिट इस विचार में मिसफिट बैठता है, पर रोमांटिक विचार अक्सर क्षण-भंगुर होते हैं। अनुराग जी ने मेरी एक पोस्ट पर एक बड़ी अर्थपूर्ण टिप्पणी की थी, जिसपर मैं सोचता ही रह गया था-
‘कभी किसी ने ये भी कहा था की लिखने वालो से मत मिलो वरना उनकी रचनायों से शायद उतना मोह नही रहेगा।‘
मैं एक नामी रचनाकार से बड़े अनौपचारिक माहौल में किसी के फ्लैट पर मिला था, उनका नामोल्लेख करना इसलिए यहॉं जरूरी नहीं समझता क्यूँकि इस खॉचें में अपना भी नाम डालने की सहूलियत बचाए रखूँ और आपका भी। शराब के नशे में उसकी ऑंखें अंगारे की तरह दहक रही थी, और वो कुछ बड़े लोगों के नाम के साथ गालियॉं लगाकर संबोधित कर रहा था। मैं जिनके साथ गया था, इशारे से उनको जल्दी चल निकलने के लिए कहा। उसकी अन्य रचनाऍ भी मैंने पढ़ी थी, घर जाकर दुबारा पढ़ी कि कोई इतनी अच्छी बातें कैसे लिख सकता है!
सिगरेट पीने वाले एंटीस्मोकिंग कैम्पेन चला रहे हैं। निशस्त्रीकरण के पैरोकार बेहिचक शस्त्र उठा रहे हैं। बाबा जी वैराग का प्रवचन दे रहे है, पर स्वयं घोर वासना में डूबे हैं। घर के पुरुष अपनी स्त्रियों को पर्दे में रखने की कोशिश कर रहे हैं और दूसरों की स्त्रियों को बेपर्दा कर रहे हैं। इस दोहरी जिंदगी से मुझे कोफ्त होती है। आपको भी जरुर होती होगी!
(इस पोस्ट को किसी के संदर्भ में नही लिखा गया है, सप्रयास अन्यथा न लें)
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33 comments:
मैंने अभी तक जितने ब्लौगर से मिला हूं उन्हें उनके लेखन के अनुरूप ही पाया है(एक को छोड़कर)..
मगर आपकी कही बातों को झुठला भी नहीं रहा हूं..
अनुराग जी ने मेरी किसी पोस्ट पर ये ही टिप्पणी की थी। और यह टिप्पणी सोचने पर मजबूर कर देती है। और साथ ही यह काफी हद तक सच भी है। जीवन जीना और लिखना दोनो में काफी फर्क होता है। ऐसा मेरा मानना है। वैसे दो लोगो को मैंने वैसा ही पाया जैसा वो लिखते हैं। एक मेरे सर चरणदास सिंधू और दूसरा अमृता प्रीतम।
बहरूपिया बनकर लोगों की भावनाओं को भुनाना क्या सही है?
सच है ! यह आभासी दुनिया ही है जिसने इसे सच माना गया काम से !
शायद इसीलिये कहा है..
हर चहरे में छुपे है की चहरे..
जिसको भी देखिये बार बार देखीये..
ब्लागिंग अभिव्यक्ति का एक माध्यम है। बस। दुनिया के लोग यहां भी हैं। वैसा ही होगा सब कुछ जैसा दुनिया में होता है। समझे बिरादर!
अधिक नही कहूंगी ,अनूप शुक्ल की बात मे जोड़ना चाहूंगी कि बहुत हद तक ब्लॉगिंग को डिफाइन किये जाने की कोशिश कवायद चलती रही , पर यह वाकई किसी खंचे मे फिट न होने वाली विधा है ,आप दो चार ब्लॉग और ब्लॉगरों को देख अगर यह कहना चाहें कि ब्लॉगिंग करने वाले दोहरी पर्सनैलिटी ओढ कर दुनिया को धोखा दे रहे हैं तो भी मै मानती हूँ कि आप इसके किसी एक पक्ष की बात कर रहे हैं।
दूसरा, ब्लॉगिंग इस बात की भरपूर छूट देती है कि आप छद्म नाम का इस्तेमाल करें और वह सब कह पाएँ जो दुनिया मे अन्यत्र नही कह सकते और अपनी असल पहचान के साथ नही कह सकते ।इस अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का कौन कैसे इस्तेमाल करता है उसका क्या रूल रेग्युलेशन बनायेंगे ?आपके हाथ् मे उपेक्षा का हथियार है बस ! आगे चलें वाले अन्दाज़ मे बढ जाइये ।
हिंदी की छोई सी ब्लॉग दुनिया के अलावा और बहुत बड़ा संसार है ब्लॉगिंग का उसे भी टटोलें ।
और मस्त रहें !
आप कुछ ज्यादा ही गहरे उतर गए अपनी सोच में. मेरे ख्याल से ब्लॉगिंग में अभी तक ना तो कोई इतना अच्छा काम सामने आया है कि ब्लॉगिंग अपरिहार्य ही बन जाए और ना ही कुछ ऐसा बुरा घटित हुआ है कि आपको अवसाद से भर दे. अनूप जी ने सौ फीसदी सच कहा. बाकी जिंदगी से ब्लॉगिंग को अलग करके न देखा जाए.
वैसे मैं आपकी इस बात से सहमत नहीं हूँ कि यहाँ अधिकतर लोग अपनी असलियत को छुपाकर लिख रहे हैं और उनका लेखन उनके वास्तविक व्यक्तित्व से अलग है. किसी का लिखा हुआ उसके बारे में अपने आप काफी कुछ कह जाता है. लगातार लिखते हुए आप लंबे समय तक किसी को मूर्ख नहीं बना सकते.
पीडी जी का कथन भी मेरे विचार की पुष्टि ही करता है.
ऐसा ही कुछ मै भी महसुस करता हुँ । आदमी आजकल दिनो-दिन झुठा होता जा रहा है ।
दोहरा स्वभाव तो हमारे इस पीढी में बहुत आम है, एवं चिट्ठाकारी में भी दिखे तो कोई आश्चर्य नहीं है.
-- शास्त्री
-- हिन्दीजगत में एक वैचारिक क्राति की जरूरत है. महज 10 साल में हिन्दी चिट्ठे यह कार्य कर सकते हैं. अत: नियमित रूप से लिखते रहें, एवं टिपिया कर साथियों को प्रोत्साहित करते रहें. (सारथी: http://www.Sarathi.info)
आज आपने वाकई सोचने को मजबूर कर दिया. इस सवाल से तो मै पिछ्ले कई सालो से मुँह छुपाता रहा हूँ. पहले खूब सोचा इस बिषय पर, बाद मे सोचना छोड दिया. कुछ खास वजह नही पर शायद जवाव मुझे भी मालूम है और उसी से डरता भी हूँ.
हमारा आचरण बताता है कि हम क्या हैं। लेकिन हमारा लेखन यह भी बताता है कि हम क्या होना चाहते हैं। हमारा आचरण अनेक कारकों से प्रभावित होता है। हमारे लेखन को भी अनेक कारण प्रभावित करते हैं, लेकिन लेखन में हम फिर भी स्वतंत्र होते हैं और मनचाहा लिख सकते हैं। ब्लागिरी ने एक और साधन हमें दे दिया है कि हम अपने मौजूदा व्यक्तित्व को छुपा कर भी अपने सपनों का एक ब्लागीय व्यक्तित्व निर्मित कर सकते हैं और उसे बाखूबी निभा भी सकते हैं।
एक बात और कि, मनुष्य का चरित्र और व्यक्तित्व जड़ वस्तु नहीं है। वह सतत परिवर्तनशील है। इस कारण से किसी के भी लिए स्थाई रूप से कोई भी धारणा बना लेना उचित नहीं है। हर ब्लागर के चरित्र और व्यक्तित्व में हर आलेख के उपरांत कुछ न कुछ परिवर्तन आता है चाहे वह मात्रात्मक ही हो जो नजर न आए, लेकिन ऐसा होता अवश्य है।
इस नजरिये से देखें तो आप को दोहरे ही नहीं तिहरे चरित्र भी दिखाई देने लगेंगे। लेकिन इस से अवसाद में जाने की कतई आवश्यकता नहीं है।
sab logon ne baut kuch kah diya hai mai agli post per kuch comment doonga
भगत जी इस दुनिया मे आमने सामने मिलने वाले भी, दोहरे चेहरे लेकर मिलते हे, आप की बात से सहमत हू, किसी ने सच कहा हे कसमे वादे प्यार वफ़ा सब बाते हे बातो का क्या....
धन्यवाद
bandhu mera yah maanna hai ki har aadmi ke andar dohra vyaktitva hota hai agar exceptions ko chhod den to, jab dono vyaktitvon ke beech jyada antar aa jata hai to vah chubhne lagta hai, mujhe ek gaana yaad aa gaya "Kya miliye aise logon se jinki seerat chhupi rahe, nakli chehra saamne aaye asli soorat chhipi rahe" lekin har aadmi kahin n kahin is granthi se vyathit aur sankramit hai
जितेन्द्र भाई
मैं अब तक देश विदेश मिलाकर सौ से अधिक ब्लॉगर्स से मिल चुका हूँ और न जाने कितनों से ही फोन द्वारा बातचीत है. न जाने क्यूँ आपसे सहमत नहीं हो पा रहा..मेरा अनुभव पूर्णतः अलग रहा. मुझे उन लोगों से मिलने के बाद उन्हें पढ़ने में और अधिक आनन्द आने लगा. एकाध बार तो अपने वास्तविक व्यक्तित्व से अलग लिखा जा सकता है मगर रोज रोज लगातार-शायद नहीं. जबकि ब्लॉगिंग में आप हर तरह की बातें लिख रहे होते हैं. खैर, मेरा अनुभव है..सबके अलग अलग हो सकते हैं.
आखिर ब्लागर भी तो इसी दुनिया क हिस्सा हैं।वो किसी दूसरी दुनिया से नही आया है।इसलिये बहुत ज्यादा सोचने की ज़रुरत नही है।बस शबरी की तरह जियो,चखो और रखो,काम का न हो तो फ़ेंको।खुश रहो और हो सके तो लोगो को खुश रखो,बस,बाकी कुछ काम ऊपर वाले के लिये भी तो छोडना है की नही। बाकी लिखा आपने सटीक है,इसमे कोइ शक नही है।
हर इंसान में अच्छाई और बुराई होती है। बुराई बहुत ज्यादा और बहुत जल्द नज़र आती है लेकिन अच्छाई पर आदमी गौर नहीं कर पाता। लोगों से मिलने पर सबसे प्रबल इच्छा यही होती है कि वो हमारी तारीफ़ करें। हम भले ही उतनी तारीफ़ के लायक ना हों तब भी हमें सराहना अच्छी लगती है। फिर ब्लॉग पर तो इसका पूरा स्कोप रहता है कि हम अपनी मनचाही छवि लोगों के आगे पेश करें। ये कोई बहुत चुनौतिपूर्ण काम नहीं। दिमाग के अलग-अलग खानों में अपनी अलग कॉपियां तैयार कर लीजिए बस जब जहां जैसी ज़रूरत पड़े, इस्तेमाल कर लीजिए। लेकिन ऐसे लोग अब भी दुनिया में बहुत कम मिलेंगे जो सच को सच कहने की कुव्वत रखते हैं, जो अपनी आलोचना से नहीं डरते, जो नतीजे की परवाह किए बगैर बुराई के ख़िलाफ़ खड़े नज़र आते हैं। ऐसे लोगें के लिए अगर कोई चीज़ सबसे ज़्यादा मायने रखती है तो वो है उनका ज़मीर। ये बात सौ आने सच है कि जो अपने ज़मीर की बात सुनता है वो दुनिया के लिए भले ही बुरा बना रहे पर जीता बहुत इत्मीनान के साथ है। वो कभी भी इंसानियत के ख़िलाफ़ नहीं जा सकता।
मेरा वोट उड़न तश्तरी समीर जी के साथ है।
आप जितने भी चतुर हों, नियमित लिखने पर आपका असली रूप सामने आ ही जाएगा। झूठ के साथ सबसे बड़ा लफ़ड़ा ये है कि इसे बोलने वाले को याद रखना पड़ता है। अब कोई ब्लॉगर अपनी सभी बातों को कहाँ तक याद रख पाएगा। रोज पचास जगह बात करनी पड़ती है।
इसलिए बेहतर है कि वही बोलें जो सच्चाई है। आगे के लिए कोई टेन्शन नहीं रहता। यहाँ कमोबेश यही हालात नजर आते हैं।
अरे बिरादर, कौन सा रोग पाल लिया...
दिनेश राय द्विवेदी जी और समीर लाल जी (उर्फ उड़न तस्तरी) के शब्दों पर गंभीरता से अमल करें। ब्लागरों के काफी अनुभवी डाक्टर हैं दोनों। आपकी बीमारी दूर हो जाएगी।
लिखें, लिखाएं, दोस्त बनाएं। ब्लागिंग की दुनिया को आगे बढ़ाएं।
अपना अपना तजुरबा अपनी अपनी बात
कोई रात को दिन कहे कोई दिन को रात
भगत जी अजब है दुनिया
बड़ी ही गजब है दुनिया
.
अ्माँ भगत मियाँ, बड़ी गड़बड़ हो गयी ।
वइसे तो इस बचकानी सोच के आलेख पर
टिप्पणी करना गवारा नहीं था, लेकिन ...
यहाँ दायें हाथ के VISITERS
पर निगाह पड़ी, बापरे... दो लाख बत्तीस
हज़ार चार सौ बयासी ! लगता है मियाँ जी
आत्मप्रवंचना के शिकार हैं । अउर हम
टिप्पणी करी करी न करी गुनगुनाते हुये
सटकनारायण की शरण में जा रहें हैं
अन्तिम पेराग्राफ में तो कटु सत्य की सशक्त अभिव्यक्ति की है /इस दशा के सुधार की कोई गुंजाइश नजर नहीं आती
"Blogging is the platform to express your views thoughts and feelings freely, and what ever you have expressed is no where wrong. every indvidual has his own experience about human being, so some may have good some may have bad. One line i would like to appreciate wher you have mentioned " blog ko blog hee rehne do koee naam na do" great expression"
Regards
ब्लॉग लिखना आपके दिल की अभिव्यक्ति का माध्यम है ..लोग अच्छे बुरे हर जगह है ...बहुत लोगों से मिलना तो नही हुआ मेरा .पर जितने ब्लॉग लिखने वालों से मिली या बात हुई है ..अभी तक का अनुभव तो अच्छा ही रहा है ...आगे का पता नही . कुछ ऐसा ही मैंने बकलमखुद में आज की समापन किश्त में लिखा है ..की अपवाद हर जगह हैं ..यह जगह भी इस से अछूती नही है
double is trouble
regards
double is trouble
regards
अरे बिरादर हम भी दो दिनों से इस ब्लॉग की दुनिया से बाहर थे ..बहुत सारे लोग बहुत कुछ कह गए है हम फिलहाल एक शेर छोडे जा रहे है जो हमने कभी इस माहोल को देख कर लिखा था ...
साँस लेते है बिजली के तारो पे अब
की रिश्ते कंप्यूटर के परदो पे बनते है
जीतू भाई अच्छे और बुरे हर तरह के लोग हर जगह होते है.. मैं कई लोगो से मिल चुका हू और कइयो से फ़ोन पर बाते भी होती है.. कुछ फ़र्क़ नही देखा मैने.. हालाँकि आप भी पूर्णतया ग़लत नही है..
भाई जितेंद्रजी , आपकी बात बड़े ध्यान से पढी और फ़िर बाक़ी टिपणीकारों की बातें भी पढी ! आप आभासी रिश्ते बनने बिगड़ने की बात करते हैं ! आपका सारा दृष्टिकोण ग़लत भी नही है तो सही भी नही है ! असल में आप जो दोहरे चरित्र की बात कर रहे हैं तो शायद आप आकलन में कहीं चूक रहे हैं ! दोहरे रिश्ते या दोहरे चरित्र असल में जिन्दगी में भी उतनी ही अहमियत रखते हैं !
आप या मैं असल जिन्दगी में भी इससे इनकार नही कर सकते ! अगर और सपष्ट करूँ तो हम घर में रिश्तो के हिसाब से अपना
चरित्र बदलते हैं ! हम माँ और पत्नी के साथ अलग २ रिश्ते रखते हैं ! माँ के पाँव छूते हैं जबकि पत्नी के नही !
फ़िर आप कहते हैं की यहाँ अपने को बहुरुपिया बनाकर लोगो की भावनाओ को भुनाते हैं ! तो भाई साहब यहाँ कौन किसकी
भावनाओं को भुना सकता है ? अब मैं आपकी पोस्ट पर टिपणी कर रहा हु तो इसमे मुझ पर या आप पर कौनसा दबाव है ?
मेरी मर्जी है मुझे आपके साथ व्यवहार रखना है मैं मेरे विचार लिख रहा हूँ ! और आपको ये छुट है की आपको मेरे विचार
आपके ब्लॉग पर रखना या ना रखना ! ये आपका अधिकार है ! अगर आपका आशय पहचान छुपाने से है तो भाई अच्छे २
धुरन्दर लेखक भी छदम नाम का उपयोग पुराने जमाने में भी करते आए हैं ! तो हम यहाँ क्यों उम्मीद करे की सब कुछ
असली ही होगा ? सबके अपने २ शगल हैं ? और एक बात की यहाँ कोई किसी का कुछ ले तो रहा नही है की आपकी या
मेरी अठ्ठन्नी कोई ले जा रहा है ! तो उससे क्या फर्क पङता है ! आप किसी को पसंद करते हैं कोई आपको करता है तो ठीक नही तो भाई हम तो अपने लट्ठ और भैंस से खुश हैं !
मुझे तो बहुत ज्यादा अनुभव नही है ! पर जितने भी लोगों से मेरा परिचय हुवा है उनसे सब बढिया बात चीत है ! और उनमे
हर तरह के लोग हैं ! देश में भी और विदेश में भी ! उनमे नामी गिरामी भी हैं और बिल्कुल मेरे बेटे की उम्र के भी ! सबसे अच्छी दोस्ती बिना उम्र के भेदभाव के है ! और यहाँ जब आप किसी से निजी संबध बनाते हैं तब उनमे कोई आपसे झूँठ
बोल कर क्या लेलेगा ? यहाँ क्या है जो कोई अपने आपको राजा बता देगा तो जुल्म हो जायेगा ! भाई अगर किसी की
इसी तरह इच्छा पूरी होती है तो होने दीजिये ! अच्छा है की ब्लॉग जगत से ये अरमां पुरे हो रहे हैं!
भाई यकीन मानिए ! मुझे तो एक भी लफ़ाडू ब्लॉगर अभी तक नही मिला ! मैं तो ब्लॉग लिखने में बिल्कुल पैदल हूँ ! कई
ब्लॉगर बंगलोर से ऐसे हैं जो फोन करके मेरे ब्लॉग का काम कर देते हैं ! मेरा तो पास वर्ड भी उनके पास ही रहता है !
अब कल की मेरी पोस्ट में देखना आपको नाचता हुवा सांड दीखाई देगा ! तो ये भी वो ही करते हैं और वो क्रेडिट लेने से भी मना करते हैं ! इसे आप क्या कहेंगे ?
आपको पता नही क्यों ऐसे विचार आते हैं ? भाई ये भी यथार्थ की दुनिया है ! जैसे कचरा जरासी हवा में उड़ जाता है वैसे
ही झूंठे लोग भी ज्यादा नही चल सकते ! और भाई मैं पिछली बार भी आपको समझा चुका हूँ ! और आप सबको एक पैमाने में तौल कर नही चल सकते ! आप समीर जी को मेल कीजिये ! आपको हर हाल में वापसी मेल आयेगा ! आप अवश्य प्रयोग
करके देखें ! भले ये ही लिखें की भाई साहब मेरे ब्लॉग की टिपणी कैसे अक्टिव करूँ ? ! यकीन मानिए .. आपको जवाब
अति शीघ्र मिलेगा ! अब दुसरे महाशय ऐसे भी मिलेंगे , जिन्हें आप कहे की सर मैं मरने वाला हूँ और अगर आपकी
वापसी मेल मिल जाए तो मैं बच सकता हूँ ! यकीन करिए उनके कानो पर जूँ भी नही रेंगेगी ! तो इसमे ग़लत क्या है ?
समीरजी की एक अपनी लाइफ स्टाइल और मिलनसारिता है और दुसरे सज्जन की अपनी ! कई ब्लॉगर हैं जो आपकी
मेल का जवाब नही देंगे ! ये उनकी आदत है ! वो आपसे सम्बन्ध नही चाहते तो गोली मारिये उनको ! एक तरफा तो नही बन सकते न सम्बन्ध !
भाई फ़िर मैं कुछ ज्यादा लिख गया ! भाई अपना तो सीधा हिसाब है ! अपन किसी के फटे में टांग देते नही है और अगर
कोई हमारे फटे में टांग छोड़ के जूता भी घुसाने की कोशीश करे तो अपना लट्ठ और भैंस जिंदाबाद ! भाई जब तक अपने
को आनंद आ रहा है अपनी ब्लागरी जिंदा नही तो और भी बहुत से गम हैं जमाने में ! अरे यार भाई अगर ये ही गम पालने हैं तो फ़िर ब्लागरी क्यो करना ? ये रांडी रौवने तो अपने आसपास ही बहुत हैं ! यहाँ तो घंटे दौ घंटे समय काट लो ! जो अपने
से मिलते जुलते विचार वाले हैं इनसे गप शप करलो ! नही तो किसी से क्या लेना देना ! ताऊ को छोड़ कर और किसके पास
इतना फोकट समय है जो आपको इतनी बड़ी टिपणी देगा ?
भाई फ़िर कह रहा हूँ हम सबको खुश नही रख सकते ! आप फिकर ही मत पालो ! कोई खुश रखने का हमने ठेका थोड़ी ही
ले रक्खा है ? भगवान् बुद्ध ने कहा है की तुम ख़ुद खुश रहना सीख जावो तो तुम्हारा आस पडौस सुखी हो जायेगा ! बड़ा अर्थ पूर्ण वचन है ! यकीन रखो भाई , हमने तो यहाँ भी और असल जिन्दगी में भी ये असूल बना के चले हैं की कोई एक कदम
अपनी तरफ़ आए तो दो कदम हम उसकी तरफ़ बढ़ा देते हैं ! और अगर कोई एक कदम पीछे खींचे तो कहावत तो सौ कदम पीछे खींचने की है ! पर हम तो उस गली से मुंह ही मोड़ लेते है ! भाई बस राम राम ! इब और भी काम करना है ! या टिपणी ही करते रहे अब ! :)
आप हिन्दी की सेवा कर रहे हैं, इसके लिए साधुवाद। हिन्दुस्तानी एकेडेमी से जुड़कर हिन्दी के उन्नयन में अपना सक्रिय सहयोग करें।
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सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्रयम्बके गौरि नारायणी नमोस्तुते॥
शारदीय नवरात्र में माँ दुर्गा की कृपा से आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हों। हार्दिक शुभकामना!
(हिन्दुस्तानी एकेडेमी)
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आपकी इस पोस्ट की सबसे अंतिम लाईन जानदार है । जो आपने कोष्ठक में दी है आशा है आप चौंकेंगे नहीं ।
इसे पढ़ते वक़्त विनय विश्वास की कविता की चार लाइने याद आ गयीं--
वो जिद पर अड़ा रहा
आदमी नहीं बना ।
पेड़ की तरह खड़ा रहा
उसे तो कटना ही था ।।
दोस्त तुमने जो अनुभव किया उसे बता दिया । ब्लॉग वास्तव में हमारी अनकही अभिव्यक्ति का ही तो माध्यम है ।
सही कहा, बिरादर!
"यही दुनिया है तो आख़िर यही दुनिया क्यों है?
यही होता है तो आख़िर यही होता क्यों है?"
बेरीढ़ वाले कुछ भी करें, उनका यही इश्टाइल है - होने दो, हमें क्या?
ब्लागिंग की दुनिया में पिछले तीन वर्षों से हूँ और अपने ब्लॉगर मित्रों से मुंबई, दिल्ली, लखनऊ और राँची में मिल पाया हूँ और कुल मिलाकर मेरे लिए ये अत्यंत सुखद अनुभव रहा है।
ये सही बात है कि जिस तरह का लेखन हमारा चिट्ठों पर रहता है वो हमारी छवि का वाहक होता है पर जैसा आपने भी कहा कि ये कतई जरूरी नहीं कि वास्तविक जीवन में भी उसका व्यक्तित्व वैसा ही हो।
इतने बड़े समूह में हर तरह के लोग आपको मिलेंगे। और इससे क्या उम्मीद रखते हैं आप आखिर ये अपने आस पास की दुनिया का ही तो आइना है।
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