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Sunday, 12 October 2008

पुरानी जींस और गि‍टार.......

अमेरि‍का में 19वीं सदी के मध्‍य में जब मजदूर वर्ग ने जींस को पहले-पहल अपनाया, तब मार्क्‍स भी यह नहीं जानते होंगे कि‍ आनेवाले दि‍नों में यह अमीरों के बीच भी खासा लोकप्रि‍य हो जाएगा। 1930 के दौर में हॉलीवुड में काऊ-बॉय ने जींस के फैशन को और लोकप्रि‍य बनाया। द्वि‍तीय वि‍श्‍व-युद्ध के दौरान अमेरि‍कन सैनि‍क ऑफ-ड्यूटी में जींस पहनना ही पसंद करते थे। 1950 के बाद यह अमेरि‍का में नौजवानों के बगावत का प्रतीक बन गया और वहॉं के कुछ स्‍कूलों में इसे पहनने पर प्रति‍बंध भी लगा दि‍या गया। आगे चलकर यही जींस भारत में मस्‍ती और मौज का पहनावा बन गया। 1990 के दशक से बॉलीवुड में भी इसको लोकप्रि‍यता मि‍लने लगी।


सलमान खान ने तो जींस की नीक्‍कर और फटी जींस को नौजवानों के बीच लोकप्रि‍य बनाया। टी.वी. पर एक ऐड भी आपने जरूर देखा होगा-एक जींस पहनी हुई लड़की चहकती हुई आती है,फटी जींस बि‍स्‍तर पर छोड़कर बाथरूम की तरफ चली जाती है,इस बीच मॉं आती है, फटी जींस देखकर मुँह बनाती है और‍ बड़ी मासूमीयत के साथ सि‍लाई-मशीन चलाकर खुद उस जींस की सि‍लाई कर देती है।
बहरहाल, फर्ज कीजि‍ए,कोई छात्र धोती-कुर्ता पहनकर महानगरीय कॉलेज में आ जाए,तब क्‍या होगा। वैसे कुर्ता-पाजामा के दि‍न अभी नहीं लदे हैं, नेताओं का संरक्षण भी इसे प्राप्‍त है और कुछ छात्र-छात्राओं में भी जींस के ऊपर कुर्ता पहनने का फैशन है।ऐसा माना जाता है कि‍ कॉलेज में जि‍सने जींस पहना है वह लड़का या लड़की मॉड है। हालॉकि‍ मॉड बनने के लि‍ए जींस को पैमाना मानना सही नहीं है। गर्मी हो या सर्दी, जींस पहनने में फैशनपरस्‍तों को तकलीफदेह नहीं लगती। जींस की कुछ खूबि‍यों का मैं कायल हूँ-
1)उसे प्रैस नहीं करना पड़ता, अब तो रिंकल्‍ड जींस भी चलन में आ गया है।
2)जब तक बदबू न आने लगे, उसे धोने की भी जरुरत नहीं पड़ती, कुछ लोग 15-20 बार पहनने के बाद भी उसे धोने से कतराते हैं। उनका कहना है कि‍ इसका मैलापन भी एक फैशन है।
3) ज्‍यादा पहनने पर जींस कहीं से फट जाए(मूल स्‍थान को छोड़कर), तो उसे भगवान की नि‍यामत समझी जाती है, उसकी सि‍लाई करना फैशन के अदालत में गुनाह है। और अगर न फटे तो उसे पत्‍थर से रगड़ा जाता है, साथ ही सुई लेकर सावधानी से उसे जगह-जगह से उधेड़ी जाती है।


हालॉकि‍ मैंने जींस ज्‍यादा नहीं पहना है और पुरानी होने से पहले ही पहनना छोड़ दि‍या था। पर हैदर अली के इस गीत में जींस के साथ कॉलेज के दि‍नों को फि‍र से जीता हुआ देखता हूँ। सि‍गरेट कभी नहीं पी क्‍योंकि‍ खेतों के ऊपर जमी हुई धुंध सि‍गरेट की धुओं से ज्यादा आकर्षक लगती रही है। खेत देखे अरसा हो गया है, अब सर्दियों की धुंध का इंतजार है।

हैदर अली की आवाज में ये मस्‍त गीत सुनने के लि‍ए हम्‍टी-डम्‍टी के पैर के पास क्‍लीक कीजि‍ए, मजा न आए तो समझि‍एगा कि‍ आपका जवॉं दि‍ल इस अहसास में ड़ूबने से चुक गया। इस हालत में आपको आपके जमाने की गीत भी सुनाउँगा- चुप-चुप बैठे हो जरुर कोई बात है.....

Ali Haider - Puran...


जो सुन ना सके, उनकी सहूलि‍यत के लि‍ए इस गीत के बोल लि‍ख देता हूँ-


पुरानी जींस और गि‍टार
मोहल्‍ले की वो छत और मेरे यार
वो रातों को जागना
सुबह घर जाना कूद के दीवार

वो सि‍गरेट पीना गली में जाके।
वो दॉतों को घड़ी-घड़ी साफ
पहुँचना कॉलेज हमेशा लेट
वो कहना सर का- ‘गेट आउट फ्रॉम दी क्‍लास!

वो बाहर जाके हमेशा कहना-
यहॉं का सि‍स्‍टम ही है खराब।
वो जाके कैंटि‍न में टेबल बजाके
वो गाने गाना यारों के साथ
बस यादें, यादें रह जाती हैं
कुछ छोटी,छोटी बातें रह जाती हैं।
बस यादें............

वो पापा का डॉटना
वो कहना मम्‍मी का- छोड़ि‍ए जी आप!
तुम्‍हें तो नजर आता है
जहॉं में बेटा मेरा ही खराब!

वो दि‍ल में सोचना करके कुछ दि‍खा दें
वो करना प्‍लैनिंग रोज़ नयी यार।
लड़कपन का वो पहला प्‍यार
वो लि‍खना हाथों पे ए प्‍लस आर.

वो खि‍ड़की से झॉंकना
वो लि‍खना लेटर तुम्‍हें बार-बार
वो देना तोहफे में सोने की बालि‍यॉं
वो लेना दोस्‍तों से पैसे उधार
बस यादें, यादें रह जाती हैं
कुछ छोटी,छोटी बातें रह जाती हैं।
बस यादें............

ऐसी यादों का मौसम चला
भूलता ही नहीं दि‍ल मेरा
पुरानी जींस और गि‍टार.....

(पोस्‍ट में संगीत लोड करने की प्रक्रि‍या से मैं अनभि‍ज्ञ था। प्रशांत प्रि‍यदर्शी जी का आभारी हूँ, जि‍न्‍होंने मेल के माध्‍यम से मुझे इसकी वि‍धि‍ से अवगत कराया। शुक्रि‍या प्रशांत जी।)
(सभी चि‍त्रों के लि‍ए गूगल का आभार)

25 comments:

प्रदीप मानोरिया said...

आपके खूबसूरत ब्लॉग पर सैर कर आनंद होता है आपका मेरे ब्लॉग पर आगमन मेरा सौभाग्य है कृपया आगमन नियमित बनाए रखे
मेरी नई रचना दिल की बीमारी पढने आप सादर आमंत्रित हैं

PD said...

वाह.. सुबह सुबह अच्छे गीतों को सुनने क मौका मिल रहा है ब्लौग्स पर.. अभी रेडिवाणी पर भी अच्छा गीत सुनने को मिला..
ये गीत मेरे कालेज के समय मेरे मित्रों को मुझसे सुनने में बहुत अच्छा लगता था.. :)

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत बढिया रहा जींस पुराण का इतिहास और वो भी रोचकता से ! शुभकामनाएं !

Ghost Buster said...

बढ़िया जींस गाथा. साथ में यादगार गीत भी सुनवा दिया. आभार.

विवेक सिंह said...

अति सुन्दर !

Yunus Khan said...

अली हैदर का ये गीत बेहद लोकप्रिय रहा है । कॉलेज की यादें आंखों के सामने आ जाती हैं इस गाने को सुनकर । मज़ा आया ।

Unknown said...

जानते है जो आपने लिखा उसका बहिष्कार हो सकता है हंगामा हो सकता है क्यों कि जिंस पहनने वाले बहुत है । (मजाक है जी) अच्छा गीत है पुरानी जिंस वाला गिटार से सम्मिश्रत होने के नाते अच्छा लगता है । वैसे भी आज तो कुछ भी चलता है ।

लोकेश Lokesh said...

बढिया रहा जींस पुराण

महेंद्र मिश्र.... said...

सलमान खान ने तो जींस की नीक्‍कर और फटी जींस को नौजवानों के बीच लोकप्रि‍य बनाया।
बहुत सटीक और अच्छा गीत के लिए बधाई .

योगेन्द्र मौदगिल said...

पुरानी जींस में जब गिटार बजाते बजाते थकान हो जाये तो कुलचों के साथ चटपटी बींस का मजा ही कुछ और है....
कैसे हो बिरादर..?
वैसे ये जींस व गिटार की बातों से सब कुछ ठीक लग रहा है...
शुभकामनाएं...

राज भाटिय़ा said...

चलिये आप की रोचक रचाना से लगता है अब आप धीरे धीरे ठीक होते जा रहै है,चलिये अब हम सुनते है अली हैदर जी को.
धन्यवाद

Advocate Rashmi saurana said...

वाकई बहुत सुन्दर लिखा है आपने. लिखते रहे.

Gyan Dutt Pandey said...

जीन्स का पैण्ट मेरे सवेरे की सैर का साथी है। रोज पौना घण्टा पहना जाता है और महीने में एक बार धुलता है शायद!:)

L.Goswami said...

अच्छी जानकारी दी जो जिंस का इतिहास बताया..काफी रफ एंड टफ है इतिहास भी :-)

रंजू भाटिया said...

जींस तो अपनी भी बहुत फेवेर्ट रही है और यह गाना भी :) अच्छा इतिहास लिखा है आपने ..

दिनेशराय द्विवेदी said...

जीन्स तो हमें भी पसन्द है लेकिन सिलवाई हुई।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

aap khoobsoorat likhte hain, hamesha ki taran

सुशील छौक्कर said...

जींस का इतिहास बताने और एक प्यारा गाना सुनाने के लिए शुक्रिया। गाने कैसे लगाया जाता ब्लोग पर वो विधि हमें भी भेज दीजिए सर।

Nitish Raj said...

wah jitendra miya bahut hi achaa jikra kiya hai...jeans aaj bhi mein pehanta hoin aur meri pasandida dress code mein se ek hai.

उमेश कुमार said...

दुनिया गोल है और सब घूमफ़िर कर मूल जगह मे आ जाएगें,जब समझदारी आ जाएगी

रंजन राजन said...

क्या ठोका जिंस पुराण....
जबरदस्त, सुपर डुपर, हिस्ट्री.....
..जब तक बदबू न आने लगे, उसे धोने की भी जरुरत नहीं पड़ती, कुछ लोग 15-20 बार पहनने के बाद भी उसे धोने से कतराते हैं। उनका कहना है कि‍ इसका मैलापन भी एक फैशन है। ..
ये तारीफ है या धिक्कार...हा हा हा...

सचिन मिश्रा said...

Bahut badiya likha hai.

seema gupta said...

ऐसी यादों का मौसम चला
भूलता ही नहीं दि‍ल मेरा
पुरानी जींस और गि‍टार.....
"hope you are perfactly fine now. very nice presentation, college ke purane dino kee, or us waqt ke filmo kee yadon ko taja kr diya, enjoyed it'

regards

मुन्ना कुमार पाण्डेय said...

बहुत ही बढ़िया..खेतों के ऊपर गाँव के बाहर धुँए की लकीर और इस पोस्ट में तो वह दूर से आती आटा-चक्की की पुक-पुक की आवाज़ भी मेरे जेहन में घूम गई.....क्या याद करा दिया आपने

Abhishek Ojha said...

सिगरेट और पापा की डांट छोड़ के बाकी तो सब अपने जैसी ही बातें हैं... और जींस तो खूब पहनी, ऑफिस छोड़ के :(