एक स्टॉल पर लाल-लाल सेब रखे हैं। दुकानदार उसे चाइनीज़ सेब बता रहा है। पास में भारतीय सेब भी रखा है, उस पर कहीं-कहीं हल्के-काले धब्बे हैं, मगर साथ में ओ.के. लिखा हुआ स्टीकर चिपका हुआ है। चाइनीज़ इलेक्ट्रौनिक सामान के ऊपर भी ओ.के. चिपका होता है, पर वह कितना ओ.के. होता है, यह सबको पता है। सोचता हूँ इस पर आई.एस.आई का मार्का चिपका होता तो बेहिचक खरीद लेता! फिर भी एक किलो ओ.के.सेब खरीद लिया है। खाने से पहले ओ.के. का स्टीकर हटा रहा हूँ। स्टीकर के नीचे एक सुराख नजर आ रही है। हैरान होकर दूसरा सेब उठाता हूँ,फिर तीसरा,चौथा....., कुछ को छोड़कर सभी स्टीकर के नीचे सुराख है।
सवाल: क्या यह स्टीकर हम लोगों के विचारों पर भी नहीं चिपका हुआ है?
(क्या यह पोस्ट माइक्रो टाइटिल और माइक्रो पोस्ट के खॉंचे में आता है?)
Monday, 13 October 2008
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31 comments:
हेहेहे ! क्या ओ के सेब खरीदे आपने ! जब तक भारतीय सामान मिल रहा हो तो विदेशी के मोह में न पड़ें, जब तक कि यह पक्का पता न हो कि अमुक विदेशी सामान बेहतर है। अपने सेबों के काले धब्बे कम से कम दिख तो रहे थे । फिर उस सेब में कीड़ा भी होता तो अपना स्थानीय भारतीय मूल निवासी होता, विदेशी तो नहीं !
घुघूती बासूती
मिलावट का ज़माना है जी ..:) अपना देशी सेब ही बेहतर है
तो आपको स्टीकर का राज पता चल ही गया! अब दुकान पर ही स्टीकर हटा कर देख लिया करिए की ओके है या नहीं?
ham bhartiyon me se adhiktar par aise hi sticker chipke hain, ok ke
ओके सेव भी ऐसे.. बिना स्टिकर वाले सेव खरिदेगें अब से..
वैसे आपकी सेहत अब कैसी है?
बहुत खूब।
मैंने भी कुछ दिनों पहले एक शो केस खरीदा था। उसमें दो चार जगह ऐसे स्टीकर लगे थे। घर आकर जब उन्हें उखाड कर देखा, तो वहाँ पर ऐसे ही छेदनुमा चिन्ह मिले।
कहने का मतलब दुनिया बहुत स्मार्ट हो गयी है। अब वह छेद को भी बडी सफाई से ओके कर देती है।
'chlo aapko sticker wale apple ka secret to smej a gya or hume bhee, or apka ye kehn bhee galat nahee kee aise hee sticker humare bhee veecron pe chipke hue hai, ptta nahee inssan itna helpless kyun hai, khul kr kuch bhee nahee keh sekta,sochta kuch hai, kehta kuch hai or kerta kuch hai, ek jgeh nahee her stage pr he step pr sticker hee sticker..'
regards
ओके का मतलब है महंगा ..........
यह समाज भी ओके सेव की तरह स्टीकर लगाए हुए हैं , जब ओके का स्टीकर निकालेंगे ताओ विभिन्ना बू राई यों का समाज मैं भी दाग नुमा धब्बा नजर आएगा .
to satya darshan ho hi gaye .....kuch bhi khareed lijiye , seb ya sui , satya na badlega
सेब पर ओके का स्टिकर सेब को अलग विदेशी बना देता है! मैं तो घुघूती जी से सहमत हूँ कि अपने देशी सेब के काले धब्बे तो दीखते हैं.
सही कहा।यह स्टीकर सब के विचारों पर चिपका हुआ है।साफ दिख रहा है।;)
मेंटल सेटअप भी ऐसा ही बन गया है.सहमती...
बहुत सही कहा है आपने..
चीन और सेब वाले को रिपीट कस्टमर की फिक्र नहीं है।
आशा है आपका स्वास्थ ठीक होगा।
हमारे दोस्त है स्टेशनरी बुक शॉप है उनका ! और ये ओ.के. स्टीकर वो छपवाकर बेचते हैं ! आप चिंता मत कीजिये , उनको ही आज पकड़वाते हैं ! चोर को क्या , चोर की माँ को ही मार डालते हैं ! फ़िर देखते हैं ये ओ.के. सेव ससुरे कैसे बेचते हैं ? :) आशा है आपका स्वास्थय अब ठीक होगा !
एक बार के फायदे के लिए दुकानवाले ने अपना स्टाक ओके कर लिया। पर आपने जो उसे सदा के लिए ओके बाय-बाय कर दिया, यह उसे बाद में पता चलेगा।
सेव की ओकेमई रचना के लिए धन्यवाद !
मिक्रोमयी का तो नहीं पता पर ओकेमयी स्टीकर पर जरूर सोचना पड़ेगा.
बहुत कुछ कह गए दोस्त।
जिस तरह बिना सेब के सुराख पर ओके स्टीकर चिपकाये सेब न बिकता वैसे ही दिमाग के सुराख पर बिना ओके है का स्टीकर चिपकाये जीना मुश्किल हो जाये. यही स्टीकर छोटी मोटी मुश्किलों को अनदेखा कर जीवन पार लगाता है भाई.
मुझे लगता है, ओ के का मतलब है... ओये कीडा जिसे चीना वालो ने माइक्रो कर के ओके कर दिया,
या हो सकता है एक सेव के साथ कीडा मुफ़त, अजी हमारे यहां आज कल हर सकीम मे यही तो होता है
धन्य्वाद इस ओके वाली पोस्ट के लिये
राज जी की बात बिलकुल सही लगी ओ.के. का मतलब ओए कीङे।
waah bhagat jee bahut sundar likhaa hai mazaa aa gayaa kya hamaare oopar bhee ok chipkaa rahtaa hai
aapke mere blog par paddharene kaa dhanybaad apnaa aagaman niymit banaaye rakhe
जी हाँ , यही स्टीकर हमारे विचारों में भी चिपका हुआ
ही ही ही मज़ा आ गया
वीनस केसरी
माईक्रो पोस्ट -मैक्रो मुद्दा !
कोई बात नहीं बिरादर, थोड़े दिन में छेद भरना भी आ जायेगा तब तक तो स्टिकर से ही छिपाना पड़ेगा.
ओके का मतलब है धोके (धो कर नही बल्कि धोखे, चाइनीज लोग लिखते हैं ना इसलिये ख को क बोल जाते हैं)। सुराख की बात एकदम दुरस्त है, अजी दिमाग की तो छोड़िये जमीन में भी ऐसे ऐसे सुराख छोड़ जाते हैं ये भी नही होता कि वहाँ कोई ओके स्टीकर चिपकायें, कम से कम कोई बच्चा तो ना गिरे उनमें।
aapne achchhi kabar di ab sticker hataa ke hi rahenge har cheej se
अति सुन्दर ! पोल-खोल !
जिन कवि महाशय की शैली के बारे में आपने बात की वे स्वर्गीय श्री काका हाथरसी थे .लगे हाथ उनकी एक कुण्डली प्रस्तुत कर देता हूँ .
लाठी में गुन बहुत है सदा राखिए संग
जहाँ नदी नाले पडें तहाँ बचावे अंग
तहाँ बचावै अंग झपटि कुत्ता कूँ मारै
दुश्मन दावागीर होइ तेवर तिनहुँ के झारै
कहें काका कविराय सुनौ सब मन के पाठी
सब हथियारनुँ छोड हाथ में लैलेउ लाठी
(कृपया पढने के बाद सूचित करें जिससे मुझे तसल्ली हो जाय )
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