हर मंगलवार वह दिल्ली में ऊँट ढ़ूँढ़ता था, बड़ी मुश्किल से उसे एक ऊँटवाले के स्थायी निवास का पता चला, और वह वहॉं नियमित रूप से हर मंगलवार को पहुँचने लगा। उसके पास दो ऊँट और एक रौबीला घोड़ा था। किसी वयोवृद्ध पंडित ने उसे सुझाया था कि ऊँट को हर मंगलवार दो किलो दाल खिलाने से उसके संकट का निवारण हो जाएगा। वह बस पकड़ता, बीस कि.मी. चलकर ऊँट तक पहुंचता और दाल धोकर चारे के साथ ऊँट को अपने हाथों से खिलाता।
ऊँट का मालिक कहता- जनाब, यहॉं गुड़गॉंव, साकेत और पड़पड़गंज से भी लोग दाल खिलाने आते हैं, दाल खिलाने से आपका संकट जरूर दूर होगा। उसका लड़का ऊँट को एक रस्सी से पकड़े रहता। ऊँटवाला उसे कुर्सी पर बिठाता, चाय-पानी पूछता।
दो-तीन हफ्ते बाद भी उसकी परेशानी ज्यों-कि-त्यों बनी रही, जबकि पंडित ने कहा था कि इसका फल तत्काल मिलेगा। इसके बावजूद वह श्रद्धापूर्वक वहॉं जाता रहा और दाल खिलाता रहा।
आठवें मंगलवार को जब वह दाल खिलाने पहुँचा़ तो देखा कि ऊँटवाले का लड़का तैयार होकर कहीं जा रहा था। उसने ऊँटवाले से यूँ ही पूछ लिया कि आपका लड़का कहीं काम पर जा रहा है क्या ?
ऊँटवाले ने कहा- अरे नही, वह कोर्ट जा रहा है, लड़कीवाले दो साल से परेशान कर रहे हैं, उन्होंने केस कर रखा है, नौ लाख रूपये की मॉंग कर रहे हैं, कहते हैं कि दहेज वापस करो। अब आप ही बताओ, शादी के दो साल बाद दहेज का द भी नहीं दिखता है, नौ लाख कहॉं से दें। अब तो रब ही मालिक...
वह दुखी होकर लौट रहा था, उसका मन खिन्न था। उसे पशु को खिलाने का अफसोस नहीं था, न ही सोलह किलो दाल की चिंता। उसके संकट में खास फर्क भी नहीं आया था। इसके बाद उसने वहॉं जाना छोड़ दिया। उसके दोस्तो ने उसे ढ़ॉंढ़स बढ़ाया कि चलो अच्छा किया जाना बंदकर दिया, जिस आदमी के पास दो-दो ऊँट है, वह इतनी मुसीबत में है तो उससे तुम्हांरी समस्या कैसे दूर होगी!
उसने कहा- क्या बेकार की बात करते हो, मैंने वहॉं जाना इसलिए बंद कर दिया है क्योंकि दो किलो दाल खाने में ऊँटों को एकाध घंटे से ज्यादा लग जाता है। मैं वहॉं दस-पंद्रह मिनट से ज्यादा रूक नहीं सकता, और मुझे संदेह है कि मेरे निकलते ही मेरा चारा वो अपने घोड़े को खिला देते होंगे।
दोस्त ने पूछा- तो अब क्या सोचा है ?
उसने कहा- अब ऐसा मालिक ढ़ूँढ़ रहा हूँ जिसके पास सिर्फ ऊँट हो, घोड़े नहीं !
(चित्र गूगल के सौजन्य से। इसकी खास बात यह है कि इसे पिकासो ने बनाया है)
Tuesday, 12 May 2009
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13 comments:
हा हा हा....
आप कितने मंगल के बाद आये हैं... कहीं ऊटं के चक्कर में तो नहीं..:)
गजब भई, क्या आस्था है!!!! धन्य हुए!
हाँ, पिकासो का बनाया चित्र बेहतरीन लग रहा है.
आप इतने वक्त बाद आये हैं ..कहा व्यस्त थे...चित्र और कथा दोनों बेहतरीन.
ऊंट में आस्था न थी। अब कुछ जग रही है।
भाई उंट के बजाये भैंस को खिलाना हो तो हमारे पास दो दो हैं, जरा बता दिजियेगा.:)
रामराम.
मुहावरे से शीर्षक जम गया और आलेख ऊँट जी की आस्था के तहत जम गया !
जय ऊँट बाबा की !
और पिकासो सा'ब की रेखाएँ तो अनमोल हैँ !!
- लावण्या
ऊठ को दाल ....... पहली बार सुना कहीं बताने वाले पंडित जी के सेटिंग तो नहीं ऊठ वाले से .
सही लाये हो......एकदम झकास....वैसे कौन सी दाल खिलाते है ??
वैसे ऐसे हालात में तो ऊंट खरीदा भी जा सकता है :-)
ऊंट की कहानी मजेदार है। पर आप आजकल ब्लॉगर्स को छोडकर इधर उधर कुछ ज्यादा ही निकल जाते हैं। आखिर बात क्या है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
कहां चले जाते हो मित्र.
ऊँट का चक्कर भी बहुत भारी पढेगा...........क्या आस्था है........गज़ब का विशवास..........अच्छा व्यंग मारा है आपने
इस कहानी से यही शिक्षा मिलती है कि जो इंसान अंधविश्वास और पाखंड की जाल में फंस चुका है, ऐसी स्थिति में अगर उसे कोई लामभ नहीं मिलता तो भी वो किसी दूसरे तरीके से पाखंड कोबनाए रखता है, उससे मुक्त नहीं होता। हमें ऐसी कोशिशें करनी चाहिए कि ऐसे इंसान को पाखंड से मुक्त करें। दाल खिलाने से अगर दर्द मिटता है तो देश का हर आदमी पेट काटकर दाल खिला रहा होता और एक समय बाद वो दर्द से मुक्त होता लेकिन क्या ऐसा होता है। इसलिए बच्चों उंट,घोड़े के चक्कर में मत पड़ो, इन्हें दाल खिलाने से बेहतर है, खुद दाल खाओ,मजबूत बनो और अपना काम करो. है की नहीं।
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