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Friday 10 July 2009

बूँदो को कहीं देखा है !!

बेरंग पत्तों पर सरसराती बूँदों को
देखे एक अरसा हुआ!
मुरझाए चेहरों के पीछे
मन तक है तरसा हुआ!

अभी एक कार रूकी है रेड लाइट पर
कि‍ यकायक चल पड़ा है वाइपर!
भीखू की हथेली पर पड़ी है चार बूँदें
मचलकर अपनी बहन को दि‍खा रहा है,
जो अभी छल्ले का करतब दि‍खाके
सुस्ता रही है छॉव में।
कभी जोर की बारि‍श में
छतरी उड़ा करती थी,
चहकते कदमों तले
राहें मुड़ा करती थी!
अब धूल है, ऑंधी है
गर्म हवाओं में होश उड़ा करता है!
आसमॉं पे होते थे
परींदों के घेरे।
नजरें तलाशती-सी हैं
बादलों के डेरे!

सुना है तेरे शहर में
हुई है बारि‍श!
कि‍ हवा का कोई झोंका
सि‍हराता है मन को
और बूँदे तन को!

कि‍ भीखू के चेहरे पर
चमक लौट आई है!
साथ ही लौटी है
खेतीहरों के खेतों में
सूखे फसलों की जीजि‍वि‍षा!!


और
अभी एक सपना देखा था
और अभी एक सपना टूटा है!!
बारि‍श की कोई बूँद
ऑंखों से छलक आई है...........

-जि‍तेन्‍द्र भगत

(सभी चि‍त्र गूगल से साभार)

24 comments:

M VERMA said...

कि‍ भीखू के चेहरे पर
चमक लौट आई है!
साथ ही लौटी है
खेतीहरों के खेतों में
सूखे फसलों की जीजि‍वि‍षा!!
==================
अभिव्यक्ति की पराकाष्ठा -- वाह! वाह!

निर्मला कपिला said...

bahut sundar aur bhaavmay abhivyakti hai aabhaar

Science Bloggers Association said...

हाँ, अब कहीं कहीं दिखने लगी हैं।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

कुश said...

ये बारिश तो भीगा गयी सर से पाँव तक... इसे सिर्फ बढ़िया तो नहीं कहूँगा...

रंजना said...

ऐसे भावाभिव्यक्तियों के प्रशंशा के लिए शब्द ढूंढ़ना बड़ा ही कठिन हो जाता है........
बस.......... लाजवाब लिखा है आपने और क्या कहूँ,कुछ सूझ नहीं रहा....

ओम आर्य said...

शुरू से अंत तक के राग है आपकी कविता मे .............जिसमे भाव कुट कुटकर भरे पडे है .............बहुत ही सुन्दर

श्यामल सुमन said...

जब ऐसी चित्रमय रचना हो तो बूंदों को तो दिखना ही पड़ेगा। सुन्दर।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

mehek said...

behad khubsurat abhivyakti,badhai,sunder chitra bhi hai.

सुशील छौक्कर said...

बहुत ही बेहतरीन बूंदो के भाव कह दिये।
कि‍ भीखू के चेहरे पर
चमक लौट आई है!
साथ ही लौटी है
खेतीहरों के खेतों में
सूखे फसलों की जीजि‍वि‍षा!!

बहुत उम्दा।

डॉ .अनुराग said...

देखिये न .आपकी बूंदे छलक कर हमारे शहर में आज आ गिरी....पर भीखू के चेहरे पे मुस्कराहट आएगी या नहीं..ये कहना मुश्किल है ....

ताऊ रामपुरिया said...

बेहद और सुंदरतम भाव प्रगट किये हैं आपने.

रामराम.

Smart Indian said...

"अभी एक सपना टूटा है!!
बारि‍श की कोई बूँद
ऑंखों से छलक आई है"
मर्मस्पर्शी चित्र और सुन्दर रचना, बधाई!

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर, भाव पुर्ण कविता कही आप ने ,
भगवान जरुर सपने पुरे करेगा, जरुर बारिस की बुंदे भी भीखू के चहरे की चमक बढायेगी

महेन्द्र मिश्र said...

बहुत सुंदर रचना.

रंजन said...

बहुत खुब.. आज कुछ बुंदे गिरी लेकिन जब तक हम बाहर देख्ते वो लापता हो गई..

Sudhir (सुधीर) said...

अभी एक सपना देखा था
और अभी एक सपना टूटा है!!
बारि‍श की कोई बूँद
ऑंखों से छलक आई है...........

उत्तम अभिव्यक्ति... साधू

anil said...

बहुत खूब सुन्दर रचना चित्र भी सुंदर हैं .

रंजू भाटिया said...

बारिश की बूंदे यूँ भी गिरती है ...अच्छा चित्रण किया है आपने .

समयचक्र said...

बेहद और सुंदर भाव बहुत ही सुन्दर.

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

काफी बारीक नज़र पायी है आपने।
सुन्दर कविता। बारिश की रिमझिम के बीच पढ़ना प्रीतिकर लगा।

Abhishek Ojha said...

भिगो गयी ये पोस्ट !

Urmi said...

बहुत ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति के साथ लिखी हुई आपकी ये उम्दा रचना और साथ में सुंदर तस्वीरें बहुत अच्छी लगी!

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

बहुत सुन्दर, ब्लाग में रंग संयोजन ठीक करें.

sandeep sharma said...

भीखू की हथेली पर पड़ी है चार बूँदें
मचलकर अपनी बहन को दि‍खा रहा है,
जो अभी छल्ले का करतब दि‍खाके
सुस्ता रही है छॉव में।

कभी-कभी राह चलते हम भी बूंदों को देख लेते हैं... आपकी रचना में देखकर मन फिर से प्यासा हो गया...