एक दिन मैं अलमारी साफ कर रहा था। एक कोने में हैलमेट का एक डिब्बा पड़ा था। जब मैंने उसे खोलकर देखा तो समझ नहीं आया कि इसे फेंक दूँ या यूँ ही रहने दूँ। उसमें 1990-97 में रीलीज फिल्मों के हिट कैसेट्स थे।
ये वो जमाना था जब स्कूल-कॉलेज के दिनों में रंग, बलमा, कभी हाँ- कभी ना, दीवाना, चॉंदनी, लाल दुपट्टा मलमल का, तेजाब, साजन, खिलाड़ी, बाजीगर, तड़ीपार, आशिकी, सलामी, इम्तेहान, चोर और चॉंद, दिल है कि मानता नहीं, जुनून, दिल का क्या कसूर जैसे फिल्मों के गाने लोगों के जुबान पर चढ़े हुए थे।
आज जब 20-30 रूपये के एक एम.पी.थ्री. में 50 से लेकर 150 गाने तक आ जाते हैं तब वे दिन याद आते हैं जब इसी कीमत पर एक कैसेट मिला करता था- A साइड में 4-5 गाने और B साइड में भी इतने ही गाने। कम ही फिल्मों में 10 गाने होते थे इसलिए एक कैसेट को संपूर्ण बनाने के लिए चार फॉर्मूले आजमाए जाते थे-
1)हिट गाने को एक बार गायक की आवाज में,
2)उसी गाने को गायिका की आवाज में
3) उसी गाने को दोनों की आवाज में
4) उसी गाने का सैड वर्जन।
मेरा ख्याल है यह फॉर्मूला हिट गानों के साथ तो आजमाया जा सकता था लेकिन सभी गानों के साथ नहीं। इसलिए बाद के दिनों में दो चीजें सामने आईं-
पहली बात तो ये थी कि कैसेट की कीमतों में इजाफा हुआ, वे 35 से 50 रूपये में मिलने लगीं। तब भी टी.सीरीज़ की कैसेट सबसे सस्ती हुआ करती थी और एच.एम.वी. सबसे महंगी। बाकियों के नाम तो अब याद करने पड़ेंगे- वीनस,टिप्स, टाइम और न जाने क्या-क्या।
दूसरी बात, एक ही कैसेट में दो फिल्मों के गाने रखे जाने लगे। और बाद में तो 3-4 फिल्मों के गाने भी एक ही कैसेट में नजर आने लगे।
इन कैसेट्स को ज्यादा दिन तक इस्तमाल न करने पर उनमें सीलन आ जाती थी, रील फँसने का डर रहता था। जो कैसेट बर्बाद हो जाते थे, उसकी रील से मैंने पतंग उड़ाने की नाकाम कोशिश भी की थी।
खैर, एम.पी.थ्री. और सीडी, डीवीडी के आने के बाद मनोरंजन संसार में क्रांति-सी आ गई और कैसेट्स इतिहास के पन्नों में दफन होने लगे। हालॉंकि उक्त कंपनियॉं घाटे के बावजूद अब भी चल रही हैं।
एक छोटे से कस्बे की सीडी की दुकान से मैं एम.पी.थ्री. पसंद कर रहा था, और मेरे बगल में एक बुजुर्ग महिला कैसेट खरीद रही थी। उसने मुझसे पूछा कि बेटा देखकर बताना ये कैसेट चल तो जाएगा ना! मैंने कैसेट चेक करते हुए यूँ ही पूछ लिया कि दादी अम्मा, कैसेट पर इतने पैसे खराब क्यों कर रही हो। सीडी प्लेपयर क्यों नहीं ले लेती?
अम्मा मुस्कुराती हुई बोली- बेटा बात कैसेट की नहीं है, यह उस रिकॉर्डर पर चलती है, जिसे मेरे पति ने खास मेरे लिए खरीदा था, सन् 1980 में!
Saturday, 18 July 2009
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25 comments:
अम्मा मुस्कुराती हुई बोली- बेटा बात कैसेट की नहीं है, यह उस रिकॉर्डर पर चलती है, जिसे मेरे पति ने खास मेरे लिए खरीदा था, सन् 1980 में!
दिल को छू गई ये बात।
एसी सैंकडो़ कैसेट मेरी अलमारी में भी रखी है.. न निगलते बन रही न उगलते.. पता नहीं क्या है पर संभाल कर रखे है.. पर २० साल बाद जब टेप नहीं होगा तो कैसेट का क्या करेगें..
सोचिये हम तो रिकोर्ड करने वाले पर जाकर जाकर सिर्फ आँखों पे गाने रिकोर्ड करवा कर भरवाते थे .....कोलेज टाइम में एक सीनियर के पास रिकॉर्डिंग की सुविधा थी....तो हमने कई गाने खुद रिकोर्ड करके किसी खास को दिए..डिमांड बढ़ी....एक बार उस वक़्त यार दोस्तों ने पार्टी के वक़्त एक केसेट बनायीं ...अमेरिका से एक मित्र जब आया था...उसी एक कसेट की कोपी सबने बरसो संभल कर रखी.....आज भी कई गाने उन कसेतो में बंद है
अभी भी कैसेट अधिक टिकाऊ हैं, क्योंकि सीडी अधिक चलने पर घिस जाती है, लेकिन टेप यदि चुम्बक से बचा रहे, घिसे न तो आम तौर पर ज्यादा टिकता है. यह अलग बात है कि सीडी जितनी अच्छी आवाज की क्वालिटी नहीं होती.
हर वाक्य जच रहा है
बेटा बात कैसेट की नहीं है, यह उस रिकॉर्डर पर चलती है, जिसे मेरे पति ने खास मेरे लिए खरीदा था, सन् 1980 में!
-यही पूरी पोस्ट है भाई, दिल में समा गई.
हमारी भी यही हालत है बहुत सारी कैसेट हैं पर कभी कभी सुन ही लेते हैं, सब नई सुविधाएँ होते हुए भी।
बेटा बात कैसेट की नहीं है, यह उस रिकॉर्डर पर चलती है, जिसे मेरे पति ने खास मेरे लिए खरीदा था, सन् 1980 में!
WAAH KITANI BHAVNAATMAK AUR GAHARI BAAT KAHI HAI AMAA NE ... DIL TALAK UTAR GAYEE PURI TARAH SE BAAT ... PURI BAATEN AAPKI SACHH KE BAHOT KARIB....DHERO BADHAAYE
ARSH
हमने भी तमाम कैसेट खरीदे और भरवाए थे....पुराने दिन याद आ गए
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
aama ki akhari line kehne ke andaz se hi dil bhar aaya.
मेरे पास करीब दो सौ वो कसैट हैं जिसमें कि एम.फिल् के दौरान मैंने एफ.एम चैनलों के कार्यक्रमों की रिकार्डिंग की थी। आझ इसका कोई मतलब नहीं है, चाहूं तो इसका दोबारा इस्तेमाल कर सकता हूं लेकिन अम्माजी तो रिकार्ड प्लेयर को लेकर इमोशनल हो गयी,मैं तो सीधे इस कैसेट को ही लेकर कि इसने मुझे एक नयी पहचान दिलायी है,इसे ऐसे कैसे फेंक दूं या इस पर किसी और की आवाज कैसे चढ़ा दूं।
"बेटा बात कैसेट की नहीं है, यह उस रिकॉर्डर पर चलती है, जिसे मेरे पति ने खास मेरे लिए खरीदा था, सन् 1980 में!"
सही कहा, सिर्फ यादें ही तो रह जाती हैं (जब तक हम रहते हैं)
यादों को संजोने का मजा ही कुछ और है। फिर मिक्सी के बजाय सिलबट्टे पर मसाला पीसना हो या mp3 की बजाय टेप रिकार्डर पर सुनना हो।
यादें कभी कभी बहुत ही ज्यादा अच्छी लगती हैं।
अच्छी पोस्ट।
भाई सभी के पास इनका जखीरा पडा है. और हमारे पास तो सैकडों रेकार्ड भी पडे हैं कुत्ता कम्पनी के. अब उनको बजाने वाला प्लेयर ही नही मिलता.
पर यादों का कोई मोल नही होता वो तो अनमोल हैं.
रामराम.
मानव मन भी कैसा है !
समस्या अपने साथ भी वो ही है...लगभग पांच सौ केसेट पड़े हैं जयपुर वाले घर में. टेप रिकार्डर जो बेटे के जन्म दिन पर खरीदा था इतनी बार ख़राब हो चुका है की उसे ठीक करवाने से सस्ता सी. डी. प्लेयर करीदना है.
आपकी पोस्ट का अंत मन को छू गया...
नीरज
मुझे अपने माइक्रो कैसेट वाले डिक्टाफोन की याद आ गयी। बहुत प्रयोग किया था उसका और अब भी काम का है!
अब भी कैसेट प्लेयर आते हैं क्या? वाक्मैन भी तो आया करते थे...
sameer ji sahi kah rahe hain..
ant ki 2 lines hi poori post hai.. :)
Waakai, kisi samy ki anmol nidhi ab sirf yaadon ka hissa rah gayi hai.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
वैसे तो अब पेन ड्राइव का ज़माना है या फिर आई -पोड को स्पीकर चला कर सुनें..१००० से ऊपर गाने लगातार..
खैर..कैसेट कभी outdated नहीं हो सकतीं..मेरी रसोई में आज भी रखे रिकॉर्डर पर केसेट ही चलती हैं..वैसे भी गिफ्ट में मिली चीज़ें बहुत प्यारी होती हैं.उन्हें भी ऐसा ही लगाव होगा.
और केसेट पर सुनने का अलग ही चर्म होता है एक ख़ास हिस्से को आप rewind कर के दोबोरा तिबारा सुन सकते हैं वह mp3 में नहीं कर सकते.
कोई भी चीज़ कभी बेकार नहीं कही जा सकती..कहीं न कहीं उस का उपयोग हो जाताहै..
"दादी अम्मा, कैसेट पर इतने पैसे खराब क्यों कर रही हो। सीडी प्लेपयर क्यों नहीं ले लेती?
अम्मा मुस्कुराती हुई बोली- बेटा बात कैसेट की नहीं है, यह उस रिकॉर्डर पर चलती है, जिसे मेरे पति ने खास मेरे लिए खरीदा था, सन् 1980 में!"
जितेन्द़ भगत जी!
इस मार्मिक संस्मरण के लिए आभार!
thanks brother,ur birader is very intresting and touching .
कैसेट्स का जिक्र पुराने दिनों की ओर ले जाता है सहज ही । जैसा अनुराग जी ने कहा रिकॉर्ड करा कर उपहार में देने के लिये गानों की खोजबीन और फिर अपने चयन को लेकर उत्फुल्ल प्रसन्नता - सब कैसेट के साथ ही खो गये हैं आजकल । आज भी हजारों कैसेट सम्हालकर रखे हैं मैंने - कुछ अपनी पसन्द के , कुछ उपहार के ।
पुरानी चीजों से अलग ही मोह रहता है।
मेरे पास आज भी 5.25 व 3.5 वाली फ्लापी है, वीसीआर है, ब्लैक एंड वाइट टीवी है, 80386 पीसी है आदि।
मैं आज भी एक कम्प्यूटर को फ्लापी से बूट करता हूँ तथा दूसरी फ्लापी से डीबेस, वर्ड स्टार, लोटस आदि साफ्टवेयरों का प्रयोग करता हूँ। मेरे पास
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