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Friday 11 June 2010

बद्रीनाथ : एक रोमांचक सफर (भाग 1)

हरिद्वार में गंगा के घाट पर बैठा मैं सोच रहा था- कहॉं आज सुबह दि‍ल्‍ली की गर्मी में अपने जरूरी काम को नि‍पटा रहा था और अब कहॉं सारे काम छोड़कर कपड़े और पर्स आदि‍ की रखवाली कर रहा हूँ।
शाम हो चली थी।
-'फुफा अब आप जाकर ड़ुबकी लगा आओ। सामान मैं देख लूँगा।'
रोहि‍त ने तौलि‍या उठाते हुए कहा।
मैं अपने तीन वर्षीय बेटे इशान को लेकर डुबकी लगा आया। पानी पहले तो ठंडा लगा फि‍र बाद में ठीक लगने लगा। इशान पहले तो गंगा की लहरें देखकर तैरने की जीद कर रहा था पर पानी में उतरते ही चीखें मारकर रोने लगा। अपने मामा नीति‍न के साथ वह जल्‍दी ही बाहर आ गया।


खैर, गंगा स्‍नान सम्‍पन्‍न हुआ। सम्‍पन्‍न इसलि‍ए कि मेरे ससुराल पक्ष में इस स्‍नान के लि‍ए महि‍नों से कार्यक्रम बन रहा था। मंगलवार की यह रात हरिद्वार के एक होटल में कटी।
अगली सुबह तीनों गाड़ि‍याँ आगे की यात्रा के लि‍ए तैयार हो गई। मैं एसेंट चला रहा था, जो बि‍ल्‍कुल नई थी - मात्र 3000 कि.मी. चली हुई। यात्रा से एक दि‍न पहले ही नीति‍न ने यह गाड़ी अपनी छोटी बहन से माँग ली थी। दूसरे की गाड़ी चलाते हुए मैं वैसे ही हिचकता हूँ और यदि‍ नई गाड़ी हो तो यह हिचक और भी बढ़ जाती है। सुरक्षि‍त आने-जाने के साथ-साथ उसे डेंट से बचाने की चिंता तो रहती ही है।
पहले मेरा इरादा था कि‍ इनोवा बुक करा लेते हैं, पर उसके लि‍ए लगभग 18 हजार का खर्च आ रहा था, और वे सात दि‍न का वक्‍त ले रहे थे। हम सभी का सि‍ड्यूल बहुत टाइट था इसलि‍ए मंगलवार (1 जून 2010) चलकर शुक्रवार को ही दि‍ल्‍ली लौटने की असंभव समय-सीमा तय की गई थी।
1) मंगलवार- दि‍ल्‍ली से हरि‍द्वार 250 कि.मी. (मैदानी रास्‍ता)
2) बुधवार - हरिद्वार से बद्रीनाथ 350 कि.मी.(पहाड़ी रास्‍ता)
3) वीरवार - बद्रीनाथ से हरि‍द्वार
4) शुक्रवार - हरि‍द्वार से दि‍ल्‍ली।

यही कारण है कि‍ तीनों परि‍वार अपनी-अपनी गाड़ि‍यों में चल पड़े।

(नोट: दि‍ल्‍ली से पानीपत का रास्‍ता (एन.एच 1)एकदम मस्‍त है, थोड़ी दि‍क्‍कत अलि‍पुर के आसपास जाम में आती है। पानीपत में फ्लाइओवर के नीचे से दाई तरफ कैराना, शामली होते हुए मुजफ्फरनगर आता है और वहीं से हमें मेरठ की ओर से आनेवाली नेशनल हाईवे 58 मिल जाती है। जी हॉं, ये वही हाइवे है जो हमें हरि‍द्वार, देवप्रयाग, श्रीनगर, रूद्रप्रयाग,कर्णप्रयाग,चमोली, जोशीमठ होते हुए बद्रीनाथ तक ले जाती है।)

श्रृषि‍‍केश के बाद पहाड़ी रास्‍ता शुरू हो जाता है। पहाड़ी रास्‍तों पर ड्राइविंग करना मेरा पैशन है। पर यह कुछ यात्रि‍यों के लि‍ए बुरा अनुभव होता है। मैं जब श्रृषि‍‍केश से देवप्रयाग होते हुए श्रीनगर तक का सफर कर चुका था, तब तक इस कार में बैठे पॉच यात्रि‍यों में से चार लोग 'उल्‍टी' गंगा बहा चुके थे। सि‍र्फ मैं ही बचा था और पहाड़ी रास्‍ते और गंगा की तेज धार के साथ कार चलाने का आनंद ले रहा था। ये भी अजीब संयोग हुआ कि‍ सोनि‍या (मेरी पत्‍नी) अपने मौसेरे भार्इ शैलेन्‍द्र जी के साथ हौंडा सि‍टी में बैठी थी और इशान मेरे साथ। हौंडा सि‍टी अच्‍छी कार है मगर कुछ नीची होने की वजह से उसे ब्रेकर और ऊबड़-खाबड़ रास्‍तों पर बहुत धीरे-धीरे निकालना होता है।
जब मैं दोपहर 11 बजे तक श्रीनगर तक पहुँचा तब मेरे मोबाइल नेटवर्क ने काम करना शुरू कि‍या। घंटी बजी, फोन उठाया तो उधर से गुस्‍से से भरी आवाज आई-
-कहॉं पहुँच गए ?
-श्रीनगर, और तुम लोग ?
-इतनी जल्‍दी है पहुँचने की तो परि‍वार के साथ आने की जरूरत क्‍या थी !! मुझे और भाभी को कई बार उल्‍टी आ चुकी है और तुम्‍हारा फोन भी नहीं लग रहा था!
मैंने पूछा- अभी कहॉं तक पहुँचे हो?
-मैं देवप्रयाग में ही होटल लेकर रूक रही हूँ! तुम और बाकी लोग बद्रीनाथ हो आओ! उधर से लौटोगे मैं यहीं मि‍लूँगी।


यह सुनकर मैं हैरान रह गया! सफर का जोश पल भर में गायब हो गया और जो अब तक महसूस नहीं हो रहा था, अचानक वो थकान भी मुझे ग्रसने लगा। मेरा घुटना जकड चुका था और कमर भी अकड़ चुका था। सोनि‍या के साथ मैं अमरनाथ जैसी कठि‍न यात्रा कर चुका हूँ। उसके बाद से ही उसने तय कर लि‍या था कि‍ वह आगे से पहाड़ी यात्रा कभी नहीं करेगी। वह इस यात्रा में यही सोचकर आई थी कि‍ सभी लोग हरि‍द्वार से ही दि‍ल्‍ली लौट जाऍगे।
अंतत: यह तय हुआ कि‍ देवप्रयाग की बजाए श्रीनगर में रहने की व्‍यवस्‍था अच्‍छी है, इसलि‍ए पहले सभी वहॉं इकटठे होंगे। मेरे पास एकाध घंटे का समय था, जि‍समें मुझे बीमार लोगों के लि‍ए हॉटल ढूँढना था।

क्रमश:

(पहाड़ो पर ड्राइविंग करने का अलग ही आनंद है (और खतरा भी) मगर नुक्‍सान ये है कि‍ आप न पहाड़ देख सकते हैं न ही नदी, अपनी नि‍गाहों को सिर्फ सड़क पर गड़ाए रखनी पड़ती है। सबसे बुरी बात तो ये है कि‍ आप कैमरे में इन दृश्‍यों को कैद नहीं कर पाते! ऊपर की तस्‍वीरें गूगल से साभार)
अन्‍य कड़ि‍यॉं-
बद्रीनाथ- औली से वापसी(अंति‍म कड़ी)
पर्वतों से आज में टकरा गया (भाग 4)
बद्रीनाथ: एक रोमांचक सफर (भाग 3)

बद्रीनाथ: एक रोमांचक सफर (भाग 2)

13 comments:

Jandunia said...

रोचक पोस्ट, पढ़कर अच्छा लगा

अनुराग मुस्कान said...

जय बाबा बदरी विशाल...!

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

रोचक ,आगे का इन्तज़ार . पहाड यात्रा की सबसे बडी परेशानी उलटी ही है .

Udan Tashtari said...

आनन्द आ गया....बहुत रोचक वृतांत.

समयचक्र said...

बहुत बढ़िया यात्रा संस्मरण फोटो सहित बढ़िया लगे और कई जानकारी भी मिली...

माधव( Madhav) said...

nice travelogue

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

मैंने पहाड़ पर आज तक ड्राइव नहीं किया. बहुत डर लगता है. अगले अंक की प्रतीक्षा..

Alpana Verma said...

बहुत ही अच्छा विवरण दिया है.[संस्मरण ]
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ड्राईविंग कहीं भी करीए,चाहे पहाड हों या प्लेन ..यही मुश्किल है ड्राईव करने वाला आस पास के नज़ारों का लुत्फ़ नहीं उठा सकता .:)

Alpana Verma said...

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haan--aap kee gaayki kahan tak pahunchi..kuch record kyon nahin kiya abhi tak?????

प्रवीण पाण्डेय said...

सच कहा आपने । पहाड़ों में ड्राइवर को उसका काम करने दें, आप प्राकृतिक सौन्दर्य का आनन्द उठायें ।

नीरज मुसाफ़िर said...

भगत जी,
आपका तो बडा ही टाइट प्रोग्राम है। क्या एक रात ही बद्रीनाथ में रुकोगे। अभी तक तो जैसे हालात हैं, उससे मुझे लग रहा है कि कहीं आप बीच रास्ते से ही ना लौट जाओ। खैर, देखते हैं, कहां पहुंचते हो? अभी तो श्रीनगर ही पहुंचे हो।

संगीता पुरी said...

बहुत सुंदर पिक्‍चर हैं .. विवरण ने भी प्रभावित किया .. अब दूसरी कडी पढती हूं !!

Asha Joglekar said...

ड्राइवर साथ लेकर जाते तब तो नज़ारों का मजा लूटते । हम 4 साल पहले गये थे बद्रीनाथ केदार नाथ अलकनंदा का वो रौद्र रूप आज भी आंखों के आगे आ जाता है । आशा है साथियों की परेशानी खत्म हुई और आप आगे की यात्रा संपन्न कर पाये ।