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Saturday 12 June 2010

बद्रीनाथ: एक रोमांचक सफर (भाग 2)

सोनि‍या श्रृषि‍केश से 70 कि.मी. आगे देवप्रयाग तक आ चुकी थी और मैं देवप्रयाग से लगभग 40 कि.मी. आगे श्रीनगर में होटल तलाश रहा था।

देवप्रयाग में अलकनंदा नदी और भगीरथी- दोनों का संगम है। यहीं से इनकी धारा मि‍लकर गंगा कहलाती है। देवप्रयाग से श्रीनगर की तरफ मुड़ते ही बद्रीनाथ तक के सफर में अलकनंदा नदी ही मार्गदर्शिका थी!

देवप्रयाग पहुँचने से पहले बोर्ड पर लि‍खी दूरि‍याँ- लोगों का हौसला तोड़ रही थी!


मैं और नीतिन-दोनों श्रीनगर के दो चक्‍कर काट आए। पर अंत में जी.एम.वी.एन.( गढ़वाल मंडल वि‍कास निगम) के टूरि‍स्‍ट बंगले में खाने और रूकने का सही इंतजाम लगा।



बुधवार, करीब साढ़े बारह बजे तब दोनों गाड़ि‍यॉं श्रीनगर आ गई। सबने पहले खाना खाया, उसके बाद ये तय कि‍या गया कि‍ सोनि‍या का यहॉं अकेले रूकना ठीक नहीं है, इसलि‍ए वह बद्रीनाथ तक साथ चले। रही 'उलटी' की बात, दवाई और बाकी चीजें श्रीनगर से खरीद ली गई।

करीब दो बजे हमारा काफिला श्रीनगर से आगे चल पड़ा। अगला मुख्‍य स्‍थल था- रूद्रप्रयाग। यहीं से एक रास्‍ता (एन.एच.109)ओखीमठ, गुप्‍तकाशी होते हुए केदारनाथ के लि‍ए जाता है। सोनि‍या और इशान अब मेरे साथ मेरी कार में थे।

रूद्रप्रयाग से केदारनाथ का 75 कि.मी. का सफर तीन घंटे में पूरा कि‍या जा सकता है, जबकि‍ रूद्रप्रयाग से बद्रीनाथ करीब 165 कि.मी.दूर है और आगे जोशीमठ में एक समय-सीमा के बाद गाड़ि‍यों को रोक दि‍या जाता है। मैंने ये बात सोनि‍या को बताई।

- वैसे तो मैं यहीं से लौट जाना चाहती हूँ मगर केदारनाथ पास है तो वहीं चल पड़ो। क्‍या फर्क पड़ता है!
- फर्क बस उतना ही है जि‍तना शि‍व और वि‍ष्‍णु में है। तुम्‍हारी जि‍धर श्रद्धा हो उधर चल पड़ो!

वह चुप हो गई। शायद उसके मन में कम दूरी की वजह से शि‍वधाम केदारनाथ जाने का इरादा बन रहा था।

- केदारनाथ के लि‍ए गौरीकुंड से 14 कि.मी. पैदल चढ़ाई करनी पड़ती है- कहो तो चल पड़ूँ!
- नहीं-नहीं, फि‍र तो बद्रीनाथ ही ठीक है, कार वहॉं तक चली तो जाएगी न!
- ये तो कार पर नि‍र्भर करती है, वैसे सड़क तो बद्रीनाथ से 4 कि.मी. आ्गे आखि‍री गॉंव माना तक जाती है,जहॉं से आगे चाइना बार्डर है।
- अच्‍छा, तो क्‍या हम चीन के बि‍ल्‍कुल नजदीक जा रहे हैं!!
- हॉं!
- वहॉं से हम कुछ चाइनि‍ज सामान तो खरीद सकते हैं ना!!
- लगता है तबीयत ठीक हो रही है,खरीदारी के नाम पर तो तुम लोग I.C.U. से बाहर नि‍कलने के लि‍ए तैयार हो जाती हो!
- ऐसी बात नहीं है!
सोनि‍या ने मुस्‍कुराते हुए कहा।
- फि‍र ?
- अब तुम्‍हारे साथ हूँ ना, इसलि‍ए तबीयत ठीक लग रही है!


रूद्रप्रयाग से 32 कि.मी. आगे कर्णप्रयाग आता है। नैनीताल की तरफ से आने वाली एन.एच 87 यहीं पर खत्‍म होती है। यहॉं से सड़क काफी चौड़ी हो गई थी और मैं यहॉं कार को औसतन 80 कि.मी. प्रति‍ घंटे की गति‍ से चलाने का जोखि‍म उठा रहा था। मेरे साथ समस्‍या ये है कि‍ जब कि‍सी मंजि‍ल पर पहुँचना होता है तो मुझे बीच में न रूकना अच्‍छा लगता है न ही खाना-पीना।

- तुम्‍हारा व्रत तो बद्रीनाथ में ही खुलेगा, पर हम दीन-हीन प्राणि‍यों पर दया करो,कहीं गाड़ी रोको और नाश्‍ता-पानी कराओ, बच्चा भी साथ है।

- कर्णप्रयाग से बस 16 कि.मी. ही दूर है चमोली। तुम्‍हे पता है इृस जगह की खासि‍यत?

- हॉं , 'कोई मि‍ल गया' की शूटिंग यहॉं हुई थी।

- गलत, यहीं से व्‍यापक स्‍तर पर 'चि‍पको आंदोलन' चलाया गया था।


अलकनंदा नदी सामने से इठलाती आ रही थी, मानो कह रही हो, जल्‍दी जाओ बद्रीनाथ, मैं वहीं से आ रही हूँ!! चमोली में हम आधे घंटे के लि‍ए रूके। तब तक हौंडा सि‍टी और स्‍कॉर्पियो भी चमोली पहुँच चुकी थी।


चमोली से जोशीमठ की दूरी 58 कि.मी. रह गई थी। शाम के 5 बजनेवाले थे, पर जून के पहले हफ्ते में सूरज की तपीश अपने चरम पर थी। पहाड़ तो था, पर ठंड नहीं थी। कुछ लोग इस बात से परेशान थे कि‍ उन्‍होंने गरम कपड़ो से अपने बस्‍ते का बोझ यूँ ही बढ़ाया!

जोशीमठ पहॅुचने के बाद एक-दो जगह बैरि‍यर लगा हुआ था,जहॉं से पुलि‍सवाले गाड़ि‍यों को बायीं तरफ खड़ी करवा रहे थे। मुझसे चुक हो गई या फि‍र पुलि‍सवालों ने मुश्‍तैदी नहीं दि‍खाई, इसलि‍ए मैं उस बैरि‍यर की अनदेखी कर जोशीमठ से एक-दो कि.मी. बाहर निकल आया। मुझे संदेह तो था, इसलि‍ए आगे एक पेट्रोल पंप पर टंकी फुल कराने के बाद पि‍छली गाड़ि‍यों का इंतजार करने लगा।

तभी शैलेन्‍द्र जी का फोन आया कि‍ जोशीमठ में दोनों गाड़ि‍यॉं रोक दी गई हैं,वापस आ जाओ, रात को यहीं हॉटल में रूकना पड़ेगा! मैंने तय कि‍या कि‍ अगर मैं अब बद्रीनाथ नहीं जा सकता, तो जोशीमठ से 15 कि.मी. ऊपर 'औली' हि‍ल स्‍टेशन में रात गुजारूँगा! सुबह वहॉं से उतरकर बाकी दोनों गाड़ि‍यों के साथ बद्रीनाथ के लि‍ए चल पड़ुँगा।

-'आपको अभी रात में ही जाना है तो जाओ, कल सुबह 5 बजे हम सभी आपको वहीं मि‍लेंगे।'

शैलेंद्र जी की इस बात से मैं शर्मिदा हो गया। बाद में पता चला कि‍ औली में बस एक ही रि‍सौर्ट है और वहॉं जाने के लि‍ए दो-तीन कि.मी. पैदल भी चलना पड़ता है।

जोशीमठ में खाना खाते,बच्‍चे के लि‍ए दूध आदि का इंतजाम करते-करते रात बारह बजे बि‍स्‍तर नसीब हुआ। कल सुबह बद्रीनाथ के लि‍ए करीब 44 कि.मी. का सफर तय करना था, यह सोचते हुए मैं नींद के आगोश में चला गया।

पि‍छली कड़ी पढने के लि‍ए क्‍लि‍क करें -
बद्रीनाथ- औली से वापसी(अंति‍म कड़ी)
पर्वतों से आज में टकरा गया (भाग 4)
बद्रीनाथ: एक रोमांचक सफर (भाग 3)
बद्रीनाथ: एक रोमांचक सफर (भाग 1)क्रमश:

7 comments:

Jandunia said...

सार्थक पोस्ट

संगीता पुरी said...

बहुत रोचक विवरण !!

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

agli kadi ka intejaar.

टंगडीमार said...

आगया है अब टंगडीमार ले दनादन दे दनादन। दुनिया याद रखेगी। जरा संभलके।

टंगडीमार

प्रवीण पाण्डेय said...

खरीददारी और ICU, वाह ।
बड़ा ही रोचक है आपका यात्रा वृत्तान्त ।

Asha Joglekar said...

बहुत सुंदर विवरण जान कर अच्छा लगा कि आपकी यात्रा जारी है ।

तरुण गुप्ता said...

tasveeron ne hila ke rakh diya hai. vaaqai swarg agar kahi hai to yahi hai. yahi hai yahi hai. lucky ho beraadar..........