बद्रीनाथ से लौटते हुए जोशीमठ में अंधेरा हो चुका था। रात वहीं होटल में रूके। सुबह 4 बजे मैंने नीतिन को औली चलने के लिए उठाया जो यहॉं से 12 कि.मी. ही दूर था। सोचा था, हम दोनों औली से 10 बजे तक लौट आऍंगे और उसके बाद सभी दिल्ली के लिए रवाना हो जाऍंगे। मगर सोचा हुआ होता कहॉं है।
जैसे ही हम दोनों चलने को हुए, शैलेंद्र जी और रोहित- दोनों औली जाने के लिए तैयार मिले। पहले तो इरादा था कि जोशीमठ से रोपवे (केबल कार) के द्वारा औली पहुँचा जाए, मगर 6 बजे ये संभव नहीं था। उसका किराया 500/- प्रति व्यक्ति था, और वह 9 बजे से आरंभ होता था। बजट और समय- दोनों का नुक्सान देखते हुए मैंने कार से ही जाना तय किया। ऊपर सड़क मार्ग खत्म होने के बाद 2-3 कि.मी. पैदल चलना पड़ा। कार भी पहले ही खड़ी करनी पड़ी क्योंकि रास्ते में बड़े गड्ढे और उभरी हुई चट्टानें थी।
वहॉं से हमारे चारो तरफ ऊँचे-ऊँचे पहाड़ ही नजर आ रहे थे। माना पर्वत,अल गामिन, कामेट, मुकुट पर्वत, त्रिशूल और नंदा देवी जैसे प्रसिद्ध पर्वतीय चोटियॉं के अलावा हाथी-घोड़ा-पालकी और सुमेरू पर्वत सर उठाए खड़े थे। सुमेरू पर्वत का नाम रामायण में आता है, जब लक्ष्मण के लिए हनुमान संजीवनी बूटी ढूँढते हुए यहॉं आए थे और इस पर्वत को उठा ले गए थे। इसलिए हैरानी की बात नहीं कि यहाँ के गॉंव में हनुमान की पूजा नहीं की जाती है।
मेरा 5 मेगापिक्सल का निकॉन कैमरा धुंध में तस्वीरें लेने में नाकाम रहा क्योंकि उसका ऑटोफोकस खराब हो चुका था। इसलिए जानकारी के लिए गूगल की तस्वीरें दिखाकर काम चला रहा हूँ।
कंचनजंगा( 8,586 मीटर /28,169 फीट) के बाद भारत की दूसरी सबसे ऊँची चोटी नंदा देवी ( 7,816 मीटर/25,643 फीट)मेरी दायीं तरफ ऐसी नजर आ रही थी जैसे गाए बैठी हो, वैसे तेवर शेर-चीते सा था-
नन्दा देवी पर्वत ( 7,816 मीटर/25,643 फीट)
ऑली के ठीक सामने त्रिशूल पर्वत नजर आता है-
त्रिशूल पर्वत (7,120 मीटर / 23,360 फीट)
उसके साथ कामेट और मुकुट पर्वत नजर आ रहा था-
कामेट (7,756 मीटर / 25,446 फीट)
मुकुट पर्वत ( 7,242 मीटर / 23,760 फीट)
और बायीं तरफ देखने पर बद्रीनाथ की दिशा में नीलकंठ नजर आ रहा था।
नीलकंठ (6,596 मीटर / 21,640 फीट)
उसी के आसपास माना पर्वत और अल-गामिन भी थे-
माना पर्वत (7,272 मीटर / 23,858 फीट)
अबी गामिन (7,355 मीटर / 24,130 फीट)
तुलना के लिए जानकारी दे रहा हूँ कि विश्व की उच्चतम चोटी एवरेस्ट की ऊँचाई 8,848 मीटर / 29,029 फीट है जो नेपाल में है। उसके बाद के-2 (ऊॅंचाई- 8611 मीटर/ 28251) का नंबर आता है जो पाकिस्तान में है।
पर्वतों के बीच ईश्वर की इस भव्य और विशालकाय रचना से अपनी लघुता और छुद्रता- दोनों का अहसास हो रहा था।
इन पर्वतों को देखकर ऐसा लग रहा था मानों ये सीख दे रही हो कि विशाल होना उतना महत्वपूर्ण नहीं है, महत्वपूर्ण है विशाल होते हुए स्थिर रहना। इतनी ऊँचाई पर हम सोचते हैं कि हमने पर्वतों पर फतह कर ली। पर सच्चाई ये है कि हमने प्रकृति के मूल रूप को सड़क मार्ग, वृक्ष उन्मूलन और डैम-निर्माण से रौंद डाला।
इसलिए मुझे कभी-कभी लगता है कि प्रकृति जहॉ सबसे सुंदर नजर आती है, वहीं वह क्रूरतम रूप में प्रकट होकर मनुष्यों से प्रतिकार लेती है। पिछले 200 सालों में उत्तराखण्ड 116 भूकंप झेल चुका है और उनमें सबसे ज्यादा विनाश 1803, 1905, 1988 और 1991 में हुआ था।
ऑली लगभग 3000 मीटर की ऊँचाई पर स्थित एक बेहद छोटा हिल स्टेशन है जहॉं जी.एम.वी.एन. का एक रिसॉर्ट क्लीफ टॉप ही नजर आता है। इस मकान के अलावा यहॉं रोपवे के टावर और उसके दो स्टेशन नजर आते हैं।
पैदल चलते हुए हमने महसूस किया कि यहॉं पशुओं की हडि्डयाँ जहॉं-तहॉं बिखरी पड़ी थी। संभवत: ये जानवर बर्फीली ठंड न झेल पाने के कारण मर जाते होंगे।
पार्किंग-स्थल के पास गर्म दूध के साथ ब्रेड-बटर खाते हुए पहाड़ों को निहारना अच्छा लग रहा था। इस बीच शैलेंद्र जी ने महसूस किया कि इतनी दूर आकर इन दृश्यों से बाकी लोग वंचित रह जाऍं, यह ठीक नहीं है। उन्होंने फोन कर दिया कि रोपवे आरंभ होने पर वे सभी ऑली आ जाऍं। अब वे मेरे ऑली आने के निर्णय से खुश नजर आ रहे थे।
आपको ये बताना है कि ऑली की इस तस्वीर में यह रास्ता किस काम आता है?
रिसॉर्ट के पास टावर नं. 8 का रोपवे स्टेशन था। उसके बाद आखरी स्टेशन (नं 10) एक कि.मी. ऊपर नजर आ रहा था। हम टहलते हुए वहॉं तक जा पहुँचे।
मैं यह सोचकर उदास हो रहा था कि कार से आने की वजह से मैं रोपवे का मजा नहीं ले पाउॅंगा। इस यात्रा के अगले और अंतिम भाग में बताऊँगा कि मैं रोपवे की सवारी कर पाया या नहीं!
फिलहाल आपको बॉंयी तरफ दो तस्वीरें दिखा रहा हूँ। आपको बताना है कि ऑली में इन खंभों का इस्तमाल किस लिए किया जाता है?
क्रमश:
अन्य कड़ियॉं-
बद्रीनाथ- औली से वापसी(अंतिम कड़ी)
बद्रीनाथ: एक रोमांचक सफर (भाग 3)
बद्रीनाथ: एक रोमांचक सफर (भाग 2)
बद्रीनाथ: एक रोमांचक सफर (भाग 1)
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13 comments:
रास्ता तो जरूर सर्दियों में स्कीईंग करने के काम में आता होगा जी
और इन खंबों पर रोपवे की ट्राली चलती होगी
बहुत सुन्दर यात्रा वृतांत चल रहा है।
प्रणाम स्वीकार करें
बहुत ही सुंदर विवरण ओर चित्र भी खुब सुरत
जैसा अन्तर सोहिल बता रहे हैं, अपने भी विचार वैसे ही हैं।
बड़ा मनोहारी यात्रा वृत्तान्त ।
अब तो पहाड़ भी खतरे में आ रहे हैं.
आहा पहाडों की चोटियां देख कर आनंद आ गया । बहुत ही सुंदर तस्वीरें । लेख भी ।
बेहद मन मोहक तस्वीरें और सुन्दर विवरण..
वाह !
ऑली में इन खंभों का इस्तमाल किस लिए किया जाता है?
अब तो उत्तर बता दो!
हम्म गूगल से ही सही पर बड़े मोहक चित्र सँजोए हैं आपने अपनी इस पोस्ट में...
बहुत भला लगा पढ़कर। किन्तु लगता नहीं कि ये पहाड़ बचे रहेंगे।
घुघूती बासूती
बहुत सुंदर, लाजवाब.
अरे भाईसाहब, भारत की सबसे ऊँची चोटी K-2 है, जोकि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में हैं |
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