अमेरिका में 19वीं सदी के मध्य में जब मजदूर वर्ग ने जींस को पहले-पहल अपनाया,

तब मार्क्स भी यह नहीं जानते होंगे कि आनेवाले दिनों में यह अमीरों के बीच भी खासा लोकप्रिय हो जाएगा। 1930 के दौर में हॉलीवुड में काऊ-बॉय ने जींस के फैशन को और लोकप्रिय बनाया। द्वितीय विश्व-युद्ध के दौरान अमेरिकन सैनिक ऑफ-ड्यूटी में जींस पहनना ही पसंद करते थे।

1950 के बाद यह अमेरिका में नौजवानों के बगावत का प्रतीक बन गया और वहॉं के कुछ स्कूलों में इसे पहनने पर प्रतिबंध भी लगा दिया गया। आगे चलकर यही जींस भारत में मस्ती और मौज का पहनावा बन गया। 1990 के दशक से बॉलीवुड में भी इसको लोकप्रियता मिलने लगी।
सलमान खान ने तो जींस की नीक्कर और फटी जींस को नौजवानों के बीच लोकप्रिय बनाया।

टी.वी. पर एक ऐड भी आपने जरूर देखा होगा-एक जींस पहनी हुई लड़की चहकती हुई आती है,फटी जींस बिस्तर पर छोड़कर बाथरूम की तरफ चली जाती है,इस बीच मॉं आती है, फटी जींस देखकर मुँह बनाती है और बड़ी मासूमीयत के साथ सिलाई-मशीन चलाकर खुद उस जींस की सिलाई कर देती है।
बहरहाल, फर्ज कीजिए,कोई छात्र धोती-कुर्ता पहनकर महानगरीय कॉलेज में आ जाए,तब क्या होगा। वैसे कुर्ता-पाजामा के दिन अभी नहीं लदे हैं, नेताओं का संरक्षण भी इसे प्राप्त है और कुछ छात्र-छात्राओं में भी जींस के ऊपर कुर्ता पहनने का फैशन है।

ऐसा माना जाता है कि कॉलेज में जिसने जींस पहना है वह लड़का या लड़की मॉड है। हालॉकि मॉड बनने के लिए जींस को पैमाना मानना सही नहीं है। गर्मी हो या सर्दी, जींस पहनने में फैशनपरस्तों को तकलीफदेह नहीं लगती। जींस की कुछ खूबियों का मैं कायल हूँ-
1)उसे प्रैस नहीं करना पड़ता, अब तो रिंकल्ड जींस भी चलन में आ गया है।
2)जब तक बदबू न आने लगे, उसे धोने की भी जरुरत नहीं पड़ती, कुछ लोग 15-20 बार पहनने के बाद भी उसे धोने से कतराते हैं। उनका कहना है कि इसका मैलापन भी एक फैशन है।
3) ज्यादा पहनने पर जींस कहीं से फट जाए(मूल स्थान को छोड़कर), तो उसे भगवान की नियामत समझी जाती है, उसकी सिलाई करना फैशन के अदालत में गुनाह है। और अगर न फटे तो उसे पत्थर से रगड़ा जाता है, साथ ही सुई लेकर सावधानी से उसे जगह-जगह से उधेड़ी जाती है।

हालॉकि मैंने जींस ज्यादा नहीं पहना है और पुरानी होने से पहले ही पहनना छोड़ दिया था। पर हैदर अली के इस गीत में जींस के साथ कॉलेज के दिनों को फिर से जीता हुआ देखता हूँ। सिगरेट कभी नहीं पी क्योंकि खेतों के ऊपर जमी हुई धुंध सिगरेट की धुओं से ज्यादा आकर्षक लगती रही है। खेत देखे अरसा हो गया है, अब सर्दियों की धुंध का इंतजार है।
हैदर अली की आवाज में ये मस्त गीत सुनने के लिए हम्टी-डम्टी के पैर के पास क्लीक कीजिए, मजा न आए तो समझिएगा कि आपका जवॉं दिल इस अहसास में ड़ूबने से चुक गया। इस हालत में आपको आपके जमाने की गीत भी सुनाउँगा- चुप-चुप बैठे हो जरुर कोई बात है.....
जो सुन ना सके, उनकी सहूलियत के लिए इस गीत के बोल लिख देता हूँ-
पुरानी जींस और गिटार
मोहल्ले की वो छत और मेरे यार
वो रातों को जागना
सुबह घर जाना कूद के दीवार
वो सिगरेट पीना गली में जाके।
वो दॉतों को घड़ी-घड़ी साफ
पहुँचना कॉलेज हमेशा लेट
वो कहना सर का- ‘गेट आउट फ्रॉम दी क्लास!
वो बाहर जाके हमेशा कहना-
यहॉं का सिस्टम ही है खराब।
वो जाके कैंटिन में टेबल बजाके
वो गाने गाना यारों के साथ
बस यादें, यादें रह जाती हैं
कुछ छोटी,छोटी बातें रह जाती हैं।
बस यादें............
वो पापा का डॉटना
वो कहना मम्मी का- छोड़िए जी आप!
तुम्हें तो नजर आता है
जहॉं में बेटा मेरा ही खराब!
वो दिल में सोचना करके कुछ दिखा दें
वो करना प्लैनिंग रोज़ नयी यार।
लड़कपन का वो पहला प्यार
वो लिखना हाथों पे ए प्लस आर.
वो खिड़की से झॉंकना
वो लिखना लेटर तुम्हें बार-बार
वो देना तोहफे में सोने की बालियॉं
वो लेना दोस्तों से पैसे उधार
बस यादें, यादें रह जाती हैं
कुछ छोटी,छोटी बातें रह जाती हैं।
बस यादें............
ऐसी यादों का मौसम चला
भूलता ही नहीं दिल मेरा
पुरानी जींस और गिटार.....
(पोस्ट में संगीत लोड करने की प्रक्रिया से मैं अनभिज्ञ था। प्रशांत प्रियदर्शी जी का आभारी हूँ, जिन्होंने मेल के माध्यम से मुझे इसकी विधि से अवगत कराया। शुक्रिया प्रशांत जी।)
(सभी चित्रों के लिए गूगल का आभार)