ब्लॉग में आए हुए मुझे जुम्मा-जुम्मा चार दिन ही हुए हैं। जब पहली पोस्ट लिखी, तब मुझे लोगों के टिप का बेसब्री से इंतजार रहा। दिन में चार बार कम्प्यूटर ऑन किया, मोबाइल से इंटरनेट डायल-अप किया। न बिजली बिल की सोची, न इंटरनेट बिल की!
पर जैसे नये हीरो को अपने गॉड फादर और अपनी डेव्यू फिल्म से काफी उम्मीदें होती है, (चाहे फिल्म सी-ग्रेड की ही क्यों न हो) वैसी ही मुझे भी रही, पर यहॉं मैं ही गॉड था, मैं ही फादर! अगर मैंने कुछ थर्ड क्लास लिखा था, तो मुझे यह भी उम्मीद थी कि यही बताने वाला कोई आता और टिपटिपाता!
चार-पॉंच दिन तो मैं इंतजार करता रहा, और अगले दिन मायूस होकर एक बंधुवर के सामने ये दुखड़ा रोया। मैने कहा- मेरे अंदर का रचनाकार भ्रूण हत्यारों का शिकार होने वाला है ! मैं इस जहान में पहचान बनाए बिना मरने वाला हूँ, स्वर्गवासी दादा जी मुझे कोसेंगे कि खानदान का नाम पू-रए मिट्टी में नहीं मिलाया, तो भी कौन-सा झंडा गाड़ दिया!
बंधुवर ने पूछा- ब्लॉगवाणी,चिट्ठाजगत में पोस्ट भेजी ? मैने कहा,नहीं, ये क्या बला है?
उसने बताया कि यहॉं सभी ब्लागर्स के तत्काल छपे लेखों का एक साथ पूरी दुनिया में प्रकाशन होता है, टिप्पणी भी वहीं बंटती हैं। मैने पूछा, ‘बँटती है’ का क्या मतलब ?
उसने कहा- धीरे-धीरे समझ में आएगा, अभी बस पोस्ट भेजते रहो।
अगले दिन मैने दिन में चार बार फिर कम्प्यूटर ऑन किया, मोबाइल से फिर इंटरनेट डायल-अप किया। इस बार भी न बिजली बिल की सोची, न इंटरनेट बिल की! काम बन गया। धीरे-धीरे अब एग्रीगेटर पर मैं सबकी पोस्ट पर निगाह रखने लगा। मैंने पाया कुछ ऐसे ब्लॉगर भी थे जिन्होने एक काला नकाब पहन रखा था। मैने पूछा- भई अपनी पहचान छिपाकर माल क्यों बेच रहे हो ? उसने कहा आम खाने से मतलब रखना चाहिए, बगीचा किसका है किसका नहीं, यह जानने-बताने में क्या रखा है! मैने सोचा, फिर मैं क्यों नाम के लिए मर रहा हूँ !क्यों न, मैं भी विरक्त हो जाऊँ। क्यों टिप की चिन्ता में अपनी नींद उड़ाऊँ! पर मेरे अंदर का जायसी कुलबुलाने लगा- ‘मकु यह रहै जगत मँह चिन्हां ’ यानी रचनाकार जगत में अपनी रचना से पहचान पाता है, इस तरह मर कर भी वह अमर हो जाता है। बंधुवर बताने लगे- ब्लॉगिंग अब नई बीमारी बन कर उभर रही है, मैं एक ऐसे ब्लॉगर को जानता हूँ, जिसे कनाडा, नेवादा, लंदन, आस्ट्रेलिया, जापान आदि से टिप मिलता है, अब वह रात को 4 बजे नींद मे भी उठकर अपना ब्लॉग चेक करता है। बंधुवर की बात सुनकर मैं हँस पड़ा पर मेरा मन मुझसे पूछ रहा था कि मैं भी ऐसा ही बीमार नहीं हूँ क्या? बंधुवर पारखी थे, बोले- कुछ दिनों का जोश है, धीरे-धीरे नॉर्मल हो जाओगे।
क्या लिखें, क्या न लिखें – इसका अंदाजा टिप मिलने पर होता है। सच बताना, टिप मिलने पर क्या आपका हौसला नहीं बढ़ता? गोस्वामी तुलसीदास जैसी ‘स्वांत: सुखाय’ अपना लूँ तो लगेगा- स्व का अंत कर सूख जाना। मैं ऐसे नहीं सूखना चाहता, कोई भी नवोदित ब्लॉगर ऐसे नहीं सूखना चाहता! तो भला हो उन टिपकारों का जो कुछ दान-दक्षिणा कर जाते हैं।
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12 comments:
आप ने क्या बात लिखी है मन प्रसन हो गया वह सच में बहुत खूब ..पहली बार ये पढने को मिला ...
अजी मरने मराने की बात क्यो करते हो भाई, आप क्या टिपण्णी के लिये लिखते हो?अजी नही जिस दिन आप ने सिर्फ़ टिपण्णी के लिखना शुरु कर दिया उस दिन से यह (आज) वाला मजा नही रहे गा लिखो जो मन मे आये(लेकिन गन्दा नही )
हमे भी इन टिपण्णीयो की परवाह नही,
लिखते चलो-बाकी तो हम हूँ न!! काहे चिंता कर रहे हो भाई. :)
अरे भाई जाको राखे उडन तश्तरी - मार सके न कोय....देखा नहीं कैसे शाहरूखवा की तरह बोल रहे हैं..मैं हूं न :)
आप लिखते जाईये...अच्छा लिखिए, मन की लिखिए...टिप्पणी न मिलने का मतलब ये थोडी है कि उसे पढा नहीं गया है....पढा तो जाता ही है...फिर फिक्र काहे की......कहा है न रांड रंडापा तब रहे जब रंडुए रहने दें यानि कोई महिला अपने पति के मरने के बाद दुखी जीवन तभी न बिता पाएगी जब उसे बाकी रंडुए (जिसकी पत्नी मर गई हो) वह जीवन बिताने दें.....वो तो खुद ही अपना दुखडा लेकर उससे मिलने मिलाने की कोशिश करेंगे , सो हम जैसे लोग आप से मिलते रहेंगे....।
हम हैं न......फिक्र नॉट यार।
:)
ब्लाग का जब चढ़ेगा सुरूर !
टिप्पणियां भी टिपियाएंगी जरूर !!
बस्स.......
लगे रहो मुन्नाभाई..
जानी ये टिप नहीं, वो टिप्स हैं, जो यहॉं जीने के लिए निहायत जरुरी हैं।
(लगता है, मेरा ये लेख सिर्फ मेरे ऊपर लागू करके देखा जा रहा है,बंधुवरों से क्षमा! मैं तो अपन माध्यम से एक आम बात कर रहा था, शायद ताना-बाना बुनने में कुछ कमी रह गई!)
क्या कै रियो हो उस्ताद... दिल की बात कह दी आपने ....;
बहुत अच्छा लिखते हैं आप.
जारी रखें.
टिप भी मिलती रहेगी.
क्या बात है। इतने दिन बाद मिलकर और पढकर
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