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Monday, 4 August 2008

पेश है अगला शेर !

दिल कहता है तमाम उम्र ये ज़हमत है बेकार

वफ़ा मैं करता रहा और वे करते रहे इन्कार ।

(मेरी UGLY POST में शाम तक जरुर पढ़ें- टखना सिंह का टखना कैसे टूटा ? व्यंग-कथा का शीर्षक है-

एक दो तीन, आजा मौसम है ग़मग़ीन !)

3 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बढिया शेर है।

Udan Tashtari said...

सही है-शाम को टखना सिंग पढ़ेंगे जी.

laxman said...

BAHUT ACHHA LIKHA HAI . LAPRANEY BRIHMBODH