दिल कहता है तमाम उम्र ये ज़हमत है बेकार
वफ़ा मैं करता रहा और वे करते रहे इन्कार ।
(मेरी UGLY POST में शाम तक जरुर पढ़ें- टखना सिंह का टखना कैसे टूटा ? व्यंग-कथा का शीर्षक है-
एक दो तीन, आजा मौसम है ग़मग़ीन !)
फितरत ज़माने की , जो ना बदली तो क्या बदला! ज़मीं बदली ज़हॉं बदला,ना हम बदले तो क्या बदला!
3 comments:
बहुत बढिया शेर है।
सही है-शाम को टखना सिंग पढ़ेंगे जी.
BAHUT ACHHA LIKHA HAI . LAPRANEY BRIHMBODH
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