फितरत ज़माने की, जो ना बदली तो क्या बदला !!
ज़मीं बदली ज़हॉं बदला , ना हम बदले तो क्या बदला!!
(आज शाम तक मेरे सफरनामें में जरुर पढ़ें - मैंने खज्जियार (डलहौजी) में पैराग्लाइडिंग करते हुए मौत को कितने करीब से देखा !)
फितरत ज़माने की , जो ना बदली तो क्या बदला! ज़मीं बदली ज़हॉं बदला,ना हम बदले तो क्या बदला!
4 comments:
बहुत बढिया शेर है जितेन्द्र जी।
हमें आपकी पोस्ट का इन्तजार रहेगा
achcha sher
बहुत बढिया.
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