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Monday 4 August 2008

एक दो तीन, आजा मौसम है ग़मग़ीन !

महिना सावन का था और पवन शोर कर रहा था। लोग सोच रहे थे कि टखना सिंह का जियरा तो जरुर झूम रहा होगा! पर कहते हैं न, जंगल में मोर नाचा, किसने देखा !

किसी संपादक ने टखना सिंह में छिपी प्रतिभा को पहचानकर एक ऐसी पत्रिका का सह-संपादक बना दिया, जिसके न कोई पाठक थे, न कोई आलोचक ! जाहिर था, नामानुकूल सह-संपादक टखना सिंह को संपादन का भार सहना था। सबसे पहले टखना सिंह पहुँचे एक चोर के पास। टखना सिंह को आते देख वह पेड़ पर चढ़ गया। टखना सिंह ने कहा- मुझे अपनी पत्रिका के लिए आपका एक लेख चाहिए। चोर ने कहा- भइया, तुम गलत पते पर आ गए हो। मैं तो मामूली चोर हूँ। तुम्हारे यहॉं तो चुराकर लिखनेवाले कई हैं, जमाने के सामने उन्हें लाओ। मैं तो पेड़ पर ही ठीक हूँ।

निराश टखना आगे चल पड़ा। रास्ते में एक रिटायर्ड घुसखोर मिला। टखना ने उससे एक लेख मांगा। उसने कहा- पहले ये तो जान लो कि मुझे किस बात के लिए बदनाम किया गया! मुझसे ओहदे में बड़ा, एक बेईमान अफसर हुआ करता था, जिससे मैंने रिश्वत में हिस्सेदारी लेने से मना कर दिया था। ऐसे लोगों के बीच मैं अकेला था। और तुम तो जानते ही हो, अकेला चना अपना सर तो फोड़ सकता है, फूटे सर पर इंकलाबी विचारों के अंकुर भी उगा सकता है, पर भाड़ नहीं फोड़ सकता!

निराश टखना को आगे मिला एक शराबी! शराबी ने एक घूंट पीकर कहा-

जिन्दगी को जाम समझ,

जिन्दगी भर !

चढ़ जाएगा खुमार

इसे पीने पर !

यह सुनकर टखना सिंह ने भी एक घूंट मारा और बुदबुदाया-

उम्र इतनी है बाकी,

अब तू ही बता साकी,

न नशा हो जीवन में तो

लानत है जीने पर!

और फिर वह अगले लेखक के पास चल पड़ा। वहॉं से आगे निकला ही था कि रास्ते में मिला एक अपाहिज भीखारी! टखना सिंह की मांग सुनकर वह बोला-

मैं तो तूझे मौलिक बाबू समझ रहा था, पर तू तो लेख मांगनेवाला भीखमंगा निकला! ये लिफाफा ले, जिसमें मेरे रिश्तेदारों का पता है। जा उनसे लेख ले। ध्यान रहे लिफाफा घर जाकर ही खोलना!

टखना घर के लिए चल पड़ा, पर रास्ते में उसे ख्याल आया कि क्यूं न लिफाफे के लेखकों से भी लेख लेता चलूँ, वर्ना घर से दुबारा निकलना पड़ेगा! लिफाफा खोलते ही सामने सांसद और विधायक अचानक प्रकट हो गए और टखना सिंह को अपना-अपना लेख पकड़ाते हुए बोले- ले छाप!

टखना सिंह यह देखकर हैरान हुआ कि सारे लेखों का शीर्षक एक समान था-

पार्टी-एजेंडा - विरोधियों को डण्डा!

टखना पर्चे पढ़कर बोला-

मैं सच छापूंगा, सच के सिवा कुछ नहीं छापूंगा। यह सुनकर सभी नेता उस पर टूट पड़े और टखना सिंह के टखने पर मारते हुए बोले-

सत्यमेव जयते!

टखना सिंह घायल हो गया और भागकर उस भिखमंगे से बोला-

मेरी जान आफत में क्यूं फंसाई ?

भिखमंगे ने कहा-

मैंने कहा था न, रास्ते में लिफाफा मत खोलना, अब झेलो मेरे रिश्तेदारों को!

टखना सिंह अपने टखने की तरह टूट गया। आगे मिला एक जुआरी! टखना सिंह को देखते ही उसने पासा फेंका और चिल्लाया- पौ बारह! उसकी ऑंखें चमक उठी, एक पासा टखना सिंह को देते हुए बोला-

जिंदगी है एक जुआ,

उदास क्यूं है मुआ!

है हार-जीत दर-बदर,

बे-सबर क्यूं हुआ!

यह सुनकर टखना सिंह ने पासा फेंक दिया और फिर कुछ सोचता हुआ आगे चला गया।

करेजा सिंह के समझाने पर लोग यह समझने लगे थे कि टखना सिंह नक्सलवादी है, उग्रवादी है, आतंकवादी है, जिसके संबंध जुआरी, शराबी, लुच्चे-लफंगे, भीखमंगे लोगों से है। सबसे बुरी बात तो ये थी कि टखना सिंह का संबंध आम लोगों से भी था।

(Most wanted टखना सिंह को फाँसी के लिए लेकर हाजिर हूंगा UGLY POST में 70 घंटो के भीतर! )

3 comments:

Anonymous said...

व्‍यंग अच्‍छा लगा।

Udan Tashtari said...

वाह रे टखना सिंग-अगले ७० घंटे का फिर इन्तजार लगवा दिया..बहुत सही!

Hari Joshi said...

बहुत अच्छे।
बजाते रहो।
ढोलक न मिले तो थाली ही।
समाज में एेसे कई टखना सिंह हैं जिन्हें आप समझ नहीं सकते आैर कुछ भी समझ सकते हैं।