जी हॉं हुजूर ! मैं कोई ब्लॉगर नहीं, एक मामूली फेरीवाला हूँ ! तो ब्लॉग-बाजार में आए हुए मुझे जुम्मा-जुम्मा चार दिन ही हुए थे। आज पॉंचवा दिन था। मैंने ब्लॉगवाणी और चिट्ठाजगत नामक मालवाहक बाजार देखा, बंधुवर के सुझाव से मैं भी यहॉं फेरी लगाने बैठ गया और लगा देखने कि उसकी आवाज़ मुझसे ऊँची क्यों है? मेरे अगल-बगल में जितने लोग फेरी पर विराजे थे, न जाने कैसी-कैसी आवाज़ों में रेघा रहे थे, कुछ केंकियॉं रहे थे, कुछ का केवल मुंह चल रहा था, पर आवाज नहीं निकल रही थी, कुछ तम्बाकू खाकर एक-दूसरे पर थूक रहे थे, और कुछ तो ऑंखें मूंदकर जुगाली करने में मगन थे। मन तो किया कि भाग लें, यहॉं अपना माल बेचने की मुझमें न ताकत है न ही फायदा ! पर बंधुवर ने कहा था- माल परोसते रहना, कोई तो ग्राहक भटकता हुआ आएगा। समझ रहे हो न रेगुलर कस्टमर किसे कहते है- जो कष्ट से रेगुलर मरता रहता है! अभी दूसरा फेरीवाला मार रहा है, बाद में तुम मारना!
मैं अपना माल छोड़कर थोड़ी देर इधर-उधर भटकने लगा। मैने देखा- यहॉं तो मेला लगा है, कोई कुछ बेच रहा है तो कोई कुछ ! एक फेरी वाले के पास गया तो देखा- उसके पास एक रजीस्टर है, जिसमें उन लोगों के नाम हैं जो यहॉं पधारे थे। गौर से देखने पर पता चला कि कि ये खरीददार खुद कहीं फेरी लगाने बैठते हैं।
मैं भी अपने ठेले पर एक रजीस्टर रखने लगा। जब रजीस्टर खोला, तब वहॉ सबसे पहले एक उड़न तश्तरी उतरी। एक घंटे के अंदर कुछ और लोग मेरा माल देख गए। उनमें से कुछ ऐसे आए जिन्होंने मेरे माल की तारीफ की और जाते-जाते कुछ टीप भी दे गए। कुछ ऐसे भी आए जो अपनी फेरी पर मुझे भी आने का संकेत दे गए। अच्छा, कुछ तो ऐसे थे जो गंभीर मुद्रा मे प्रवचन सुना गए। मालवाहक (एग्रीग्रेटर) से पता चला कुछ अनजान लोग भी आए थे, जिन्होंने सिर्फ माल चखा, ये जानने के लिए कि कहीं इसका माल मेरे माल से ज्यादा अच्छा तो नहीं है!
उन फेरीवालों के बीच कुछ झक्कास शो-रुम भी खुले हुए थे, जो मंदिर के समान भव्य दिखते थे। कई फेरीवाले भी वहॉ जाते थे और सम्मान में दरबान को टिप देना नहीं भूलते थे। अब तो वहॉं का दरबान भी उन्हें शान से सलामी ठोकता था। लोगों से सुना था- वहॉं विशुद्ध माल पाया जाता है। पता नहीं एग्रीगेटर के लोकतंत्र में इन्हें शो-रुम खोलने की क्या जरुरत पड़ी, जबकि इनका माल तो हर जगह, मसलन- मीडिया बाजार, अखबार, पत्रिका आदि में धड़ल्ले से बिक जाती थी। पर इसका ये फायदा हुआ कि शो-रुम खुलने से फेरीवालों की बिक्री के साथ-साथ कुछ इज्जत भी बढ़ गई।
मैं वहॉ से आगे बढ़ा ही था कि कहीं से चीखने-चिल्लाने की आवाज़ें आईं। मैं कौतुहलवश उधर चला गया! क्या देखता हूँ कि एक फेरीवाला दूसरे पर आरोप लगा रहा था कि उसने उसके माल का मजाक बनाया, इस बीच शोर सुनकर कई ग्राहक इकट्ठे हो गए और उसका माल ये जानने के लिए खरीदने लगे कि झगड़े की जड़ में क्या रखा है, पर खोदा पहाड़ तो पाया चुहिया! बाद में लड़नेवाले दोनों फेरीवाले अपनी कमाई पर एक दूसरे का पीठ थपथपाते देखे गए। इन सब के बीच एक फेरीवाला रह-रहकर एक सकून भरा गीत सुनाता था- जैसे कह रहा हो- भाड़ में जाए दुनिया, हम बजाए हरमुनिया!
वहॉं घूमते हुए मुझे पता चला कि नामी गिरामी फेरीवालों का एक तगड़ा एशोसियेशन था, जिनसे वो ब्लॉग के बाज़ार में बड़ा शॉपिंग मॉल तैयार कर रहे थे। ये गजब के थोक-विक्रेता थे, जहॉं ज्यादा से ज्यादा ग्राहकों का मजमा जुटता था। बाहर खड़ा एक फेरीवाला इसे खिन्न नजरों से देख रहा था! शायद वह इस दुनिया से तंग आ चुका था, इतना कि आत्महत्या का विचार रह-रहकर उसके मन में आ जाता था। कहता था यार कैसा जमाना आ गया है, अंबानी जैसे लोगों ने पहले तेल बेचना शुरु किया, फिर मोबाइल के जरिए आवाज बेचने लगे,और अब देखो, हर नुक्कड़ पर बैठकर बासी सब्जियॉं बेच रहे हैं और नाम रखा है- फ्रैश! और तो और, बॉलीवुड के तारे भी जमीन पर उतर आए हैं और चुपके से फेरी लगाकर हमारे ग्राहकों पर सेंधमारी कर रहे हैं। ऊँची दुकान की फीकी पकवान खा-खाकर भी लोग नहीं अघा रहे हैं।
खैर, हर फेरीवाले की तरह मैं भी सोचने लगा था कि यहॉं मेरा भी एक शो-रुम होगा, पर अभी जहॉं बैठा हूँ, वहॉं मक्खियॉं भिनभिना रही हैं, और ताजा माल रखे-रखे खराब हो रहा है। सोचता हूँ कोई फेरीवाला भूला-भटका आए तो उसे ही बॉंट (बॉंच) दूँ! अपना माल बेचने के लिए आवाज तो लगानी ही पड़ेगी-
अरे बिरादर! कहॉं चल दिए? तुम तो मेरा माल देखते जाओ!ठीक है-ठीक है, मैं भी तुम्हारे ठेले से आकर कुछ खरीद लूंगा, ............चलो भाई, अपने-अपने काम पर लग जाओ, धंधे का टैम है!
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21 comments:
भगत जी
विण्डो शोपिंग करने निकला था...देखा की आप के यहाँ का माल लुभावना है सो अन्दर चला आया...आप अपने आप को फेरीवाला कहते हैं जबकि माल किसी पाँच सितारा दूकान से कम नहीं आप के यहाँ...आते ही आप ने तो लगता है ब्लॉग जगत की ऊंची ऊंची अट्टालिकाओं, मुग़ल गार्डन्स, अजायब घरों, चिडिया घरों के साथ साथ अँधेरी, तंग, बदबूदार गलियों की सैर भी कर ली...भाई वाह...आप का स्वागत है...माल बिछायिये थोड़े दिनों बाद अपने आप बिकने लगेगा...यहाँ का येही कायदा है...मैं भी शुरू में बहुत निराश हुआ था, जब देखा की मेरी थडी पर कोई नहीं आ रहा...अब तो गुजर बसर ठीक से हो रही है...लोग आते हैं...धंदा चल निकला है...
नीरज
ये लो, पहला ग्राहक आ गया झांसे में ......... जनाब, कद्रदान, मेहरबान
अब खोल ली है दुकान , अब जैसा भी है पकवान, नीरज जी, नोश फरमाएं ।
एक फेरीवाले को दूसरे फेरीवाले की नमस्ते! माल तो बढ़िया भर लाए जी. बस, ग्राहकों में भरोसा भरने की देरी है...
मजेदार अंदाज :)
मैं भी कभी कभी ठीक ऐसा ही महसूस करती हूँ :) आपका अंदाज़ बहुत बेहतरीन है इसको पेश करने का ..देखिये अब आगे आगे क्या होता है ...
भैया यहां हफ्ता वसूली,दादा गिरी,सब चलता है...और यहां कुछ इज्जतदार लोगों के मौहल्ले हैं जहां तो कभी मत जाना नहीं तो तुम्हारी तो..... बजा दी जायेगी...खैर आपका लिखा अच्छा लगा ...अपना भी ठेला तो नहीं है खैर एक गली मैं गमछा विछाकर हमारी भी दुकान है ..मिलेंगे
अरे भाई सब्जियाँ अगर ताज़ी होंगी तो मक्खियाँ नही भिनभिनाएंगी,नई-नई दुकान है,पहले चट्टी,फ़िर हट्टी,फ़िर खट्टी होगी,देखते जाईये...
इतने प्रसिध्द,सुप्रसिध्द ग्राहक तमाम आ ही रहे हैं मेरी शुभकामनायें है, लगे हाथ एक-दो बैनर भी लगवा लिजिये...:)
ऐ. सी लगा रखा है फ़िर अपने आप को मामूली बताते है....देखिये डिसप्ले पर तस्वीर कैसे हिल डुल रही है..... अभी तो पुलिस वालो से वास्ता नही पढ़ा ...हफ्ता कौन देगा बच्चू ?खैर जामे रहिये ......पर असली माल बेचेगे तो नफे में रहेगे......
bhai yadi aap fariwale hain to fhir 5 star kishe kahte hain...achaa likha hai...aur kayade ke anusar lika hai...sab ka ye hi haal hai bandhu...
chalte raho manzil samne hi to hai
यहाँ भी साईकिल में टोकनिया दबाये दबाये गली गली हांका लगा रहे हैं. :)
जी आप नहीं वरन हर ब्लॉगर अपनी अपनी दुकान लिए बैठा है बाजार में। आप शायद इस लिंक को देखना चाहें।
अरे इस फ़ेरी वाले के पास तो मुझे लगता हे सब कुछ मिलता हे, ओर मेरी पसंद का भी हे, भई अपने साथी फ़ेरी वाले को २०% सस्ता दोगे ना,माल तो हम आप सेही लेगे,चलिये हम भी लाईन मे लगे हे,वेसे आप ने अपनी दुकान बहुत ही सभ्य ढंग से सजाई हे, तो शरीफ़ ग्राहक जरुर आयेगे,
धन्यवाद,भाई मे आता हू हमेशा लेट, मेरा माल रखना जरुर
धंधे का पहला उसूल सबूरी.. और ज़्यादा मुनाफ़ा कमाने के दो उसूल.. या तो किसी और का माल नये पॅक में डाल दो.. या किसी के माल की कॉपी कर लो.. लेकिन ये तरीका ज़्यादा दिन धंधे में टिकने नही देगा.. और दूसरा तरीका है मेहनत अपना माल बनाने में मेहनत करो.. उसे दिल से बनाओ.. और उचित दाम पर बेचो.. लोग सर आँखो पर बिताएँगे.. ये जो जनता है ना ये बस यही चाहती है की कोई उसे ठग ना ले.. बस उसका विश्वास बनाए रखे.. आख़िर ग्राहक भगवान का रूप होता है...
आयेज आपकी कलम की धार अत्यंत प्रभावशाली है.. और बहुत सही सोच का साथ मिला है इसे.. इसी तरह से नए नये विषयो पर लिखते रहे.. हमारी शुभकामनाए आपके साथ है...
:-) no comment
शुभकामनाएं पूरे देश और दुनिया को
उनको भी इनको भी आपको भी दोस्तों
स्वतन्त्रता दिवस मुबारक हो
bhai wah..wah
mazaa aa gaya yaar......
tasalli ho gai.............
ha.ha..ha...ha....ha.....ha......
अरे जितेन्द्र भाई दो दिन से सब्जी तरकारी ही बेचोगे! आज तो वैसे भी मार्केट की छुट्टी है...:)
आपको व आपके पूरे परिवार को स्वतंत्रता दिवस की अनेक शुभ-कामनाएं...
जय-हिन्द!
बैठे बिठाए पूरे दुनिया से संपर्क बना देनेवाले ब्लागिंग की तुलना भला फेरी लगाने से की जा सकती है बिलकुल गलत हैं आप । खैर मजाक अच्छा लगा।
भगत जी,
आपका लेख खूब जमा, दुकान भी जम जायेगी , क्योंकि आप रेगुलर कस्टमर का अर्थ , बकौल आप्प के
" समझ रहे हो न रेगुलर कस्टमर किसे कहते है- जो कष्ट से रेगुलर मरता रहता है! अभी दूसरा फेरीवाला मार रहा है, बाद में तुम मारना! "
अच्छी तरह समझ गयें हैं.
शानदार प्रस्तुति के लिए बधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
ई लोकल टिप्पणी देखकर सोचा हमहूँ एक ठो एन आर आई टिप्पणी ठोंक दूँ. सो किया. लिखत रहो - कोनो दिन कोई गुनी गाहक मिलबे करा.
badi mehnat ka kaam pakad liya aapne, blogging ke saath ferigiri, waise jamte der nahi lagegi..
जय हो भगत जी की ....
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