पिता होने के नाते, मुझे अपने बच्चे को बोतल लेकर दूध पिलाने में शर्म महसूस करनी चाहिए, उसे गोद में लेकर लोरी गाने या ऊँ-ऊँ-ऊँ-ऊँ करने में शर्म महसूस करनी चाहिए। बच्चे के पीछे कटोरी-चम्मच लेकर भागना बेहद शर्म की बात है, क्योंकि ये चिल्लम-पों माओं को ही शोभा देता है। सू-सू पोटी धोना-पोछना, कपड़े पहनाना, नहलाना, बहलाना - एकाध बार तो चलता है, पर बार-बार ? कुल मिलाकर यह माना जाता है कि एक पिता को अपने बच्चे से थोड़ा दूर रहकर घर चलाने की जुगत में ध्यान लगाना चाहिए।
ये वो बातें हैं जो हमें सुनाई या दिखाई देती हैं। पर मैं बताना चाहता हूँ, कुछ लोग, या कह लें कुछ पिता ऐसे भी हैं जो ये सब करने में कोई शर्म महसूस नहीं करते, यह उनकी दिनचर्या में समय की सहूलियत के साथ कुछ इस तरह शामिल है कि कुछ काम पति करे, कुछ पत्नी! ऐसे लोगों को कई तरह से देखा जाता है, तथाकथित मर्द कहते हैं कि ये तो बीवी के गुलाम हैं, मैने तो इन्हें किचन में खाना बनाते, पॉंव दबाते और यहॉं तक कि झाड़ू-पोछा करते हुए देखा है। तथाकथित औरतें बाहर से कहती हैं कि इसका पति तो दब्बू है, कुछ बोल नहीं पाता, पर अंदर से ये औरतें ये जानने के लिए लालायित रहती हैं कि फलना की बीवी ने फलना को कैसे काबू किया, यानी, बिलार के गले में घंटा कैसे बांधा !
मैं उन लोगों का सम्मान करता हूँ जो ऐसे पिता हैं जो अपने नवजात शिशुओं/बच्चों को कवि सूरदास की निगाह से, कौतुहल भाव से, रोमांच से, आनंद से देखते हैं और अपने भीतर छिपे ममत्व को महसूस करते हैं। न केवल महसूस करते है, बल्कि जाहिर भी करते हैं। इस तरह एक सोशल पिता की छवि बनती या उभरती है। मेरी नजर में यह एक ऐसे समाज के निर्माण की भूमिका है, जहॉं न पितृसत्ता होगी न मातृसत्ता होगी (वैसे मातृसत्ता किसी भी काल में कभी भी नहीं रही)। मेरा एक दोस्त है जो अपने बच्चे के खाने-पीने, हंसने-रोने, सोने का इतना ख्याल रखता है कि उसकी पत्नी को लगने लगा है कि वह (पत्नी) इस बच्चे की सौतेली माँ है। वह सोचती है कि एक पिता को पिता की हैसियत से ही रहना चाहिए। तो कहीं-कहीं ये हस्तक्षेप दखलंदाजी के रुप में दाखिल होता दिखता है।
मुझे लगता है कि पति-पत्नी के बीच जिम्मेदारियों का सही संयोजन न होने पर ही ये मतभेद उभरते हैं। अपनी पत्नी के साथ इस तरह के सहयोग के लिए आप किस हद तक सहमत हैं?
Monday, 11 August 2008
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9 comments:
'...अपने भीतर छिपे ममत्व को महसूस करते हैं।...'
भई हमें तो ये बेबात का ग्लोरिफिकेशन जान पड़ता है। उनका जो इसे कभी कभी करते हैं तथा वर्णनयोग्य मानते हैं..'आज बच्चे संभाले'। हमें तो जान पड़ता हे कि जरूरी किस्म का काम है करना ही है। उलटे किसी दिन न करना पड़े तो अच्छा लगता है। कोई ममत्व नहीं है सीधा साधा बापत्व है। :))
बच्चे के डायपर बदलने की टिप्स जाननी हों तो फोन कर पता कर सकते हो।
आप करे हमे क्या, आप खुश हे अच्छी बात हे, परिवार खुश रहे,परिवार मे शान्ति रहे,सभी यही चाहते हे, धन्यवाद
सही कहा आपने, मेरे पति भी बेटे को सँभालते है, बिना किसी शर्म और संकोच के. बल्कि वो मुझसे ज्यादा बेटे का ध्यान रखते है. आज के पापा ममियों की तरह घर और बहार में बराबर का हाथ बंटाने लगे हैं.
जी हाँ हजूर इस चीज़ का लुत्फ़ अलग है...स्कुल की सीडियो पे खड़े होकर जब वो आपको बुलाता है तो....या फ़िर काम से थककर जब आप घर वापस जाए सारी थकन मिट जाती है ....वैसे मैंने सारे काम किए है अपने बेटे के लिए....
आपने बहुत अच्छे सवाल उठाए हैं। परिवार में जिम्मेदारियों को बाँटना और पत्नी की सहायता करना एक ऐसा कदम है जिससे घर में सुख और शान्ति तो आती ही है, परिवार में प्यार भी बढ़ता है।
सही तो है, इसमें शरम कैसी?? अच्छी बात है.
शरम तो चोरी डाके डालने पर आनी चाहिए। बच्चे से स्नेह व देखरेख में कैसी शरम?
घुघूती बासूती.
जिसको अकल नही होती वो ऐसे वक्त शरम करता है
पैदा भी करे और संभाले भी वही
बाप का काम केवल वही तक है? बिल्कुल नही!!
एक विचारणीय मुद्दा है बापों के लिये …
मैं बाप होने का बेसबी से इंतजार कर रहा हूं..
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