Sunday, 3 August 2008
करेजा सिंह का अचार !!
टखना सिंह का सर घूम रहा था, सोचा चलकर चाय पी लें। अब्दुल को चाय के लिए आवाज मारी ही थी कि देखा करेजा सिंह उसकी तरफ ही बढ़ा चला आ रहा है। दूर से ही चिल्लाकर बोला- अरे टखना भाई! यहॉं क्यों सड़ रहे हो। चलो आज बढ़िया रेस्टोरेंट में हॉट कॉफी पिलाऊं। टखना सिंह ने कहा-छोड़ो कॉफी-वॉफी, तुम्हारा लेख पढ़ा-अचार बनाने की विधि पर। कामवर शुक्ला ने बड़ी तारीफ़ की है अपनी पत्रिका ‘घटिता पतीता’ में, कहा है-अब तक की सबसे शोधपरक रचना है! और तो और, मैने सुना है- डण्डी हाऊस में कामवर जी के हाथों इसका लोकार्पण भी हो रहा है। अच्छा ये तो बताओ, कामवर जी को कैसे सेट किया यार! करेजा सिंह का करेजा चौड़ा हो गया,कहा- कला है मित्र! सबके पास नहीं होती ये! अचार के चार डब्बे पैक कराए और चार जगह पहुँचाए,एक ने दूसरे से कहा,दूसरे ने तीसरे से कहा और तीनों ने कामवर जी से कहा। कामवर शुक्ला ने शर्त रखी थी कि आने-जाने का माल भत्ता, बिटिया के लिए कंघा ,दादी अम्मा के लिए दॉंत- यह सबकुछ उस रचनाकार को देना पड़ेगा। मैने कहा, महाराज आप लोकार्पण करिए, हम समर्पण करेंगे, जो भी आप चाहें। डण्डी हाऊस में करेजा सिंह के लिए कसीदें पढी जा रही थीं, पर करेजा सिंह वहां से नदारत थे,पता चला वे डण्डी हाऊस के गेट के पास आगंतुकों में अचार बॉंट रहे थे। अंदर बैठे कुछ श्रोता तो अपने साथ पराठे भी लेकर आए थे और चौकड़ी मारकर कोने में अचार के साथ खाए जा रहे थे। वक्ता भी चटकारे ले-लेकर बके जा रहे थे। एक वक्ता को तो भाषण के बीच ही भीषण डकार आ गई, सब ने जमकर तालियॉं बजाई कि यही सच्चा आलोचक है, इसने सभी रसों का सच्चा आस्वादन किया है।पर एक वक्ता काफी परेशान था, शायद अचार उसे पचा नहीं इसलिए उसे बार-बार बाथरुम की तरफ जाते देखा गया। सभा समाप्त होने तक सभी एक दूसरे के सफेद कुरते पर अचार पोंछते रहे ! अगले दिन ‘दनदनाती’ में ये खबर छपी थी कि गरिष्ठ खालोचक कामवर शुक्ला के कर-..मलों द्वारा करेजा सिंह की महान रचना ‘अचार-संहिता’ लोक के मत्थे मढ़ दी गई! (टखना सिंह पर UGLY पोस्ट 72 घंटे के भीतर!)
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1 comment:
bahut badhiya kareja sih ko padhakar anand aa gaya . dhanyawad.
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